सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताएं

सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताएं के बारे में जानेंगे, इसमें लिखी गई बातें आधुनिक वैज्ञानिकों की खोज के आधार पर दी गई है, भारत की संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीनतम और महानतम संस्कृत में से एक है, ऐसा माना जाता है कि वैदिक संस्कृति के पहले भी एक विकसित सभ्यता वास करती थी, यह विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में सबसे आधुनिक सभ्यता थी.

सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताएं
सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताएं

 

सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताएं

 

जैसे आप सभी जानते हैं कि सभी सभ्यताएं नदियों के किनारे ही बसाई गई थी जैसे मिस्र नील नदी के किनारे थी, यह सभ्यता सिंधु नदी के किनारे पाई गई इसलिए इसे सिंधु घाटी सभ्यता कहा जाता है, सन 1826 में सर चार्ल्स मेसन नाम के एक अंग्रेज शासन भारत के उत्तर पश्चिमी पंजाब क्षेत्र का दौरा कर रहे थे.

 

जो कि आज का पाकिस्तान का पंजाब प्रांत है उन्होंने वहां के हड़प्पा क्षेत्र में जमीन के नीचे दबे पुरातन अवशेषों का निरीक्षण किया और सन 1842 में लेख लिखकर सर्वप्रथम दुनिया के सामने इस बात को प्रदर्शित किया उसके बाद सन 1853 से 1856 के बीच कराची और लाहौर के दरमियान जब रेलवे लाइन का निर्माण कार्य शुरू हुआ तब रेलवे इंजीनियर bartan बंधु जिनके नाम जेम्स और विलियम bartan था उन्हें हड़प्पा में मजबूती ईट का पता चला.

 

अति प्राचीन खंडहरों के अवशेष के रूप में प्राप्त इन्हीं तो का इस्तेमाल उन्होंने रेलवे की पटरी के निर्माण कार्य में किया उसके पश्चात सन 1856 में अलेक्जेंडर कनिंघम नामक एक अंग्रेज अधिकारी ने हड़प्पा का निरीक्षण करके मानचित्र बनाया यह वही अंग्रेज अधिकारी थे जिन्होंने सन् 1861 में भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की सन 1921 में इसी भारतीय पुरातत्व विभाग के प्रमुख सर जॉन मार्शल के नेतृत्व में पहली बार हड़प्पा का आधिकारिक तौर पर उत्खनन कार्य प्रारंभ हुआ.

 

भारतीय शोधकर्ता दयाराम साहनी ने सन 1921 में हड़प्पा का उत्खनन कार्य शुरू किया और सन 1922 में राखल दास बनर्जी ने सिंध प्रांत के मोहनजोदड़ो में उत्खनन कार्य शुरू किया और दुनिया के सामने हड़प्पा के रूप में पहली बार सिंधु सभ्यता का रूप उजागर हुआ और इसलिए आज इस पूरी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के नाम से जाना जाता है.

 

इस सभ्यता के ऐतिहासिक महत्व को समझते हुए भारत भर में अन्य कई जगहों पर इसके उत्खनन कार्य को गति मिल गई भारत और पाकिस्तान जब आजाद हो रहे थे उस वक्त तक इससे जुड़े 40 से 50 जगह की खोज हो चुकी थी और आज तक इस खोज ने हमें लगभग 1500 नगरों से परिचित करवाया है जिनमें से ज्यादातर नगर भारत में पाए गए हैं जिनकी संख्या लगभग 925 तक है पाकिस्तान में पाए गए नगरों की संख्या 575 के आसपास है और अफगानिस्तान में दो नगरों की खोज हो चुकी है इससे आप समझ सकते हैं कि यह सभ्यता कितने विस्तृत क्षेत्र में फैली होगी।

 

अब तक की खोज के आधार पर इसके सीमा का निर्धारण अगर हम करते हैं,  तो हमें सबसे उत्तर में जम्मू कश्मीर से प्राप्त होता है मंडा नगर सबसे दक्षिणी में महाराष्ट्र में दायमाबाद पूर्व में उत्तर प्रदेश का आलमगीरपुर और पश्चिम में बलूचिस्तान का सूतका गिद्दडोर कुल मिलाकर देखा जाए तो 13 लाख वर्ग किलोमीटर से भी अधिक क्षेत्र में यह सभ्यता फैली हुई थी इसका उत्तर दक्षिण विस्तार 1400 किलोमीटर तक माना जाता है और पूर्व पश्चिम विस्तार 1600 किलोमीटर से करें,  तो मिश्रा और मेसोपोटामिया की सभ्यता मिलकर भी उससे 12 गुना बड़े क्षेत्र में हड़प्पा सभ्यता फैली हुई थी

 

इस सभ्यता के कार्यकाल के बारे में अलग-अलग इतिहासकारों की अलग-अलग राय है सर जॉन मार्शल ने इसका कार्यकाल इस पूर्व 3250 से लेकर ईसा पूर्व 2750 तक मन वही कार्बन 14 डेटिंग प्रणाली के आधार पर कर डीपी अग्रवाल ने इसका कार्यकाल इसका पूर्वक 2300 से लेकर ईसा पूर्व 1750 तक माना है लेकिन ज्यादातर इतिहासकार इस सभ्यता के कार्यकाल को इस पूर्व 2500 से लेकर ईसा पूर्व 1750 तक मानते हैं.

 

इस सभ्यता के मूल निर्माण करता कौन थे इसको लेकर भी विभिन्न मत सामने आते हैं ज्यादातर भारतीय इतिहासकारों का यही मानना है कि यह सभ्यता किसी के मूल निवास स्थानीय लोगों ने निर्माण की थी जबकि मार्श व्हीलर गार्डनर चाइल्ड जैसे विदेशी इतिहासकार कहते हैं की सभ्यता के निर्माता सुमेरियन सभ्यता के लोग थे क्योंकि दोनों सभ्यताओं में काफी समानताएं हैं.

 

हम भारतवासियों के लिए यह गर्व की बात है कि हमारे देश की यह सभ्यता अपने समय की सबसे उन्नत सभ्यता थी इसके जैसा नगर नियोजन तत्कालीन दुनिया की अन्य किसी भी सभ्यता में नहीं पाया गया है इन लोगों को लिपि  ज्ञान था चित्रात्मक अक्षरों के सहारे इन्होंने अपने विचारों को लिपिबद्ध करना सीख लिया था इन्होंने तांबा और टीन को मिश्रित करके कांस्यधातु के निर्माण की कला अवगत कर ली थी उत्खनन में मिले अवशेषों के आधार पर यह पता चला है कि यह लोग माप तौल करना जानते थे.  बर्तन और खिलौने बनाने की कला अवगत थी इसका गणित का ज्ञान भी अवश्य होगा तभी इन्होंने और विशाल भवन बनवाए थे.

 

लगभग सभी जगह पर मिली ईट को देखने पर ज्ञात होता है जैसे इन्हें एक ही जगह पर बनवाया गया हो पाकिस्तान के सिंध प्रांत में मिला मोहनजोदड़ो नगर की सभ्यता का सबसे बड़ा और सुनियोजित रचना नगर है इसे हड़प्पा सभ्यता की राजधानी के रूप में भी देखा जाता है मोहनजोदड़ो अपने आप में ही एक अद्भुत नगर था.

 

भारत के हरियाणा राज्य में खोजा गया राखीगढ़ी ये नगर भारत में खोजा गया सबसे बड़ा नगर है भारत के गुजरात राज्य में सबसे ज्यादा नगरों की खोज हुई है यहां की लोथल नगरी बंदरगाह के रूप में प्रसिद्ध है यहां से हमें प्रदेश व्यापार के प्रमाण भी प्राप्त होते हैं यह सभी नगर विशेषताएं दो हिस्सों में बैठे हुए दिखाई पड़ते हैं जिसमें ऊपरी हिस्सा पश्चिमी टीला  के रूप में देखा जाता है जो समाज के धनीअमीर पुरोहितों की रहने की जगह हो सकती है इसे दुर्ग भी कहा जाता है.

 

दूसरा हिस्सा पूर्वी टीला  जिसमें किसान मजदूर और जन सामान्य वर्ग की रहने की जगह पाई गई है यह हिस्सा नीचे की तरफ पाया गया है ऊपरी हिस्से में ज्यादातर बड़े और पक्के भवन और सार्वजनिक वस्तु पाए गए हैं जिन्हें ऊंचे तटबंदी से संरक्षित किया गया है इसकी तुलना में निचले हिस्से में छोटे और कच्ची ईंटों से बने मकान दिखाई पड़ते हैं जो तटबंदी से सुरक्षित भी नहीं है.

 

इन सभी नगरों में एकमात्र नगर ऐसा पाया गया है जो दो की जगह पर तीन हिस्सों में विभाजित है इसका नाम धोलावीरा है जो गुजरात राज्य में स्थित है, इसमें मिला तीसरा हिस्सा पूर्वी और पश्चिमी तिल के बीच में स्थित है जो माध्यम के नाम से जाना जाता है यह व्यापारी वर्ग के लिए बनाया गया क्षेत्र मालूम पड़ता है हड़प्पा सभ्यता के नगरी रास्ते विशेष रूप से प्रशंसनीय है क्योंकि वे नियोजन तरीके से एक दूसरे से समकोण में काटते हैं रास्तों की इस पद्धति को ग्रेड पद्धति कहा जाता है.

मुख्य रास्ता 10 मीटर तक चौड़ा पाया गया है और उससे मिलने वाले अन्य रास्ते तीन से चार मीटर तक चौड़े पाए गए हैं सभी के घरों के दरवाजे मुख्य रास्ते की तरफ ना खुलती हुए गली में खुलती दिखाई पड़ते हैं हर घर में कुवा जल निकासी के लिए नालियां मिलती है जो मुख्य नाली से जुड़कर खराब पानी को शहर से बाहर ले जाती है.

 

यह सभी नालियां ऊपर से ढकी हुई दिखाई पड़ती है गुजरात के धोलावीरा नगर में लकड़ी की बेहतरीन नालियां पाई गई है जो आज भी अच्छे से दिखाई देती है यह सभ्यता विशेष रूप से अपने सामूहिक स्नान होगा विशाल अन्य भंडार और गोदाम के लिए प्रशासनीय मानी जाती है.

 

खानपान में गेहूं जो तरबूज खरबूजा खजूर राई सरसों की और कई जगह पर चावल आदि के प्रमाण पाए गए हैं सजने संवारने के लिए यह लोग सोना चांदी हाथी के साथ मनके से बने आभूषणों का इस्तेमाल करते थे उनके सूती और रेशमी पाए गए हैं.

 

दोस्तों हड़प्पा सभ्यता की आज तक की खुदाई में कहीं भी अस्त्र-शस्त्र जैसी लड़ाई से जुड़ी सामग्री नहीं पाई गई है इससे यह प्रतीत होता है सभ्यता शांतिप्रिय सभ्यता थी जो व्यापार और विकास में विश्वास रखती थी उनकी लिखी चित्र लिपि को पढ़ पाना आज तक इतिहासकारों के लिए संभव नहीं हो पाया है लेकिन जब यह लिपि को पढ़ा जाएगा तभी सभ्यता से जुड़े बहुत से राज खुल जाएंगे शायद वो राज हम भारतीयों के लिए और भी गौरवान्वित करने में सक्षम होंगे.

 

1. शहरीकरण और नगर नियोजन

सिंधु घाटी सभ्यता के लोग शहरीकरण और नगर नियोजन में अत्यधिक उन्नत थे। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे शहरों में सीधी और चौड़ी सड़कों के साथ-साथ अच्छी तरह से विकसित जल निकासी प्रणाली भी थी। घरों का निर्माण पक्की ईंटों से किया जाता था, जो उस समय की उन्नत निर्माण तकनीकों का प्रमाण है। यहां के घरों में आमतौर पर आंगन और कक्षों का विभाजन होता था, जो परिवारों के निजी जीवन और सामाजिक जीवन को दर्शाता है।

 

2. जल निकासी और स्नानघर

सिंधु घाटी सभ्यता के शहरों में जल निकासी की एक अत्यंत उन्नत प्रणाली पाई जाती है। मोहनजोदड़ो में बने विशाल स्नानघर इसका उत्कृष्ट उदाहरण है। यह स्नानघर एक बड़े जलाशय के रूप में था, जो न केवल धार्मिक या सांस्कृतिक उद्देश्यों के लिए बल्कि साफ-सफाई और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण था। जल निकासी प्रणाली का उत्कृष्ट प्रबंधन यह दर्शाता है कि यहां के लोग स्वास्थ्य और स्वच्छता को प्राथमिकता देते थे।

 

3. व्यापार और आर्थिक संरचना

सिंधु घाटी सभ्यता के लोग व्यापार और वाणिज्य में भी कुशल थे। वे न केवल आंतरिक व्यापार करते थे बल्कि मेसोपोटामिया और मध्य एशिया जैसे दूरस्थ क्षेत्रों के साथ भी व्यापारिक संबंध रखते थे। व्यापार के लिए वे समुद्री मार्गों और नदियों का उपयोग करते थे। उनके पास तौलने और मापने के सटीक साधन थे, जो उनके व्यापारिक लेन-देन की सटीकता को दर्शाते हैं। व्यापारिक गतिविधियों के लिए मुद्रा या मुद्रा जैसी वस्तुओं का भी उपयोग किया जाता था, हालांकि उनका स्वरूप आज के समय की मुद्रा से अलग था।

 

 

4. धार्मिक विश्वास और संस्कृति

सिंधु घाटी सभ्यता के धार्मिक विश्वास और संस्कार भी उन्नत और विविध थे। यहां के लोग मूर्तिपूजा करते थे, जिसके प्रमाण मिट्टी और पत्थर की मूर्तियों के रूप में मिले हैं। ये मूर्तियाँ प्रायः मातृ देवता और पशु आकृतियों को दर्शाती हैं। धार्मिक संस्कारों में जल का महत्वपूर्ण स्थान था, जो उनके स्नानघरों और जलाशयों के महत्व से भी स्पष्ट होता है। सिंधु घाटी सभ्यता के लोग प्रकृति की पूजा करते थे और उनके धार्मिक स्थल भी प्राकृतिक परिवेश में स्थित होते थे।

 

5. लिपि और लेखन

सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि अब तक पूरी तरह से पढ़ी नहीं जा सकी है, लेकिन खुदाई में मिले अभिलेखों से पता चलता है कि यहां के लोग लेखन के लिए चित्रलिपि का प्रयोग करते थे। इस लिपि का उपयोग व्यापारिक लेन-देन, धार्मिक संस्कारों और प्रशासनिक कार्यों में किया जाता था। लिपि का रहस्य और इसके अर्थ का अभाव सिंधु घाटी सभ्यता के अध्ययन में एक प्रमुख चुनौती बना हुआ है।

 

6. सामाजिक संरचना

सिंधु घाटी सभ्यता में सामाजिक संरचना भी उन्नत थी। समाज का विभाजन विभिन्न वर्गों में किया गया था, जिसमें शासक वर्ग, व्यापारी वर्ग और श्रमिक वर्ग शामिल थे। समाज में समानता और न्याय का महत्व था, जो उनके कानून और न्याय प्रणाली से भी स्पष्ट होता है। यहां के लोग कला और शिल्प में भी निपुण थे, जो उनके रोज़मर्रा के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।

 

7. आधुनिक निर्माण तकनीक

सिंधु घाटी सभ्यता के लोग निर्माण कला में अत्यधिक निपुण थे। उनके द्वारा उपयोग की गई पक्की ईंटें, जो समान आकार की थीं, आज भी उनके निर्माण कौशल की गवाही देती हैं। यह पक्की ईंटें उनके घरों, सार्वजनिक भवनों, स्नानघरों और जल निकासी तंत्रों में उपयोग की जाती थीं। इस सभ्यता के लोगों ने पहले से ही वास्तुशिल्प के आधारभूत सिद्धांतों का उपयोग किया था, जो आधुनिक काल में भी प्रासंगिक हैं।

 

8. कृषि और खाद्य उत्पादन

सिंधु घाटी सभ्यता के लोग कृषि में भी उन्नत थे। वे गेहूं, जौ, सरसों, बाजरा, और कपास जैसी फसलों की खेती करते थे। सिंचाई के लिए नदियों और नहरों का उपयोग किया जाता था। इसके अलावा, पशुपालन भी उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा था, जिसमें गाय, बैल, भेड़ और बकरी जैसे जानवरों को पाला जाता था। यह सभ्यता खाद्य सुरक्षा और कृषि उत्पादकता के मामले में आत्मनिर्भर थी, जो उनके सामाजिक और आर्थिक जीवन को सुदृढ़ बनाती थी।

 

9. हस्तशिल्प और उद्योग

सिंधु घाटी सभ्यता के लोग शिल्पकारी और उद्योग में अत्यधिक निपुण थे। यहां के लोग कुम्हारगीरी, वस्त्र बुनाई, आभूषण निर्माण, और तांबे तथा कांसे की वस्तुओं का निर्माण करते थे। उनके द्वारा बनाए गए मनके, सील (मुद्राएँ), बर्तन और आभूषण उच्च कोटि की कलात्मकता और सटीकता का प्रमाण हैं। यह दिखाता है कि उनके पास विशेष कारीगर और कारीगरी की परंपरा थी, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही थी।

 

10. धार्मिक स्थल और संस्कार

सिंधु घाटी सभ्यता के धार्मिक स्थल और संस्कार उनके जीवन का एक अभिन्न हिस्सा थे। उनके धार्मिक स्थलों में जलाशय, मंदिर और सार्वजनिक स्नानघर शामिल थे। यह संभावना है कि वे मातृ देवी और प्रकृति की पूजा करते थे, जो उनकी धार्मिक मान्यताओं का हिस्सा थी। इसके अलावा, वे संभवतः योग और ध्यान जैसी प्रथाओं का पालन करते थे, जैसा कि कुछ मूर्तियों और चित्रों से अनुमान लगाया गया है।

 

11. राजनीतिक और प्रशासनिक प्रणाली

इस सभ्यता की राजनीतिक और प्रशासनिक प्रणाली भी अत्यंत संगठित थी। हालांकि, इस विषय में प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन नगरों की उत्कृष्ट योजना, जल निकासी व्यवस्था, और सार्वजनिक भवनों की उपस्थिति इस बात का संकेत देती है कि यहां के लोगों के पास एक संगठित प्रशासनिक प्रणाली थी। संभवतः, स्थानीय शासक या प्रशासक होते थे, जो शहरों और गांवों के संचालन का प्रबंधन करते थे। इसका सबसे अच्छा उदाहरण मोहनजोदड़ो का “महान स्नानघर” है, जो एक केंद्रीय सार्वजनिक स्थान था और संभवतः प्रशासनिक कार्यों के लिए उपयोग किया जाता था।

 

12. मुद्राएँ और लेखन प्रणाली

सिंधु घाटी सभ्यता की मुद्राएँ उनकी सांस्कृतिक और आर्थिक गतिविधियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थीं। ये मुद्राएँ आमतौर पर पत्थर या धातु से बनाई जाती थीं और उनमें पशु आकृतियों, देवताओं, और चित्रलिपि के प्रतीकों का चित्रण होता था। हालांकि, सिंधु लिपि को आज तक पूरी तरह से समझा नहीं जा सका है, लेकिन यह निश्चित है कि इस लिपि का उपयोग व्यापारिक और धार्मिक उद्देश्यों के लिए किया जाता था। मुद्राओं पर अंकित चित्र और प्रतीक उस समय के धार्मिक विश्वासों और आर्थिक लेन-देन का विवरण प्रस्तुत करते हैं।

 

13. संपर्क और सांस्कृतिक आदान-प्रदान

सिंधु घाटी सभ्यता का संपर्क मेसोपोटामिया, मिस्र, और मध्य एशिया की अन्य सभ्यताओं से भी था। इसके प्रमाण हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में मिले मेसोपोटामियाई वस्त्रों, मुद्राओं और अन्य सांस्कृतिक वस्तुओं में देखे जा सकते हैं। यह दर्शाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोग न केवल आत्मनिर्भर थे, बल्कि उन्होंने अन्य सभ्यताओं के साथ भी सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध स्थापित किए थे। यह सभ्यता एक वैश्विक सभ्यता का उदाहरण थी, जिसने विभिन्न संस्कृतियों से विचारों और तकनीकों को अपनाया और उन्हें अपने ढांचे में ढाला।

 

14. नागरिक जीवन और समाज

सिंधु घाटी सभ्यता का नागरिक जीवन अत्यंत संगठित और अनुशासित था। लोग अपने दैनिक जीवन में स्वच्छता, नियम-कानून, और सामाजिक समरसता का पालन करते थे। उनके समाज में जाति या वर्ग भेदभाव के प्रमाण कम मिलते हैं, जो यह दर्शाता है कि यहां का समाज समानता और न्याय पर आधारित था। इसके अलावा, महिलाओं की स्थिति भी समाज में महत्वपूर्ण थी, जैसा कि उनकी मूर्तियों और चित्रों से पता चलता है। यहां के लोग शांतिप्रिय और सहनशील थे, और उनके समाज में अपराध की दर भी कम थी।

 

15. वस्त्र और फैशन

सिंधु घाटी सभ्यता के लोग वस्त्र और फैशन के प्रति भी सजग थे। उनके द्वारा पहने जाने वाले वस्त्रों में कपास और ऊन का उपयोग किया जाता था। कपड़ों की सिलाई, बुनाई, और रंगाई की उच्च गुणवत्ता दर्शाती है कि वे वस्त्र निर्माण में निपुण थे। पुरुष और महिलाएं दोनों आभूषण पहनते थे, जो विभिन्न धातुओं और पत्थरों से बने होते थे। इनके आभूषणों में मोती, चूड़ियां, हार, और अंगूठियां शामिल थीं, जो उनके सौंदर्य और सामाजिक स्थिति का प्रतीक थे।

 

16. वैज्ञानिक और गणितीय ज्ञान

सिंधु घाटी सभ्यता के लोग गणित और विज्ञान में भी प्रवीण थे। उनके पास सटीक मापने और तौलने के उपकरण थे, जो उनके वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तकनीकी कौशल का प्रमाण हैं। जल निकासी तंत्र, नगर नियोजन, और वास्तुकला में उनकी विशेषज्ञता यह दर्शाती है कि वे गणित और विज्ञान के विभिन्न सिद्धांतों का गहन अध्ययन और उपयोग करते थे। इसके अलावा, उनके पास खगोल विज्ञान और ज्योतिष का भी ज्ञान था, जो उनके धार्मिक और सामाजिक जीवन का हिस्सा था।

 

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