विवेकानंद के विचार-1

pathgyan.com में आपका स्वागत है, विवेकानंद के विचार-1, जिनको आधुनिक शंकराचार्य भी कहा गया है उनके विचार।

विवेकानंद के विचार-1
विवेकानंद के विचार-1

 

विवेकानंद के विचार-1

 

                                            विश्वास और शक्ति
  • तुम प्रभु की संतान अमर आनंद के हिस्सेदार पवित्र और पूर्ण हो ए पृथ्वी में निवासियों ईश्वर स्वरूप भाइयों तुम भला पापी मनुष्य को पापी कहना ही पाप है यह कथन मानव स्वरूप पर एक लांछन है ऐ  सिहो आओ और अपने को भेड़ बकरी होने का भ्रम दूर कर दो तुम अमर आत्मा शुद्ध बुद्ध मुक्त स्वभाव शाश्वत और मंगलमय हो तुम उसके गुलाम नहीं
  • जो अपने आप में विश्वास नहीं करता वह नास्तिक है प्राचीन धर्म ने कहा है वह नास्तिक है जो ईश्वर में विश्वास नहीं करता नया धर्म कहता है वह नास्तिक है जो अपने आप में विश्वास नहीं करता.
  • विश्वास विश्वास अपने आप में विश्वास ईश्वर में विश्वास यहीं महानता कर रहस्य है यदि तुम पुराण के 33 करोड़ देवी देवताओं और विदेशियों द्वारा बतलाए हुए सब देवताओं में भी विश्वास करते हो पर यदि अपने आप में विश्वास नहीं करते तो तुम्हारी मुक्ति नहीं हो सकती अपने आप में विश्वास करो उसे पर स्थिर रहो और शक्तिशाली बनो
  • सफलता प्राप्त करने के लिए जबरदस्त सतत प्रयत्न और जबरदस्त इच्छा रखो प्रयत्नशील व्यक्ति कहता है मैं खुद समुद्र पी जाऊंगा मेरी इच्छा से पर्वत टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे इस प्रकार की शक्ति और इच्छा रखो का परिश्रम करो तुम अपने उद्देश्य को निश्चित पा जाओगे
  • सबसे बड़ी सच्चाई है शक्ति ही जीवन और कमजोरी ही मृत्यु है शक्ति परम सुख है अजर अमर जीवन है कमजोरी कभी न हटाने वाला बोझ और यंत्रणा है कमजोरी ही मृत्यु है
  • संसार को केवल कुछ 100 स्त्री और पुरुषों की आवश्यकता है जो साहसी हो उस साहस का अभ्यास करो जिसमें सच्चाई जानने की हिम्मत है जिसमें जीवन के सत्य को बतलाने की हिम्मत है जो मृत्यु से नहीं कांपता मृत्यु का स्वागत करता है और मनुष्य को बताता है कि वह अमर आत्मा है समस्त विश्व में कोई उसका हनन नहीं कर सकता तब तुम स्वतंत्र हो जाओगे
  • कर्म करना बहुत अच्छा है पर वह विचारों से आता है इसलिए अपने मस्तिष्क को उच्च विचारों और उच्चतम आदर्श से भर लो उन्हें रात दिन अपने सामने रखो उन्हें में से महान कार्यों का जन्म होता है
  • संसार की क्रूरता और पापों की बात मत करो इस बात पर खेद करो कि तुम अभी भी क्रूरता देखने को विवश हो इसी का तुमको दुख होना चाहिए कि तुम सब और केवल पाप देखने के लिए बात बाध्य हो यदि तुम संसार की सहायता करना अपना आवश्यक समझते हो तो उसकी निंदा मत करो उसे और अधिक कमजोर मत बनाओ पाप दुख आदि सब क्या है कुछ भी नहीं वह कमजोरी के ही परिणाम है इस प्रकार के उपदेशों से संसार दिन प्रतिदिन अधिकारी कमजोर बनाया जा रहा है
  • बाल्य काल से ही उनके मस्तिष्क में निश्चित दिल और सहायक विचारों को प्रवेश करने दो अपने आप को इन विचारों के प्रति उन्मुक्त रखो ना की कमजोरी तथा अक्रमण्य बनाने वाले विचारों के प्रति
  • असफलता की चिंता मत करो यह बिलकुल स्वाभाविक है वह असफलताएं जीवन के सौंदर्य है उनके बिना जीवन क्या होगा जीवन में यदि संघर्ष ना हो रहे तो जीवन रहना ही व्यर्थ है इसी संघर्ष में है जीवन का काव्य संघर्ष और त्रुटियों की परवाह मत करो मैं किसी गाय को झूठ बोलते नहीं सुना पर वह केवल गए हैं मनुष्य कभी नहीं इसलिए इन असफलताओं पर ध्यान मत दो यह छोटी फिसलने हैं आदर्श को सामने रखकर हजार बार आगे बढ़ने का प्रयत्न करो यदि तुम हजार बार भी असफल होते हो तो एक बार फिर प्रयत्न करो
  • विश्व की समस्त शक्तियां हमारे हैं हमने अपने हाथ अपनी आंखों पर रख लिया है और चिल्लाते हैं कि सब और अंधेरा है जान लो कि हमारे चारों ओर अंधेरा नहीं है अपने हाथ अलग करो तुम्हें प्रकाश दिखाई देने लगेगी जो पहले भी था अंधेरा कभी नहीं था कमजोरी कभी नहीं था हम सब मुर्ख हैं जो चिल्लाते हैं कि हम कमजोर हैं अपवित्र हैं
  • कमजोरी का इलाज कमजोरी का विचार करना नहीं है शक्ति का विचार करना है मनुष्य को शक्ति की शिक्षा दो जो पहले से ही उसमें है
  • अपने आप में विश्वास रखने का आदर्श ही सबसे बड़ा सहायक है सभी क्षेत्रों में यदि अपने आप में विश्वास करना है हमें सिखाया जाता  और उसका अभ्यास कराया जाता  तो मुझे विश्वास है कि हमारी बुराइयां तथा दुखों का बहुत बड़ा भाग आज तक मिट गया होता
  • यदि मानव जाति के आज तक के इतिहास में महान पुरुषों और स्त्रियों के जीवन में सबसे बड़ा परिवर्तन शक्ति है तो वह आत्मविश्वास ही है जन्म से ही यह विश्वास रहने के कारण की यह महान होने के लिए ही पैदा हुए हैं महान बने
  • मनुष्य को वह जितना नीचे जाता है जाने दो एक समय ऐसा अवश्य आएगा जब वह ऊपर उठने का सहारा पाएगा और अपने आप में विश्वास करना सीखेगा पर हमारे लिए यही अच्छा है कि हम इसे पहले से ही जान ले अपने आप में विश्वास करना सीखने के लिए हम इस प्रकार के कटु अनुभव क्यों करें
  • हम देख सकते हैं एक तथा दूसरे मनुष्य के बीच अंतर होने का कारण उसका अपने आप में विश्वास होना और ना होना ही है होने से सब कुछ हो सकता है मैंने अपने जीवन में इसका अनुभव किया है अब भी कर रहा हूं और जैसे-जैसे मैं आगे बढ़ता जा रहा हूं मेरा विश्वास और भी बढ़ता जा रहा है
  • क्या तुम जानते हो तुम्हारे भीतर अभी भी कितना तेज कितनी शक्तियां छिपी हुई है क्या कोई वैज्ञानिक भी इन्हें जान सकता है मनुष्य का जन्म हुए लाखों वर्ष हो गए पर अभी तक उसकी असीम शक्ति का केवल एक अत्यंत छोटा भाग ही अभियुक्त हुआ है इसलिए तुम्हें यह ना कहना चाहिए कि तुम शक्तिहीन हो तुम क्या जानो की ऊपर दिखाई देने वाले पाट की ओट में शक्ति कितनी संभावना है शक्ति जो तुम्हारे भीतर है उसके बहुत ही कम भाव को तुम जानते हो तुम्हारे पीछे अनंत शक्ति और अनंत शक्ति का सागर है
  • जड़ यदि शक्तिशाली है तो विचार सर्वशक्तिमान है इस विचार को अपने जीवन में उतरे और अपने आप को सर्वशक्तिमान महिमा और गौरव संपन्न अनुभव करो ईश्वर करे तुम्हारे मस्तिष्क में किसी को कुसंस्कार को स्थान ना मिले ईश्वर करें हम जन्म से ही को कुसंस्कार डालने वाले वातावरण में ना रहे और कमजोरी तथा बुराई के विचारों से बचें
  • तुम अपने जीवाणु को उसकी अवस्था से लेकर इस मनुष्य शरीर तक की अवस्था का निरीक्षण करो यह सब किसने किया तुम्हारे अपनी इच्छा शक्ति ने यह इच्छा शक्ति सर्वशक्तिमान है क्या तुम अस्वीकार कर सकते हो जो तुमने यहां तक लाई है यही अब भी तुम्हें और ऊंचे पर ले जा सकती है तुम्हें केवल चरित्रवान होने और अपनी इच्छा शक्ति को अधिक बलवान बनाने की आवश्यकता है
  • उपनिषद में जो शब्द है जो बहुत अच्छा लगता है उसमें कहा गया है मनुष्य को निर्भय होना चाहिए उसको किसी से डरना नहीं चाहिए निर्भीकता सत्य है इस जगत में अथवा आध्यात्मिक जगत में भय ही पाप तथा पतन का कारण है भय से ही व्यक्ति दुखी होता है यही मृत्यु का कारण है तथा इसी के कारण सारी बुराइयां तथा पाप होता है
  • अपने आप को शक्तिशाली बनाओ, और अधिक रोने से कुछ नहीं होगा खड़े हो जाओ और मनुष्य बनो.
  • सब से पहले हमारे तरुणों को मजबूत बनना चाहिए। धर्म इसके बाद की वस्तु हैं। मेरे तरुण मित्रों! शक्तिशाली बनो, मेरी तुम्हें यही सलाह हैं। तुम गीता के अध्ययन की अपेक्षा फुटबाल के द्वारा ही स्वर्ग के अधिक समीप पहुँच सकोगे। ये कुछ कड़े शब्द हैं, पर मैं उन्हें कहना चाहता हूँ, क्योंकि मैं तुम्हें प्यार करता हूँ। मैं जानता हूँ कि काँटा कहाँ चुभता हैं। मुझे इसका कुछ अनुभव हैं। तुम्हारे स्नायु और मांसेपशियाँ अधिक मजबूत होने पर तुम गीता अधिक अच्छी तरह समझ सकोगे। तुम, अपने शरीर में शक्तिशाली रक्त प्रवाहित होने पर, श्रीकृष्ण के तेजस्वी गुणों और उनकी अपार शक्ति को अधिक समझ सकोगे। जब तुम्हारा शरीर मजबूती से तुम्हारे पैरों पर खड़ा रहेगा और तुमअपने को ‘मनुष्य’ अनुभव करोगे, तब तुम उपनिषद् और आत्मा की महानता को अधिक अच्छा समझ सकोगे।
  • ‘मनुष्य’ – केवल ‘मनुष्य’ ही हमें चाहिए, फिर हरएक वस्तु हमें प्राप्त हो जाएगी। हमें चाहिए केवल हढ़ तेजस्वी, आत्मविश्वासी तरुण ठीक ठीक सच्चे हृदयवाले युवक । यदि सौं भी ऐसे व्यक्ति हमें मिल जाएँ, तो संसार आन्दोलित हो उठेगा उसमे विशाल परिवर्तन हो जाएगा।
  • इच्छाशक्ति ही सब से अधिक बलवती हैं। इसके सामने हर एक वस्तु झुक सकती हैं, क्योंकि वह ईश्वर और स्वयं ईश्वर से ही आती हैं; पवित्र और दृढ़ इच्छाशक्ति सर्वशक्तिमान हैं। क्या तुम इसमें विश्वास करते हो?
    हाँ, मैं जैसे-जैसे बड़ा होता जाता हूँ वैसे ही वैसे मुझे सब कुछ ‘मनुष्यत्व’ में ही निहित मालूम पड़ता है। यह मेरी नयी शिक्षा है। बुराई भी करो, तो ‘मनुष्य’ की तरह। यदि आवश्यक ही हो, तो निर्दयी भी बनो, पर उच्च स्तर पर.

 

 

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रामचरतिमानस आवाहन मंत्र

6 thoughts on “विवेकानंद के विचार-1”

  1. Today, I went to the beach with my kids. I found a sea shell and gave it to my 4 year old daughter and said “You can hear the ocean if you put this to your ear.” She put the shell to her ear and screamed.
    There was a hermit crab inside and it pinched her ear.

    She never wants to go back! LoL I know this is entirely
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