मात्रिक छंद की परिभाषा उदाहरण सहित

मात्रिक छंद की परिभाषा उदाहरण सहित, मात्रिक छंद भारतीय काव्यशास्त्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह छंद की एक प्रणाली है जिसमें कविता की प्रत्येक पंक्ति में निश्चित मात्रा (syllables) की संख्या होती है। मात्रा के अनुसार छंद के विभिन्न प्रकार होते हैं, और ये मात्रा की संख्या और व्यवस्था पर आधारित होते हैं।

 

मात्रिक छंद की परिभाषा उदाहरण सहित

मात्रिक छंद की परिभाषा:

मात्रिक छंद वह छंद है जिसमें प्रत्येक पंक्ति में निर्धारित मात्रा की संख्या होती है। यहाँ “मात्रा” का तात्पर्य कविता की लय और ध्वनि पर आधारित यूनिट से है, जो एक निश्चित ध्वनि या वर्ण की विशेषता को दर्शाता है। यह छंद के संगीतात्मक गुणों को बनाए रखने में सहायक होता है और काव्य की लयबद्धता सुनिश्चित करता है

मात्रिक छंद के प्रमुख उदाहरण:

  1. दोहा:
    • वर्णन: हिंदी काव्यशास्त्र में एक प्रसिद्ध मात्रिक छंद है जिसमें प्रत्येक पंक्ति में 16 मात्राएँ होती हैं। दोहे के दोनों पंक्तियों में समान मात्राओं की संख्या होती है।
    • उदाहरण:
      जिन के सिर पर गुरु सवार, (16 मात्राएँ) उनका सिर न तनिक झुके। (16 मात्राएँ)
       
  2. चौपाई:
    • वर्णन: यह छंद 16 मात्राओं का होता है, जिसमें प्रत्येक पंक्ति में 8 मात्राएँ होती हैं। चौपाई की खासियत है कि यह लगभग सभी प्रकार की कविताओं में प्रयोग की जाती है।
    • उदाहरण:
      सुनहु तात राम कहहि नाथा, (8 मात्राएँ)
      कौं सखि देखि काहू की माता। (8 मात्राएँ)
       
       

  3. गीतिका:
    • वर्णन: इसमें प्रत्येक पंक्ति में 8 मात्राएँ होती हैं। यह छंद सुमधुरता और लय के लिए प्रसिद्ध है।
    • उदाहरण:
      मधुर मुस्कान छिपा लो, (8 मात्राएँ)
      आँसू की धार बिखरा दो। (8 मात्राएँ)
       

  4. सोरठा:
    • वर्णन: इस छंद में प्रत्येक पंक्ति में 12 मात्राएँ होती हैं। यह छंद मुख्य रूप से भक्ति काव्य में प्रयोग होता है।
    • उदाहरण:
      हरि ने कहा, 'सुनो भाई,' (12 मात्राएँ)
      सच्चे भक्त की यही पहचान। (12 मात्राएँ)

मात्रिक छंद की विशेषताएँ:

  • लय और ताल: मात्रिक छंद कविता को एक निश्चित लय और ताल प्रदान करता है, जिससे कविता का संगीतात्मक प्रभाव बढ़ता है।
  • संगीतात्मकता: छंद की नियमित मात्रा कविता को एक संगीतात्मक गुण प्रदान करती है, जो पाठक या श्रोता को आकर्षित करता है।
  • काव्य की संरचना: मात्रिक छंद काव्य की संरचना और स्वरूप को नियमित करता है, जिससे कविता अधिक व्यवस्थित और प्रभावी बनती है।

इस प्रकार, मात्रिक छंद भारतीय काव्यशास्त्र में एक अनिवार्य तत्व है जो कविता की लय, संगीतात्मकता, और संरचना को परिभाषित करता है।

 

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