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भारतीय जड़ी बूटी का बचाव और ज्ञान जरूरी (bharatiya jadi buti)
प्रकृतिने मनुष्यके प्रादुर्भावके पहले ही विभिन्न प्रकारकी जड़ी-बूटियाँ एवं वनस्पतियाँ पैदा कर दीं। इन जड़ी-बूटियों में वे सारी गुणवत्ताएँ स्थित हैं, जो रोगी होनेसे बचाने तथा रोगको ठीक करनेके लिये आवश्यक हैं।
मनुष्यने सबसे पहले कब और किस पौधेका उपयोग औषधिके रूपमें किया था, इसका कोई प्रामाणिक दस्तावेज उपलब्ध नहीं है, पर हमारे देशमें ऋग्वेद औषधीय पौधोंके विषयमें जानकारी प्रदान करनेवाला प्रथम प्रामाणिक ग्रन्थ है। ऋग्वेदके द्वारा पता चलता है कि आर्य मनीषी प्राचीन कालमें सोम नामक पौधेका उपयोग औषधिके रूपमें करते थे।
प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धतिमें जड़ी-बूटियोंसे निर्मित औषधियोंका अधिक वर्णन मिलता है। इसका एक प्रमुख कारण यह है कि मनुष्यने रोगग्रस्त होते ही पहले उन पौधोंका औषधिके रूपमें उपयोग किया जो उन्हें अपने नजदीक सरलतासे मिल जाते थे।
यही कारण है कि वैदिक चिकित्सकों एवं ग्रन्थकारोंने यह निष्कर्ष निकाला कि रोगी अपने आस-पास उगनेवाली जड़ी-बूटियोंसे ही ठीक हो सकता है। उसे जड़ी-बूटियोंकी खोजमें व्यर्थ ही दूर देशतक भटकनेकी कोई आवश्यकता नहीं है।
जड़ी-बूटियोंके विदेशी शोधकर्ताओंने सदासे ही जंगलमें रहकर विभिन्न प्राकृतिक औषधियोंसे चिकित्सा कर रहे व्यक्तियोंको सम्मान दिया है। एक ब्रिटिश विशेषज्ञ अपनी पुस्तकमें लिखते हैं कि यदि भारतीय जड़ी- बूटियोंके विषय में जानकारी चाहिये तो आपको जंगलसे जुड़े लोगों पर विश्वास करना होगा, उनके साथ रहना होगा और जड़ी-बूटियोंके अन्वेषणमें घने जंगलोंके अंदर जाना होगा तथा ऊँचे पहाड़ोंपर भी चढ़ना होगा।
विश्वमें जड़ी-बूटियोंसे निर्मित औषधियोंका प्रचलन जोरोंपर है। नवीनतम आकलन के अनुसार वर्तमानमें विश्व में लगभग तीन लाख करोड़ रुपयेकी जड़ी-बूटीसे बनी औषधियोंकी बिक्री हो रही है। जड़ी-बूटीके क्षेत्रमें
विश्वकी प्रमुख कम्पनियाँ प्राकृतिक रूपसे सम्पन्न भारतको आधार बनाना चाह रही हैं। भारतमें वैदिक कालसे ही औषधीय महत्त्व रखनेवाले पौधों, लताओं और वृक्षोंकी पहचान की गयी है। जड़ी-बूटियोंके चमत्कारिक औषधीय प्रभावको वैज्ञानिक धरातलपर जाँचा – परखा जा चुका है।
आज भी आयुर्वेदिक दवाओंका प्रचलन देहातों, कस्बों और छोटे शहरोंमें अधिक है। महानगरोंका सम्पन्न वर्ग भी एलोपैथिक दवाओंके दुष्प्रभावोंसे घबड़ाकर आयुर्वेदकी ओर लौटने लगा है। एकाएक ही विश्वमें एलोपैथिक दवाओंके स्थानपर वैकल्पिक जड़ी-बूटीकी परम्परागत दवाओंकी तरफ लोगोंका झुकाव बढ़ने लगा है।
अनेक कम्पनियोंने जड़ी-बूटी (हर्बल) सौन्दर्य-प्रसाधनोंके उत्पादनोंको बाजारमें उतारा है। भारतसे औषधीय पौधे, वृक्ष उत्पादोंका निर्यात भी जोर पकड़ रहा है। वर्तमानमें चार सौ छत्तीस करोड़ रुपयोंके औषधीय पौधोंका निर्यात हो रहा है। इसके निर्यातमें सौ गुनातक वृद्धि होनेकी पूरी सम्भावना है।
महर्षि चरककी ‘चरकसंहिता में पेड़-पौधोंके औषधीय महत्त्वकी गहन विवेचना की गयी है। इसमें प्रत्येक पेड़- पौधोंकी जड़से लेकर पुष्प, पत्ते और अन्य भागोंके औषधीय गुणों और उनसे रोगोंके उपचारकी विधियाँ वर्णित हैं। आयुर्वेदके देवता धन्वन्तरिने जड़ी-बूटियाँके अलौकिक संसारसे जगत्का साक्षात्कार कराया है।
पेड़- पौधोंका औषधीय महत्त्व अनेक पौराणिक आख्यानों में व्यक्त हुआ है। पीपलमें भगवान् विष्णुका वास बताया गया है। बीसवीं सदीमें वैज्ञानिकोंने यह खोज निकाला कि केवल पीपल ही एक ऐसा वृक्ष है, जो रात – दिन ऑक्सीजन छोड़ता है, जबकि अन्य पेड़ रातको कार्बन डाइ आक्साइड छोड़ते हैं। घरोंमें तुलसीके पौधोंके पूजनकी सुदीर्घ परम्परा है। तुलसीके पौधेके सभी भाग यानी जड़, फूल, फल, पत्ती तथा डंठल आदिका औषधीय महत्त्व है। भारतमें वर्षोंसे जहरीले आक के पौधेसे फोड़े-फुंसीकाउपचार किया जाता है।
गाँवोंसे शहरोंतक नीमके औषधीय गुणोंसे कौन अपरिचित है ? चर्मरोगमें, कपड़ोंको कीड़ोंसे बचानेमें, दाँतोंको नीरोग रखनेमें तथा अनाजको घुन लगनेसे बचानेमें नीमका उपयोग सदियोंसे लोग करते आये हैं। नीम-खलीकी खाद दोहरा काम करती है – खादका तथा फसलको कीटाणुमुक्त रखनेका । चेचकके फैलनेपर नीमकी पत्तियाँको दरवाजेपर बाँधनेकी पुरानी परम्परा है। विवाहके अवसरपर कहीं-कहीं वरपक्ष जब कन्यापक्षके दरवाजेपर जाता है और तोरण मारता है तो वह भी नीमकी ही डाली रहती है।
विश्व-स्वास्थ्य-संगठनने कहा है कि अगले बीस वर्षोंमें यानी सन् २०२० ई० तक एलोपैथीकी एंटीबायटिक दवा मनुष्यके शरीरपर असर करना बंद कर देगी, यानी शरीर एंटीबायटिकके प्रति इम्यून हो जायगा। यह स्थिति आनेसे पहले ही पूरे विश्वको सचेत हो जाना होगा कि तब शरीरको एलोपैथी पद्धति कैसे नीरोग रख पायेगी। इसका एकमात्र उपाय है जड़ी-बूटियोंका अधिकाधिक उपयोग।
यही कारण है कि विश्वका झुकाव जड़ी बूटियोंके उपयोगकी ओर बढ़ा है। सारे विश्वकी निगाहें हमारे देशकी जड़ी-बूटियोंपर लगी हैं। क्यों ? कारण, हमारे पास जड़ी-बूटियोंके विज्ञानका शास्त्र आयुर्वेदके रूपमें उपलब्ध है। हमारा आयुर्वेद विश्वका प्राचीनतम शास्त्र है। हमारी जड़ी-बूटियाँ भी सर्वाधिक शक्तिसम्पन्न हैं ।
कारण, प्रखर सूर्य तथा सभी प्रकारके मौसम ही उन्हें शक्तिसम्पन्नता प्रदान करते हैं। विकसित देशोंके पास प्रखर सूर्य नहीं हैं तथा इतने मौसम भी वहाँ नहीं होते हैं। यही कारण है कि हमारी जड़ी-बूटियाँ दुनियामें सर्वाधिक प्रभावशाली हैं। हमें केवल इसका प्रसार-प्रचार करके इसे विश्वव्यापी बनाना है।
आज केवल आयुर्वेदकी प्रामाणिकताके आधारपर विश्वबाजार हमारी जड़ी-बूटियोंकी ओर आकर्षित नहीं होगा। विदेशों में आकर्षण बढ़ाने हेतु प्रयोगशालामें जाँच तथा क्लिनिकल ट्रायल भी आवश्यक है। विश्वके सामने जब सप्रमाण सारी गुणवत्ता रखी जायगी तो हमारे देशकी
जड़ी-बूटियोंकी माँग विश्व स्तरपर बढ़ना अवश्यम्भावी है। हमें विकसित देशोंकी आवश्यकताके अनुरूप तो निर्माण करना ही होगा, हमारे देशवासियोंमें भी जड़ी-बूटियोंसे निर्मित औषधियोंके उपयोगके प्रति भी पुनः आकर्षण पैदा करना होगा ।
हमारे देशमें जड़ी-बूटियाँ सर्वत्र फैली हैं। जंगल एवं पहाड़ इनसे भरे पड़े हैं। बहुत-सी दुर्लभ जड़ी- बूटियोंको सुरक्षित रखनेकी भी आवश्यकता है, ताकि उनका लोप न हो जाय। हमारी सरकारको भी जड़ी- बूटियोंके महत्त्वके प्रति सचेत होनेकी आवश्यकता है, ताकि आवश्यकताके अनुरूप प्रयोगशालाओंका निर्माण हो तथा उन्हें पूरी गुणवत्ताके साथ सुरक्षित रख सके ।
यदि फ्रीज – ड्राइंगकी नयी तकनीकसे जड़ी-बूटियोंको सुखाया जाय तो सारी गुणवत्ताएँ सुरक्षित रहेंगी, जैसे रंग, स्वाद, गन्ध तथा शक्तिसम्पन्नता आदि। इन्हें कैप्सूलमें भरकर वर्षपर्यन्त सुलभ कराया जा सकता है। आयुर्वेदसम्मत जड़ी- बूटियाँको उपयोगी बनाने हेतु प्राचीन एवं नवीनको एक साथ जुड़ना पड़ेगा ।
यदि आजके विज्ञानकी देन फ्रीज- ड्राइंग तकनीक न होती तो जड़ी-बूटियोंके सारे गुण – धर्म सुरक्षित रख पाना सम्भव न होता । आजकल रोगोंकी जाँचके भी काफी उपकरण विज्ञानने हमें सुलभ कराये हैं, जबकि पहले केवल नाडीविज्ञान था । जाँच करानेमें इन विज्ञानसम्मत उपकरणों का उपयोग हमारे लिये अत्यन्त लाभकारी है।
सरकारको जड़ी-बूटियोंके उत्पादन, संरक्षण तथा दवाके रूपमें उपयोग हेतु फ्रीज ड्राइंग तकनीकको विकसित करनेकी परम आवश्यकता है। चीन जड़ी-बूटियोंके निर्यातसे २२००० करोड़ रुपये तथा थाइलैंड १०००० करोड़ रुपयेकी विदेशी मुद्रा अर्जित कर रहा है।
निर्यातके इन आँकड़ोंके सामने हमारा निर्यात नगण्य है। यदि हमने ध्यान नहीं दिया तो हमारी जड़ी-बूटियाँ विदेशोंसे निर्मित होकर हमारे ही देशमें आयेंगी और हमें ऊँचे मूल्योंमें खरीदने के लिये विवश होना पड़ेगा। यदि ऐसा हुआ तो यह हमारा घोर निन्दनीय अपराध होगा और भावी पीढ़ी हमें कभी क्षमा नहीं करेगी । भविष्यमें स्वस्थ रहनेका विकल्प केवल जड़ी-बूटियोंके अधिकाधिक सेवनमें ही निहित है।
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