pathgyan.com में आपका स्वागत है,शरीर में लार बनना बंद हो जाना बीमारी का इलाज (sharir me lar band) इसे हम एक छोटी सी सच्ची कहानी से समझेँगे.
शरीर में लार बनना बंद हो जाना बीमारी का इलाज (sharir me lar band)
एक रियासत के राजा अचानक गम्भीर रूपसे अस्वस्थ हो गये। भूख-प्यास पूरी तरह समाप्त हो जानेसे उनका शरीर पीला पड़ता गया और जर्जर होने लगा ।
राजकुमार तथा अन्य परिवारजनोंने बड़े-बड़े चिकित्सकोंसे उनकी जाँच करायी । अन्तमें उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि इनके शरीरकी ग्रन्थियोंसे निकलकर मुँहमें आनेवाला विक्षेप द्रव्य, जिसे लार कहते हैं, बनना बंद हो गया है। लार ही पाचन-क्रियाका प्रमुख साधन है। उसका बनना बंद होनेसे उन्हें भूख-प्यास से वञ्चित होना पड़ा है।
ऐलोपैथी पद्धतिके बड़े-बड़े चिकित्सकोंको बम्बई – कलकत्तातकसे बुलाया गया, कई विदेशी डॉक्टर भी बुलाये गये। सभीने अपनी-अपनी दवाएँ दीं, किंतु राजा साहबको रोगमुक्त नहीं किया जा सका। अब तो राज्यके तमाम लोग यही समझने लगे कि राजा साहबकी मृत्यु संनिकट है।
एक दिन अचानक राज्यके किसी गाँवके वयोवृद्ध आयुर्वेदाचार्य वैद्यजी नगरमें आये। उन्हें बताया गया कि हमारे राजा साहब एक भयंकर बीमारीसे ग्रस्त हैं। यह बीमारी असाध्य घोषित की जा चुकी है। कलकत्ता- बम्बईतकके डॉक्टर उनका इलाज करनेमें असमर्थ रहे हैं।
वैद्यजी राजाके प्रधानमन्त्रीके पास पहुँचे और बोले मैं भी आपके राज्यका एक नागरिक हूँ। मैंने जब राजा साहबकी बीमारीके बारेमें सुना तो अपना कर्तव्य समझकर राजमहलतक आया हूँ। क्या मैं राजा साहबको देख सकता हूँ ? पहले तो प्रधानमन्त्री ने उस धोती-कुर्ता पहने, माथे पर तिलक लगाये सादे वेश भूषावाले ग्रामीण वैद्यको देखकर उपेक्षा भाव दर्शाया, परंतु अन्तमें सोचा कि राजाको इन्हें दिखा देनेमें क्या हर्ज है। उन्हें राजाके कमरेमें ले जाया गया।
वैद्यजीने राजाकी नब्ज देखी। उनकी आँखों तथा जीभका जायजा लिया। अचानक वैद्यजीके मुखपर मुस्कराहट दौड़ गयी। राजकुमार तथा प्रधानमन्त्रीसे बोले मैं रोगको समझ गया हूँ। अब यह बताओ कि इन्हें दवा खिलाकर स्वस्थ करूँ या दवा दिखाकर.
कुछ देर चुप रहनेके बाद वैद्यजीने कहा- आप १० युवक, १० चाकू तथा १० नीबू मँगाइये। मैं अभी इन्हें रोग मुक्त करके पूर्ण स्वस्थ बनाता हूँ। यह सुनकर सभी आश्चर्यमें पड़ गये कि वैद्यजीका यह अनूठा नुस्खा आखिर किस तरह राजा साहबको स्वस्थ कर सकेगा। सबने कहा लगता है वैद्य कोई सनकी है। विचार-विमर्श के बाद युवकों, चाकुओं तथा नीबुआँकी व्यवस्था कर दी गयी ।
वैद्यजीने दसों युवकोंको लाइनमें खड़ा कर दिया। हरेकके हाथमें एक नीबू तथा चाकू थमा दिया। उन्हें बताया कि मैं जैसे ही संकेत करूँ एक युवक राजा साहबकी शय्या पास पहुँचे, उनके मुखके पास नीबू ले जाय— नीबूको चाकूसे काटे तथा उसके दोनों हिस्से वहाँ रखे बर्तनमें निचोड़ दे। इसके बाद दूसरा युवक भी ऐसा ही करे।
राजा साहबके कमरेमें रानी, राजकुमार, प्रधानमन्त्री आदि बैठे इस अनूठी चिकित्साके प्रयोगको देख रहे थे। वैद्यजीके संकेतपर एक युवक कमरे में आया – उसने राजासाहबको प्रणाम किया, नीबू मुँहके पास ले जाकर चाकूसे काटा तथा उसके दोनों हिस्सोंको निचोड़ दिया।
तीन युवकोंके इस प्रयोगके बाद राजासाहबने जीभ चलायी। चौथे युवकने जैसे ही नीबू काटकर रस निचोड़ा कि राजासाहबकी आँखोंमें चमक आने लगी। नीबूके रसकी धारको देखकर नीबूका चिन्तन करके राजासाहबके मुँह में पानी (लार) आने लगा था। उनकी ग्रन्थियोंने लार बनानी शुरू कर दी थी।
देखते-ही-देखते राजा साहबका मुँह लारसे भरने लगा । वैद्यजीने उन्हें नीबूके रसमें तुलसीपत्र तथा काली मिर्च डलवाकर पिलवायी। कुछ ही देरमें राजासाहब उठ बैठे। उनके शरीरकी लार बनानेवाली ग्रन्थियाँ अपना कार्य करने लगीं।
अब तो राजासाहबका पूरा परिवार उन ग्रामीण वैद्यजीके प्रति नतमस्तक हो उठा था। बड़े-बड़े अंग्रेजी पद्धतिके डॉक्टर राजा- साहबको नीरोगी नहीं बना पाये थे, वहीं एक साधारण वैद्यजीने अपने एक देशी नुस्खेसे राजासाहबको रोगमुक्त कर दिखाया था ।
राजपरिवारके लोगोंने वैद्यजीको स्वर्णमुद्राएँ इनाम में देनी चाहीं, पर उन्होंने कहा मैं इस राज्यका नागरिक हूँ – क्या मेरा यह कर्तव्य नहीं है कि मैं अपने राजाके स्वास्थ्यके लिये कुछ करूँ और उन्होंने इनाम लेनेसे इनकार कर दिया।
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