औरतें शिवलिंग को छू सकती है की नहीं महत्वपूर्ण जानकारी(shivling)

औरतें शिवलिंग को छू सकती है की नहीं महत्वपूर्ण जानकारी(shivling), इसके बारे में पूरी जानकारी नीचे डिटेल दी हुई है जो आपके लिए अच्छी जानकारी साबित होगी.

 

औरतें शिवलिंग को छू सकती है की नहीं महत्वपूर्ण जानकारी
औरतें शिवलिंग को छू सकती है की नहीं महत्वपूर्ण जानकारी

 

औरतें शिवलिंग को छू सकती है की नहीं महत्वपूर्ण जानकारी(shivling)

 

जैसा कि आप सभी लोग जानते हैं कलयुग प्रारंभ हुए 5000 वर्ष हुए हैं, और कलयुग के आरंभ से ही हिंदू धर्म पर अत्याचार बढ़ते गया, और धीरे-धीरे हिंदू धर्म का पतन हो गया आज भारत में हिंदू धर्म बचकर रह गया है पहले ये पूरी पृथ्वी में था.

औरतों को शिवलिंग छूना चाहिए कि नहीं इसके लिए आपको भक्ति और तंत्र दोनों को समझाना पड़ेगा, तभी आप लोग इसको समझ पाएंगे, हिंदू धर्म का पतन होने के कारण तंत्र का नाम सुनकर लोग घबरा जाते हैं, तंत्र का अर्थ है वैज्ञानिक तरीके से काम करना.

जैसे संस्कृत में कहा गया है स्त्रीलिंग और  पुल्लिंग   कहने का मतलब स्त्री और पुरुष के बारे में बताने के लिए लिखा गया है कि यह स्त्री है या यह पुरुष है, हमारे संस्कृत  में स्त्री जाति को बताने के लिए चाहे वह मछली हो या हिरण उसको बताने के लिए  स्त्रीलिंग और  पुल्लिंग    का प्रयोग किया गया है स्त्रियों के पास लिंग नहीं होता फिर भी संस्कृत में स्त्रीलिंग क्यों लिखा गया,

स्त्रीलिंग और  पुल्लिंग    लिखने का तात्पर्य प्रकार बताना है, इस प्रकार शिवलिंग का अर्थ है भगवान शिव जो परमपिता परमेश्वर पुरुष के रूप में व्याप्त हैं, यहां पर लिंग का अर्थ है, प्रकार या आकर या पिंडी भगवान शिव के आकार या प्रकार या पिंडी जिस रूप में आदिकाल से पूजन होते चला आया है उसे शिवलिंग कहा गया है,

जैसे हनुमान जी को बहुत से लोग पत्थर केवल रख देते हैं और सिंदूर चढ़कर पूजने लगते हैं उसमें हनुमान जी का आकार नहीं होता फिर भी लोग उसे हनुमान जी मानते हैं,

इस प्रकार आदिकाल से भगवान शिव जी ज्योति रूप में प्रकट हुए और जिस पिंडी के रूप में व्याप्त हुई वह आज भी पुजीत होता चला आ रहा है उसे शिवलिंग कहते हैं, इसी प्रकार शिवलिंग को परमपिता परमात्मा का गुप्त अंग या लिंग कहना बहुत ही अनुचित बात है

शिवलिंग का अर्थ भगवान शिव की मूर्ति ही है, यदि मन में थोड़ा भी भेद हो किया भगवान शिव जी की मूर्ति नहीं भगवान शिव जी का गुप्त अंग या लिंग है तब उसने भगवान की भक्ति या हिंदू धर्म के गुप्त रहस्य को नहीं समझा

शिवलिंग को परमेश्वर का लिंग या गुप्त अंग समझना एक नादानी है, और जब तक ऐसा मन में भ्रम है तब तक भगवान शिव जी के पूजा से दूर रहे क्योंकि इस प्रकार मन में भ्रम उत्पन्न करके आप परमपिता परमेश्वर का ही अपमान करेंगे

इस प्रकार कोई भी शिवलिंग को परमेश्वर का गुप्त अंग या लिंग न कहे, ऋषि मुनि अगस्त  आदि गुरु शंकराचार्य और भी बड़े-बड़े ऋषि मुनि इस धरती पर आए, उन्होंने भी भगवान शिव जी की पूजा की, और पिंडी के रूप में भगवान शिव जी की स्थापना की इसका बहुत बड़ा वैज्ञानिक अर्थ है

विवेकानंद जी ने भी शिवलिंग को परमेश्वर का लिंग  बोलने वालों को अपना मत स्पष्ट कर दिया था, की शिवलिंग और लिंग में भेद है.

अब आप इसे तांत्रिक ग्रंथ के अनुसार समझे, तंत्र को समझने के लिए बालक जैसा साफ मन चाहिए, और निर्मल बुद्धि चाहिए, धर्म का हास होने पर ऋषि मुनियों ने इसे धीरे-धीरे छुपा दिया क्योंकि योग्य स्त्री पुरुष नहीं मिल पा रहे थे, आज के समय में तंत्र एक प्रकार से  मजाक का विषय वस्तु बन गया है

जिस प्रकार अपने बहुत से लोगों को यह कहते सुना होगा की देवी काली तो निर्वस्त्र है और यह लोग निर्वस्त्र देवी की पूजा करते हैं, तांत्रिक साधना में बहुत जगह देवी के मूर्ति में केवल मुंड माला को छोड़कर कुछ रहता ही नहीं

देवी काली का यह रूप बहुत ही वैज्ञानिक रहस्य से भरा पड़ा है इसको लिखने पर यह लेख बहुत बड़ा हो जाएगा.

तांत्रिक साधना में स्त्री और पुरुष भैरव और भैरवी एक दूसरे को मानकर पूजा करते हुए साधना करते हैं और एक में शिव और एक में शिवा को मानते हैं,

इस प्रकार अत्यंत उग्र और तेजस्वी शिव और शिवा साधना में जब स्त्री और पुरुष के बीच का भेद मिट जाता है, कहने का मतलब जवान स्त्री और पुरुष के बीच काम आकर्षण का भेद मिटकर तपस्या ज्ञान और भक्ति की चरम अवस्था प्राप्त कर ली जाती है, तब स्त्री और पुरुष प्रेम की चरम अवस्था को जान पाते हैं,

तांत्रिक साधना में शुरू-शुरू में भैरव और भैरवी स्त्री और पुरुष रूपी समर्पण के साथ अपनी कामवासना की पूर्ति भी कर लेते हैं, लेकिन इसमें बहुत ही उच्च किस्म के स्त्री और पुरुष चाहिए, धीरे-धीरे यह लोग कामवासना को पार करके प्रेम की चरम अवस्था को जान पाते हैं

जिस चरम अवस्था में स्त्री और पुरुष के शरीर का भेद मिट जाता है, साधक और साधिका दोनों जान जाते हैं एक ही परमात्मा की वे दो ज्योति है वह अलग नहीं वह एक है,

इस प्रकार, प्रेम की अच्छी अवस्था प्राप्त करने पर एक व्यक्ति को भूख लगेगी तो दूसरे को मालूम चल जाएगा एक को गोली मारोगे तो दूसरा अपने आप मर जाएगा, ये प्रेम की अच्छी अवस्था है इससे भी ऊपर प्रेम की चरम अवस्था होती है

प्रेम की चरम अवस्था को केवल जान लेने पर ही साधारण स्त्री पुरुष की कुछ ही वर्षों में मृत्यु हो जाती है, केवल भगवान की कृपा से ही जीवित रह सकते हैं क्योंकि वह लोग भगवान और भगवती के ऊंचे प्रेम को समझ पाते हैं तभी राधा कृष्ण भगवान शिव और देवी पार्वती के प्रेम को समझ पाओगे

इसी प्रेम की ऊंची अवस्था में स्त्री और पुरुष एक हो जाते हैं जैसे भगवान शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप, फिर भगवान और भगवती स्त्री या पुरुष दोनों में कोई भेद नहीं रह जाता

भगवान और भगवती के इसी अवस्था को शिवलिंग का आकार दिया गया है, शिवलिंग के नीचे जो गोल सा भाग रहता है, जिसे हम आधार भी मान सकते हैं उसे देवी पार्वती माना गया है, और शिवलिंग जो एक पिंडी है उसे भगवान शिव, जहां केवल परमात्मा अपने पूर्ण रूप में व्याप्त है स्त्री या पुरुष रूप में नहीं ये सब ये बताया गया है की परमात्मा एक है लेकिन वो सगुन रूप में स्त्री और पुरुष रूप में भी हो सकता है.

इस प्रकार तांत्रिक साधनाएं जब घोर अवस्था में चली जाती हैं तब शिवलिंग में शिव और शिवा को मानकर तांत्रिक साधना की जाती हैं जो बहुत ही तीव्र परिणाम देती हैं, यह अत्यंत कठिन कार्य है इसके लिए महागुरुओं का होना जरूरी है,

 तंत्र की इस अवस्था में आप शिवलिंग को ऐसा समझ सकते हैं, माता पार्वती और भगवान शिव दोनों एक दूसरे में समाहित हैं, और दोनों मिलकर एक शिवलिंग के रूप में विराजित हैं,

लोग इस उच्च अवस्था को नहीं समझ पाए और शिवलिंग जो भगवान शिव जी का एक पिंडी है उसे शिव जी या परमेश्वर का गुप्त अंग या लिंग बोल दिया गया, हमारे धार्मिक ग्रंथो को लिखे 5000 वर्ष से ज्यादा हो गया इन 5000 वर्षों में कितने बार आक्रमण हुए और हमारे हिंदू धर्म ग्रंथ को बदल दिया गया

इसीलिए धार्मिक ग्रंथो में बहुत सी बातें बदल गई हैं और सच्चाई से आज के हिंदू लोग नहीं जान पाए

सारांश में औरतें शिवलिंग को छू सकती हैं क्योंकि परमपिता परमेश्वर को एक पत्थर के रूप में पूज कर परमपिता परमेश्वर को पाना आसान है, क्योंकि भगवान को पूजने के लिए आधार की जरूरत है मूर्ति पूजक ही  इस संसार में अधिक मात्रा में भगवान की प्रति किए हैं,

भक्ति के क्षेत्र में जाने पर शिवलिंग केवल भगवान शिव जी का एक पिंडी है, उनकी एक मूर्ति है उनका एक मूर्ति का प्रकार है, यदि आप तांत्रिक क्षेत्र में जाते हैं तो इसका प्रकार ऊपर लिख दिया गया है जो प्रेम की चरम अवस्था है

आशा है आप इसे पढ़कर भगवान शिव की भक्ति प्राप्त कर सकेंगे, और उनके प्रति आस्था गहरी होगी।

मित्रों इसमें कोई भी शब्द अच्छी लगे तो समझ लेना की ये हमारे गुरुओं द्वारा दी गई जानकारी है जो इस ब्लॉग के माध्यम से आप को बताया जा रहा है, राम राम

अन्य लोगो तक भी शेयर करे.

 

बगलामुखी मंत्र के नुकसान एक्सपर्ट रिव्यु

 

Leave a Comment