pathgyan.com में आप लोगों का स्वागत है मित्रों लोना चमारी कामख्या की एक बहुत ही प्रसिद्ध तांत्रिक, साधिका, योगिनी है, इनके बारे में है इसलिए लिखा गया क्यों की आज भी माना जाता है की लोना आज भी अपने साधना बल से जीवित है, जैसे ऋषि मुनि हजारो साल जीते थे. और लोना चमारी की साधना भी की जाती है.
ऐसा बोला जाता है की आसाम में एक तिरिया राज नामक एक दूसरी आयाम में एक अलग दुनिया है. जहाँ आम आदमी नहीं पहुंच पाता, यहाँ की जादूगरनी जब चाहे तभी कोई वहां प्रवेश कर सकता है, जानिए एक सच्ची कहानी लोना चमारी की जीवनी एक बदले की कथा. एक ऐसी कहानी जो एक स्त्री शक्ति का वर्णन करती है जिसने अपने आत्मसम्मान के लिए ऐसा कठिन तप किया जो बड़े बड़े साधको के लिए भी दुर्लभ है.
लोना चमारी की जीवनी एक बदले की कथा
लूना चमारी के जीवन वृत्त के बारे में, लोना चमारी पंजाब के अमृतसर प्रांत के रहने वाली थी और वह कामरूप कामाख्या में जाकर यानी कि असम में जाकर अपनी सिद्धि प्राप्त करती हैं और एक विख्यात योगिनी बनती है तो आखिर एक पंजाब की लड़की असम किस तरह से पहुंची और वह भी 11 में सदी में इसकी पूरी कहानी बड़ी रोचक है.
11वीं सदी में पंजाब की अमृतसर के आसपास एक छोटा सा गांव था जिसका नाम था चमरी उस चमरी गांव में एक चमार जाति का परिवार रहा करता था अब आपको इतना तो पता ही है कि उस समय इस जाति के साथ अन्य लोगों का व्यवहार कैसा था खासकर तथा कथित बड़ी कहे जाने वाली जातियों के लोगों का उनके प्रति द्वेष पूर्ण और कपट पूर्ण व्यवहार तो होता ही था यह तो आप मानेंगे ही उस समय में लोना के परिवार के भी यही दशा थी.
लोना की सुंदरता
उनके परिवार में एक बड़ी ही सुंदर लड़की थी जिसका नाम था लोन, लेना इतनी सुंदर थी कि कहा जाता है कि उसकी ही सुंदरता के चलते लोना लावण्या का प्रतिरूप बन गई यानी कि लोग अब किसी सुंदरी को लोना के नाम से ही जानने लगे हैं लोना बड़ी सुंदर थी लेकिन गरीब घर में सुंदरता वरदान नहीं अभिशाप होती है लोना के लिए अपनी सुंदरता अभिशाप ही बन गई थी.
जैसे-जैसे वह बड़ी होती जा रही थी गांव के लोगों के नज़ारे उसे पर गलत रूप से पढ़ने लगी थी उसे लोना के दो भाई भी थे यह दोनों भाई अपनी बहन के प्रति गांव वालों की बिगड़ी नजर को लेकर बड़े ही चिंतित रहा करते थे और इसीलिए अभी लोना पूर्ण रूप से युवा भी नहीं हुई थी कि उसका विवाह कर दिया गया लेकिन लोन का विवाहसफल नहीं रहा किसी कारणवश वह अपने पति से झगड़ा करके वापस अपने घर आ गई एक बार फिर आपको ध्यान दिलाते हैं कि यह कहानी 11वीं सदी की है और उसे समय का समाज कैसा था आप कल्पना से जान सकते हैं.
लोना के साथ ठाकुरों की क्रूरता
तब एक युवा लड़की जो विवाहित तो है लेकिन अपने पति को छोड़कर अपने गांव में रह रही है एक तथाकथित छोटी कहे जाने वाली जात से आती है गरीबी में पल रही है ऐसे में गांव वालों की नजर उस पर खराब हो जाए तो यह उसे समय के हिसाब से कोई संदेह वाली बात नहीं लगती है और हुआ भी ऐसा ही उसे गांव के लोगों ने उसे लड़की के ऊपर अपनी गंदी नजर को डालना प्रारंभ कर दिया उसी गांव में एक ठाकुरों का परिवार रहता था जिसमें 11 पुरुष थे ऐसा कहा जाता था कि इसी के चलते उस ठाकुरों के परिवार को 11 ठाकुरों का खानदान कहा जाने लगा.
उन ठाकुरों में से एक ने उस लड़की के साथ गलत करने का प्रयास किया लेकिन लेना ने इस प्रयास को मना कर दिया उसके प्रतिरोध करने से उनका क्रोध अपने चरम पर पहुंचा कि हमें यह लड़की मना कैसे कर रही है और फिर उस पूरे परिवार के 11 लोगों ने उसके साथ बलात्कार किया वह लड़की अभी युवा थी उसका यौवन अभी पूर्ण रूप से आया भी नहीं था कि उसके साथ यह दरिंदगी भरी घटना घट गई उस समय संविधान था नहीं कोई सुप्रीम कोर्ट और ना ही राजा के पास इतना फुर्सत था कि इस तरह के मामले वह सुने।
तथाकथित छोटी और बड़ी जातियों के बीच का मामला था तो इसमें जीत बड़ी जातियों की ही होनी थी लोना के दुर्दशा पर पूरा गांव हंसता रहा लेकिन किसी ने ठाकुरों की तरफ उंगली नहीं उठाई युवावस्था का जोश ऐसा होता ही है कि आदमी कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जाता है लोना चाहती थी कि इन ठाकुरों से अपने पर किए गए अत्याचार का आप बदला ले उसके सामने कोई और रास्ता दिख नहीं रहा था तभी उसने दिल्ली की योगिनियों के बारे में सुना वह उनके बारे में तरह-तरह की कहानी सुनते थे उस समय तंत्र-मंत्र का प्रचार भी जोरों शोरों से हो रहा था.
लोना का दिल्ली की योगिनियों से मिलना
योगियों ने अपने प्रचार के बहुत सारे माध्यम फैला दिए थे यह योगी गोरखनाथ जी की परंपरा से आते थे इन जोगियो के चलते ही संस्कृति मंत्र की जगह पर सबर मंत्र का प्रचलन बढ़ने लगा था तंत्र में सबर मंत्रों का प्रयोग होता यही वह समय था जब भारत में भी इस्लाम के सूफी मत को मानने वाले लोग अपना आ चुके थे भारतीय पद्धति से मिलकर के एक नई पद्धति का विकास कर रहे थे इसी पद्धति में आता है साबर मंत्र।
सबर मंत्र और संस्कृत के मंत्र में सबसे बड़ा अंतर यह है कि संस्कृत के मंत्र बड़े ही शुद्ध होते हैं वह मात्र पवित्र हृदय से सिद्ध किया जा सकते हैं और प्रत्येक मंत्र को प्रत्येक व्यक्ति को सिद्ध करना पड़ता है ऐसा नहीं है कि यदि मैं गायत्री मंत्र को सिद्ध कर लो तो आप बिना प्रयास के सिर्फ मेरा नाम लेकर उसे मंत्र को सिद्ध कर सकते हैं आपको भी गायत्री मंत्र को सिद्ध करने के लिए उतना ही प्रयास करना पड़ेगा जितना यदि मैं सिद्ध करने के लिए करता हूं.
लेकिन साबर मंत्र के साथ ऐसा नहीं था सबर मंत्र के बारे में यह मान्यता है कि यदि कोई पहुंचा हुआ तांत्रिक एक बार उन्हें सिद्ध कर ले और अपने नाम से उसे बांध दे तो फिर दूसरे लोग उसे तांत्रिक के नाम से उसे शाबर मंत्र को बहुत ही अल्प समय में सिद्ध कर सकते हैं उस समय सबर मंत्र की प्रसिद्ध पढ़ने लगी थी तंत्र-मंत्र का प्रचार जरूर जोरो से था लोना चमारी नेदिल्ली के योगिनी के बारे में सुना कि वह मंत्र विद्या में अपूर्व गति रखती हैं.
लेना उनसे मिलने के लिए बिना अपने घर में बताएं दिल्ली की तरफ रवाना हो गई वह पंजाब से पैदल ही चलती हुई अपने आप को अन्य लोगों की नजरों से बचती दिल्ली उस जगह पर पहुंची जहां पर भी योगिनी रहती थी लोना ने उन योगिनी से पूछा कि यह साबर मंत्र कैसे सिद्ध होते हैं मुझे भी तांत्रिक बनना है मुझे भी योगिनी बना है मैं अपने पर हुए अत्याचार का बदला लेना चाहती हूं.
योगिनियो ने देखा कि एक छोटी सी लड़की है जिसकी उम्र मुश्किल से 15-16 साल की है और वह कठिन साधना के बात कर रही है उन्हें एक तो अपने बल का अहंकार था दूसरा वह उसे लड़की की बाल्यावस्था को देखकर उसके महत्व को नहीं समझ पाई उन्होंने कहा कि तुमसे यह संभव नहीं है हम तुम्हें नहीं सीख सकते तुम इस लायक हो ही नहीं।
लोना जिद पर अड़ गई उसने कहा कि अगर आप लोग मुझे नहीं सिखाएंगे तो मुझे इतना तो बता दीजिए कि मैं कहां जाकर इसे सीख सकती हूं तब उन योगिनियो ने मजाक ही मजाक में हंसते हुए कहा इसके लिए तुम्हें असम के कामरूप कामाख्या मंदिर जाना होगा हमने भी वहीं से यह मंत्र सीखे हैं और हमने सिद्धियां प्राप्त की हैं उन लोगों को लगा होगा कि दिल्ली से असम इतना दूर है और यह छोटी सी लड़की वहां कैसे पहुंचेगी यह तुरंत ही अपने घर चली जाएगी और हार मान जाएगी।
लोना का पंजाब से दिल्ली, आसाम की पैदल यात्रा
लेकिन लोन के पास हारने के लिए कुछ बचा ही नहीं था उसकी केवल एक जिद थी बदला वह चाहती थी कि उस पर जो भी अत्याचार हुआ वह उसका बदलाव लेकर ही रहे उसने अपने मन में ठान लिया कि मुझे असम जाना ही है मुझे कामरूप कामाख्या के मंदिर किसी भी तरह से पहुंचना ही है वह अपने प्रतिज्ञा को पूरी करने के लिए एक दुश्वार रास्ते पर निकल पड़ी रास्ते की कठिनाइयां उसका परीक्षा लेते हैं.
उसे खाने पीने के लिए कभी-कभी नहीं मिलता था थकान होती थी पैरों में जलन होती पर फूल गए थे लेकिन फिर भी उसने अपना चलाना नहीं छोड़ा वह आगे बढ़ती ही गई बढ़ती ही गई बढ़ती ही गई भाषा के भी दिक्कतें थीं क्योंकि पंजाब से चली दिल्ली आई बिहार होते हुए बंगाल होते हुए असम पहुंची इन सभी जगह पर अलग-अलग बोलियां थी अलग-अलग भाषण थे अलग-अलग परिवेश था रहना खाना पीना सब अलग था लेकिन इन सब को सहते हुए लोना अंततः कामरूप कामाख्या पहुंच गई.
लोना के गुरु की तलाश इस्माइल जोगी से मिलना
वहां पर जब वह पहुंची तो उसने किसी योग्य गुरु की तलाश प्रारंभ कर दी अंततः उसे इस्माइल जोगी मिले इस्माइल जोगी वही सूफी और योगी परंपरा के मेल-जोर से बने हुए योगी थे उन्होंने सबर मंत्र में अच्छे सिद्धि प्राप्त कर ली थी जब लोना चमारी स्माइल योगी के पास पहुंचे तो इस्माइल जोगी उसके रूप की सुंदरता पर मोहित हो गए जोगि में पंचमकर की पद्धति पहले से ही चली आ रही थी यानी की साधना के दौरान वह मुद्रा मांस मध्य मत्स्य और मिथुन से परहेज नहीं भी करते तो उनका काम चल जाता था.
स्माइल योगी मिथुन के लिए ही सही लेकिन लोन पर आसक्त हो गए लोना के पास भी अपने गुरु को देने के लिए इसके अलावा था ही क्या कहते हैं कि लोना ने इस्माइल जोगी के साथ रहते हुए अपने तंत्र साधना प्रारंभ कर दि जहां इस्माइल जोगी बड़े तांत्रिक थे सिद्ध थे लेकिन उनके पास कोई ऐसा मोटिव नहीं था जिससे कि वह तंत्र साधना में उसे गति को प्राप्त कर सकें जिस गति को लोना चमारी प्राप्त कर ली.
लोना का अपने गुरु से सिद्धि में आगे निकल जाना/
लोना ने बदला लिया
गुरु गुड़ ही रह गया चेला चीनी हो गया लूना चमारी अपने गुरु से भी अधिक तांत्रिक सिद्ध हो गई और फिर वह गई पंजाबी लेकिन इस बार अपने सूक्ष्म शरीर से कहीं ना कि अपने उसे शरीर से जिसका की भोग उन लोगों ने किया था फिर वही हुआ जो बदला का मोटिव था, एक-एक करके उन्हें 11 ठाकुरों को पूरी तरह से समाप्त कर दिया उस कुल में कोई दीपक जलाने वाला भी नहीं बचा, जब लोना ने एक एक करके अपने दुश्मनो को मारा तो वो लोग लोना को देख पाते थे, और लोना क्षमा करो ऐसा बोलते थे इससे लोना के बारे में पूरा गाँव जान गया.
लेकिन अब कोई कुछ नहीं कर पा रहा था, लोना बहुत ही शक्तिशाली बन चुकी थी, जब लोना चमारी ने 11 ठाकुरों के खानदान को बर्बाद कर दिया जब उनके कुल में कोई दीपक जलाने वाला भी नहीं बचा तो लोना चमारी का प्रतिशोध पूर्ण हो गया फिर उनके पास और करने के लिए क्या था तब लेना से हमारी ने सोचा कि पुरुष स्त्रियों पर बहुत अधिक अत्याचार करते हैं और खासकर बड़ी जाति के लोग छोटी जातियों के लोगों पर बड़े ही अत्याचार करते हैं.
अब चुकी संस्कृत के मत्रों की सिद्धि और साधना सबके वश में नहीं थी इसलिए लोना चमारी ने सबर मित्रों की रचना की और उन्हें अपने तंत्र बल से सिद्ध किया और फिर अपने नाम से उन्हें बांध दिया जिसके कारण आज भी लोना के नाम के शाबर मंत्र बड़े ही आसानी से सिद्ध किए जाते हैं.
और गांव में लोग तंत्र-मंत्र के प्रयोग में इनका ही उपयोग करते हैं आपने संस्कृत के मत्रों के बारे में तो सुना ही होगा जैसे कि गायत्री मंत्र महामृत्युंजय मंत्र आदि लेकिन शाबर मंत्र भी शायद आप में से बहुत सारे लोग सबर मत्रों के बारे में ना जानते हो तो इसलिए आपको एक शाबर मंत्र भी यहां पढ़कर मैं सुना देता हूं यह सबरमंत्र वशीकरण के लिए उपयोग में लाया जाता है जो कि इस प्रकार से है.
कामरु देश से कामाख्या देवी
जहां बसे इस्माइल जोगी इस्माइल
जोगी की लगी फुलवारी
फूल चुने लोना चमारी
में जो ले ली यह फूल की बात वही की जान हमारे पास
घर छोड़े घर आंगन छोड़े छोड़े कुटुंब की मोह
दुहाई लेना चमारी की।
अच्छा जैसा कि आप इस मंत्र को देखकर समझ ही गए होंगे कि यह मंत्र संस्कृत के पदों में ना हो करके बोलचाल की भाषा में है और इस मंत्र की खासियत इसमें नहीं है कि मंत्र अपने आप में बड़ा ही प्रसिद्ध है बल्कि यह मंत्र लोना चमारी ने अपने नाम से बांध रखा है इसलिए इस मंत्र में वह प्रभाव है जिसको सिद्ध कर लेने के बाद आप वशीकरण को प्राप्त कर सकते हैं अब दोस्तों बात आती है कि लोना चमारी की प्रसिद्ध कितनी पुरानी है तो एक ग्रंथ है पद्मावत इसके बारे में अपने ना सुना होगा।
पद्मावत मलिक मोहम्मद जायसी जी की रचना है जिसकी रचना उन्होंने 14वीं शताब्दी में की थी उसी पद्मावत में एक कथा आती है कि राजा रत्नसेन जब पद्मावती को लेकर अपने देश वापस आए तो पद्मावती के साथ सिंहल द्वीप से एक ब्राह्मण भी आया जिसका नाम था राघव चेतन, राघव चेतन तांत्रिक था उसके सिद्धि बड़ी ही अद्भुत थी एक बार राजा रतन सेन के दरबार में या बहस छिड़ गई कि आज अमावस्या है यह द्वितीय है वास्तव में उसे दिन अमावस्या ही थी.
जो कि राजा रतन सेन के ज्योतिषी भी कह रहे थे लेकिन राघव चेतन हठ कर बैठा कि आज द्वितीय है वास्तव में यह राघव चेतन की गलती थी उसे गणना में गलती हुई थी उस दिन अमावस्या ही थी लेकिन दिन का समय था तो यह निर्णय करने का कोई आधार तो था नहीं उसे समय इसलिए राजा ने कहा कि रात के समय यह देखा जाएगा अगर आज अमावस्या हुई तो अपनेज्योतिषी को मैं बहुत सारा धन दूंगा और राघव चेतन को दंड मिलेगा और अगर द्रुतिया हुई तो राघव चेतन को दान मिलेगा और अपने ज्योतिषी को दंड मिलेगा।
सभा बर्खास्त हो गई और सभी लोग रात होने के प्रतीक्षा करने लगे रात आई रात अमावस्या की ही थी लेकिन राघव चेतन इतना तांत्रिक था कि उसने अमावस्या की रात को भी चंद्रमा लाकर दिखा दिया दूज का चांद अमावस्या के रात में चमक रहा था राजा के सभी ज्योतिषी आश्चर्य में थे क्योंकि एक ही गणना गलत हो सकती थी सभी की गणना कैसे गलत होगी लेकिन राजा से जो अपनी आंखों से देख रहे थे उसे पर भी कैसे विश्वास नहीं करते हो गया कि राघव चेतन को दान मिलेगा और उनके ज्योतिषों को दंड मिलेगा लेकिन फिर तुरंत ही उसे तंत्र का प्रभाव समाप्त हुआ तो सब ने जाना कि आज अमावस्या ही है.
जब राजा को यह पता चला कि आज अमावस है तब राघव को दंड मिला इस कारन राघव , खिलजी के पास गया, आगे की कहानी तो आप सभी जानते होंगे इस पर पिक्चर भी बनी है
ये कथा यहां पर क्यों, क्योंकि इसी दौरान पद्मावत में मलिक मोहम्मद जायसी की लिखते हैं कि यही एक गुरु चमारी लेना कहकर गुरु यानी किसकी राघव चेतन की एक गुरु चमारिन लेना सीखा कमरू पडित टोना ई अमावस्या में जो दिखाए एक दिन राहु चंद कहलावे कहते हैं कि राघव चेतन की जो गुरु है वह चमारिन लेना है इसीलिए इसमें इतना ताकत है कि वह अमावस्या के दिन दूज का चांद दिखा देता है अगर वह चाहे तो राहु को लाकर के चांद का ग्रहण भी करवा दे.
इसी पद्मावत में एक जगह एक टोना टोटका करने वाली ब्राह्मणी है वह भी चमारिन लोन का नाम लेते हुए कहती है कि जैसे कामरू चमारी लोना कौन अच्छा पंडित और टोना की जैसे चमारी लेना है जिसका टोना पढ़ने से कोई भी बच नहीं सकता है वैसे ही मैं हूं तो इसीलिए क्योंकि यह ग्रंथ 14 में शताब्दी में लिखा गया था तो हम मान सकते हैं की लोना उसके पहले ही हुई होगी तभी तो इसकी प्रसिद्धि यहां तक पहुंची और बहुत पहले इसलिए नहीं हो सकती है क्योंकि छठी सातवें शताब्दी में तो इस्लाम का उदय हुआ और वह भारत में सातवीं शताब्दी में आया.
वह आसपास ही एक सूफी मत के रूप में प्रचलित हो पाया तो इस्माइल जोगी जो की सूफी और योग परंपरा के मेल से बना हुआ योगी था वह 11वीं शताब्दी से पहले हो ऐसा मानना थोड़ा सा कठिन लगता है इसलिए लोना चमारी को 11वीं सदी के आसपास का माना जाता है.
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तुलसीदास का जीवन परिचय हिंदी में
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