pathgyan.com me में आपका स्वागत है आज हम स्वामी विवेकानंद की जीवनी के बारे में जानगे, और जानेंगे की वो एक महापुरुष थे.
स्वामी विवेकानंद की जीवनी
स्वामी जी की मदर भगवान पर बहुत विश्वास करती थी वह बहुत पूजा पाठ की करती ताकि उन्हें एक ऐसा बेटा मिले जो उनकी फैमिली का नाम ऊंचा कर सके एक दिन विवेकानंद जी की माता भुवनेश्वरी देवी ने सपने में भगवान शिव को देखा उन्होंने देखा भगवान उनसे कह रहे थे कि वह उनके बेटे के रूप में जन्म लेंगे।
यह सुनकर वह बहुत खुश होगी और उनकी आंखों में खुशी के आंसू आ गई और 12th जनवरी 1963 में मकर संक्रांति के दिन स्वामी जी का जन्म हुआ उनकी फैमिली ने स्वामी जी का नाम नरेंद्र नाथ रखा और उन्हें सब प्यार से नरेंद्र कहने लगे स्वामी जी के परिवार में सब बहुत इंटेलिजेंट और पढ़े लिखे लोग थे और हमेशा दूसरे की मदद करते थे जिसकी वजह से उनका बहुत नाम था.
सब उनको बहुत मानते थे नरेंद्र के फादर कोलकाता हाई कोर्ट में एडवोकेट छोटी उम्र से ही वह लोगों पर अलग-अलग रिलिजन जैसे कि हिंदू मुस्लिम और अमीर गरीब में भेदभाव करने के लिए सवाल उठाते थे एक दिन उन्होंने अपने फादर के ऑफिस में तंबाकू पाइप का एक बॉक्स देख यह उनके फादर के क्लाइंट के लिए था हिंदू कास्ट के लिए एक अलग बॉक्स था और मुस्लिम के लिए एक अलग बॉक्स था नरेंद्र ने हर बॉक्स में से एक तंबाकू बाइक निकाला और उसे ट्राई किया उनके फादर ने जब यह देखा तो उन्हें बहुत डाटा पर नरेंद्र ने कहा मुझे तो सभी पाइप में एक ही चीज़ मिली।
स्वामी जी जब छोटे थे तो एक दिन उन्हें दो तरह के सपने आए पहले एक बहुत पढ़ा लिखा आदमी जिसके पास बहुत पैसा है और सोसाइटी में उसका नाम बहुत ऊंचा है उसके पास एक सुंदर घर है उनकी वाइफ और प्यारे बच्चे दूसरा सपना था एक मोंक जो एक जगह से दूसरी जगह घूमता रहता है उन्हें सिंपल लाइफ पसंद पैसा और दूसरी सुख सुविधा देने वाली चीज उन्हें खुश नहीं करती उनकी बस यही इच्छा है कि वह भगवान को जाने और उनकी और पास चले जाए नरेंद्र जानते थे कि वह इनमें से कुछ भी बन सकते थे.
स्वामी जी बहुत गहराई से सोचा और उन्हें एहसास हुआ कि वह मोंक पुजारी की तरह ही जीना चाहते हैं दुनिया में क्या इन्वेंट हो रहा है क्या-क्या अचीवमेंट हो रही है इनमें उन्हें कोई इंटरेस्ट नहीं था उनके पास एक क्लियर गोल था उन्हें भगवान को देखना था उन्हें एक्सपीरियंस करना था कि भगवान से मिलना कैसा लगता है वह चाहते थे कि कोई ऐसा इंसानों ने रास्ता दिखाएं।
किसी ने कहा यदि सच्ची आधात्यम को जानना है तो श्री रामकृष्ण से दक्षिणेश्वर मंदिर में मिलो, रामकृष्ण जी नरेंद्र से मिलकर बहुत इंप्रेस हुए रामकृष्ण समझ गए थे कि नरेंद्र दूसरे बच्चों से अलग है, ऐसा लगता था जैसे नरेंद्र की आंखें हमेशा मेडिटेशन में लीन रहती है वह अपने कपड़ों या वह कैसे दिख रहे हैं उसे पर बिल्कुल ध्यान नहीं देते मास्टर रामकृष्ण बहुत खुश थे कि फाइनली उन्हें कैसा स्टूडेंट मिल गया है जिसके साथ वह अपने विचारों को शेयर कर सकते थे.
रामकृष्ण जी काली माता के सिद्ध सेवक थे, वो देवी की कृपा से सब कुछ जानते थे, ऐसी कोई सिद्ध नहीं थी जो रामकृष्ण जी के पास न हो, रामकृष्ण जी ने तंत्र मंत्र में महासिद्ध हासिल की थी, रामकृष्ण जी के दो गुरु थे, तोतापुरी और भैरवी।
भैरवी एक सिद्ध साधिका थी, उनकी उम्र के बारे में कुछ पता नहीं था, भैरवी ने कहा रामकृष्ण तुम एक योग्य साधक हो भक्त हो, तुम तंत्र की महासिद्धि के योग्य हो, इसलिए मैं तुम्हारे पास आयी हु.
भैरवी ने रामकृष्ण परमहंस को तांत्रिक साधनाएं करवाई तांत्रिक साधना करने से पहले रामकृष्ण काली माता के पास गए और उन्होंने कहा माता मुझे भैरवी माता ऐसी बोल रही है भगवती महाकाली ने आज्ञा दे दी भगवती महाकाली की आज्ञा से रामकृष्ण परमहंस ने अपनी तांत्रिक सिद्धियां आरंभ की उन्होंने बहुत ही अल्प समय में बहुत बड़े-बड़े तांत्रिक सिद्धियां हासिल कर ली भैरवी ने कहा है ऐसी तांत्रिक सिद्धियां इतने कम समय में हासिल करना या किसी साधारण मनुष्य के बस की बात नहीं है यह तो केवल अवतारी पुरुष ही कर सकते हैं या भगवान के विशेष कृपा पात्र, इस प्रकार भैरवी रामकृष्ण परमहंस को हर प्रकार की सिद्धियां सीख कर अपने धाम को चली गई.
तोतापुरी जो योग विज्ञान में एक सिद्ध गुरु थे उन्होंने रामकृष्ण परमहंस को योग की शिक्षा दीक्षा दी तोतापुरी योग का मार्ग ज्यादा विश्वास करते थे लेकिन उन्होंने रामकृष्ण परमहंस के द्वारा जान लिया की भक्ति का मार्ग ज्यादा श्रेष्ठ है, तोतापुरी भी अपनी योग सिद्धि सीखा कर अपने धाम को चले गए.
अब संसार में ऐसी कोई सिद्धि आदि नहीं थी जो रामकृष्ण परमहंस के पास ना हो, रामकृष्ण परमहंस भगवती महाकाली के सिद्ध भक्त थे रामकृष्ण परमहंस जब देवी को पूजा करते थे देवी रोज़ प्रकट हो जाया करती थी.
रामकृष्ण परमहंस रोज देवी को प्रकट करके, देवी मनुष्य रूप में प्रकट होकर रामकृष्ण परमहंस की हाथ से भोजन करती थी रामकृष्ण परमहंस का मन एक बच्चे जैसा था अपनी माता काली के चरणों के प्रति, रामकृष्ण परमहंस हर प्रकार का ज्ञान को जानते थे और जानते थे की सिद्धियां मनुष्य के मोक्ष मार्ग में रुकावट बन सकती हैं.
रामकृष्ण परमहंस उन्होंने देवी माता को कहा कि है माता में इन सिद्धियों को क्या करूंगा ऐसा कहकर उन्होंने अपनी सारी सिद्धियों को भगवती के चरणों में अर्पित कर दिया इस प्रकार वह भगवती की सेवा करते रहे और भगवती रोज़ प्रकट होकर उनके हाथों से भोजन करती थी, अपनी सारी सिद्धि को भगवती के चरणों में समर्पित करने के बाद भी रामकृष्ण परमहंस देवी की कृपा से इतना सामर्थ थे कि इस संसार का कोई भी कार्य कर सकते थे.
जब विवेकानंद जी रामकृष्ण परमहंस के पास गए तब रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद जी का टैलेंट को जान लिया और वह समझ गए कि विवेकानंद एक पूर्व जन्म के योगी और ऋषि मुनि है और वह हर प्रकार से उनके शिष्य बनने के योग्य हैं.
रामकृष्ण परमहंस ने स्वामी जी को सारी बातें बताएं और उन्होंने विवेकानंद जी के शरीर में योग की शक्तियों को प्रभावित किया योग की अद्भुत शक्तियों को विवेकानंद जी का शरीर सह नहीं पा रहा था तब रामकृष्ण परमहंस ने उनको संभाला।
रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद जी को योग के सबसे ऊंचे शिखर तक पहुंचाया जहां व्यक्ति अंतिम ज्ञान पाकर ब्रह्म ज्ञानी हो जाता है जब ब्रह्म ज्ञान को पाकर विवेकानंद जी रामकृष्ण परमहंस के पास आए तब रामकृष्ण परमहंस ने कहा ब्रह्म ज्ञान को लेकर जो इस संसार का अंतिम ज्ञान है जिसके जिसको जानने के बाद कोई भी जानना नहीं रह जाता व्यक्ति सर्वज्ञाता बन जाता है उन्होंने कहा नरेंद्र तुम इस ज्ञान को लेकर अधिक समय तक जीवित नहीं रह सकोगे तुमको आगे और भी जीना है और बहुत बड़ा काम करना है.
रामकृष्ण परमहंस ने समझाया ब्रह्म ज्ञान एक अंतिम ज्ञान है इसको लेकर केवल ईश्वर के अवतार और जो ईश्वर के कृपा के पात्र के अधिकारी हैं वहीं इस ज्ञान को लेकर के जीवित रह सकते हैं साधारण मनुष्य इस ज्ञान को लेकर के जीवित नहीं रह सकता उसे तुरंत मोक्ष मिल जाती है, इसलिए उन्होंने विवेकानंद जी से कहा कि अब यह ज्ञान रामकृष्ण परमहंस ने माता काली की कृपा से कुछ वर्ष के लिए ढक दिया रामकृष्ण परमहंस ने कहा कि जब तुम अपना कार्य पूरा कर लोगे तब ये अंतिम ज्ञान तुम्हें फिर से प्राप्त हो जाएगा, और उसको जानने के कुछ ही समय बाद तुम अपना शरीर योग मार्ग से छोड़ दोगे.
विवेकानंद जी को अपना आध्यात्मिक का मार्ग तो मिल गया था लेकिन वह अपने परिवार की तरफ से थोड़ी चिंतित थे कि वह संन्यास मार्ग में आ गए हैं उनके परिवार का क्या होगा कम से कम किसी भी परिवार में भोजन तो मिलना चाहिए उन्होंने रामकृष्ण परमहंस जी से कहा रामकृष्ण परमहंस ने कहा ठीक है काली माता से मांगो विवेकानंद जी काली माता के मंदिर तीन बार गए लेकिन उन्होंने भक्ति और ज्ञान ही मांगा इधर रामकृष्ण परमहंस काली माता को प्रकट करके बार-बार उनसे बोलते माँ उसको भक्ति और ज्ञान का वरदान दो, देवी ने तीनों बार विवेकानंद जी को ज्ञान और भक्ति का वरदान दिया.
विवेकानंद जब मंदिर के बाहर आए तब वह जान गए कि मैं बार-बार मंदिर अपने परिवार के धन संबंधी समस्या को हल करने के लिए देवी के पास जाता हूं लेकिन यह रामकृष्ण परमहंस जी का ही प्रभाव है कि मैं भक्ति और ज्ञान को बार-बार मांगता हूं इसलिए उन्होंने रामकृष्ण परमहंस से विनती की, कि आपकी इच्छा के बिना मैं कुछ नहीं कर सकता आप ही कुछ कीजिए रामकृष्ण परमहंस जैसे महापुरुष वरदान दे पानी में सक्षम थे, उन्होंने रामकृष्ण परमहंस को वरदान दिया की ठीक है तुम्हारे परिवार में कभी भी वस्त्र की और मोटे अनाज की कमी नहीं होगी, यहां पर मोटे अनाज का अर्थ है खाने को भले रोज 56 प्रकार की भोग ना मिले लेकिन जो नॉर्मल भोजन है उसकी कमी नहीं होगी.
रामकृष्ण परमहंस चाहते हैं तो योग मार्ग से आसानी से अपना शरीर को छोड़ सकते थे लेकिन वह ऐसा नहीं चाहते थे वह मनुष्यों की तरह कैंसर की बीमारी से शरीर को उन्होंने छोड़ रामकृष्ण परमहंस को बहुत से लोगों ने कहा कि आप तो देवी किसी साधन हैं देवी आप पर प्रसन्न है आप तो अपना कैंसर ठीक कर सकते हो रामकृष्ण परमहंस ने कहा नहीं जो देवी है वही कर रही है विवेकानंद जानते थे यहां रामकृष्ण परमहंस की मात्रा एक मनुष्य रूपी लीला है, विवेकानंद जी ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस की बहुत से सेवा की और उनसे उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया.
रामकृष्ण परमहंस के परलोक जाने के बाद विवेकानंद जी मठ के प्रमुख बने और उन्होंने अपने सन्यासी बांधों को बहुत सी योग आदि की शिक्षा दी.
स्वामी जी ने देखा की रामकृष्ण के बाद सारे मॉक बेघर होगे नरेंद्र अब 23 साल के हो चुके थे अभी उनकी रिस्पांसिबिलिटी थी कि वह नए मोंक का ध्यान रखें और उन्हें पढाये नरेंद्र पूरे मन से नए स्टूडेंट्स को पढ़ने में लगे घर में सबसे बड़े होने के कारण वह दिन भर अपनी फैमिली की तरफ अपनी ड्यूटी पूरी करते और रात को मठ में अपने स्टूडेंट और भाइयों को सिखाने जाते।
सभी स्टूडेंट ने साधु के जैसा जीवन पूरी तरीके से अपना लिया था वह अपना पूरा दिन पूजा पढ़ाई और मेडिटेशन कि उनके साथ जितने भी लोग हैं जितने भी भाई हैं उन्हें हर चीज के बारे में पूरी नॉलेज के साथ बहुत सी बातें शेयर करते हैं और उनकी नॉलेज को इंक्रीज करते दुनिया की अलग-अलग बुक्स पढ केहिस्ट्री और पॉलिटिकल सिस्टम के बारे में भी बताते हैं उन्होंने उन सबको प्लेटो बुद्ध और भी बहुत सारे लोगों के बारे में बताएं उन्होंने सबको कर्म योग भक्ति और ज्ञान के बारे में समझाया और सिखाया जिससे उनकी नॉलेज लाइफ की हर एक एरिया में बहुत अच्छी होगी।
स्वामी जी के पास सिर्फ एक डंडा और एक कटोरा था बस वह ऐसे ही चलते रहते हैं सबसे पहले वह वाराणसी गए जिससे इंडिया की सबसे पवित्र जगह माना जाता है यह वही जगह है जहां शंकराचार्य जैसे संतों को भगवान से ज्ञान मिला था नरेंद्र को यहां आकर बहुत अच्छा लगा मानो जैसे उनमें एक नई एनर्जी भर गई वाराणसी के बाद नरेंद्र अयोध्या गए इतना लंबा सफर नरेंद्र नंगे पैर और बिना पैसों के तय किया।
एक दिन एक अछूत पाइप से सिगरेट पि रहा था, स्वामी जी ने पाइप माँगा, उस पुरुष ने मना कर दिया, स्वामी जी ने कहा सभी समान है कोई छोटा या बड़ा नहीं, दूसरे दिन भी स्वामी जी ने पाइप माँगा सिगरेट का, उस पुरुष ने नहीं दिया स्वामी जी ने पाइप अपने से ले लिया और पि लिया, इस प्रकार उन्होंने उस पुरुष से अपनी समानता का भाव प्रकट किया।
स्वामी जी को अमेरिका में एक और अपॉर्चुनिटी दिखा, अमेरिका में विश्व धर्म सम्मलेन था, स्वामी जी बहुत ही मुश्किल से अमेरिका गए, क्यों की धन की कमी थी, वहाँ जाकर वो, ठीक से अच्छी जगह ना मिलने के कारण कुछ दिन ठण्ड में भी रहे, ऐसी जगह जहा ठण्ड से बचने के लिए कोई ठीक वैवस्था ना हो, कुछ दिन बाद स्वामी जी ने वैवस्था कर ली, उन्होंने लिखा था ऐसे ठण्ड में बिना कोई वयवस्था के साधारण मानव का जीवित रहना कठिन है.
जब तक अमेरिका में विश्व धर्म सम्मलेन का दिन पास आया तब तक स्वामी जी के कुछ मित्र बन चुके थे, और लोग उनको जानने लगे थे, विश्व धर्म सम्मलेन में पुरे विश्व से लोग आये थे.
उन्हें ऐसा लगा कि उन्हें अमेरिका जाना चाहिए अब उन्हें समझ में आ गया था कि राम कृष्ण और मां शारदा देवी की ब्लेसिंग उनके साथ है, उन्हें विश्वास हो गया था कि यह वही है जो करना है और वह सही रास्ते पर आगे बढ़ रहे थे पार्लियामेंट आफ रिलिजन सितंबर 1893 में खोला गया, जो वर्ड्स कोलंबियन एक्सप्लोरेशन नाम की एक इवेंट का पार्ट था जब क्रिस्टोफर कोलंबस ने अमेरिका को खोजा था यह उसे सेलिब्रेट करने के लिए मनाया जा रहा था इसका मकसद यह दिखाना था कि वेस्टर्न कंट्रीज साइंस और टेक्नोलॉजी में कितनी आगे बढ़ गई है.
क्योंकि रिलिजन भी हमारी लाइफ का एक इंपॉर्टेंट हिस्सा है उसे हाल में काम से कामरेडिएंट्स पूरी दुनिया की रिलिजियस लीडर्स आए थे हर रिलीजन को पेश करने के लिए एक लीडर को भेजा गया था यह रिलिजन थे सभी धर्म के लीडर आये थे, लीडर के सामने आकर स्पीच देनी स्वामी जी को नर्वस लगा, उन्होंने कोई स्पीच तैयार नहीं की थी.
वह पहली बार इतने सारे लोगों के सामने स्पीच देने वाले थे उन्होंने वहां काम कर ही टीम से कहा कि उन्हें सबसे लास्ट में बोला जाए, उनके सबसे पहले वर्ड्स ब्रदर एंड सिस्टर का अमेरिका उनकी इन वर्ड्स में वहां सभी लोगों का दिल जीत लिया वहां पर सब लोगों ने खड़े होकर उनके लिए तालियां बजाई सबको लगा कि कोई अलग आया है जिसने पूरे मन से कहा था और जिनकी बातों में सच्चाई थी.
वह सबसे यह कहना चाहते थे कि हमें एक दूसरे को रिस्पेक्ट से सीखना पड़ेगा हमें एक दूसरे को समझने की और शांति बनाकर रखने की जरूरत है कोई हमसे अलग है तो क्या हुआ हमें सब की रेस्पेक्ट करनी चाहिए स्वामी जी की वह खास बात जो उन्हें दूसरों से अलग बनाती थी वह यह थी उन्होंने कभी किसी रिलीजन को सही और बाकी सब को गलत प्रूफ करने की कोशिश नहीं उनका मानना था कि सब रिलिजन हमें भगवान तक ले जाने का रास्ता है वह कहते थे कि किसी मकान में अंदर जाने के बहुत सारे दरवाजे हो सकते हैं, वैसे ही ईश्वर तक जाने के अनेक मार्ग हो सकते है.
स्वामी जी के बारे में इंडिया में खबरें आने लगी न्यूज़ पेपर्स और मैगजींस में स्वामी जी की स्पीच छपने लगी सारी इंडिया को बहुत प्राउड फील हो रहा था,मठ में जो उनके भाई थे उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि क्या यह वही नरेंद्र है स्वामी जी ने उनको लेटर लिखा तब जाकर सबको विश्वास हुआ अमेरिका में स्वामी जी की बहुत लोग मदद कर रहे थे लेकिन वह उन पर डिपेंडेंट नहीं होना चाहते थे इसलिए वह अमेरिका में जगह-जगह जाकर लेक्चर देने लगे ताकि, इससे उनको कुछ मदद मिली।
उन्होंने दया और सबको रिस्पेक्ट करने वाली सोच को फैलाने की कोशिश की ,स्वामी जी ने न्यूयॉर्क बोस्टन वॉशिंगटन और कैंब्रिज में लेक्चर दिया पूरी दुनिया को अपने विचारों के बारे में बताया था.
इंडिया पहुंचे तो हजारों लोग तट पर स्वामी जी के आने का वेट कर रहे थे जब उनके कपड़े की एक झलक दिखाई थी तो वह सब खुश हो गए और उनका नाम लेकर उनको रिस्पेक्ट देने के लिए वह सब लोग जमीन पर बैठकर, स्वामी जी तो एक मोंक मॉक थे वह तो एक पुजारी थे जिनके पास ना तो पैसे थे ना ही घर लोग उनको उनके ज्ञान और उनकी सोच के लिए पसंद करते थे और यह अपने आप में बहुत बड़ा अचीवमेंट था.
उन सब के लिए ग्रेटफुल थे स्वामीजी पहले मद्रास के फिर कोलकाता वह जहां भी जाते लोग उन्हें वेलकम करने के लिए वेट करते थे लोगों में उन्हें देखना और उनकी बातें सुनने की बहुत इच्छा थी , एक दिन उनके पास एक आदमी आया जो बहुत परेशान था उसने कहा कि उसने सब कुछ करके देख लिया है लेकिन वह भगवान को नहीं ढूंढ़ पा रहा उसके टीचर ने जैसा कहा था वह वैसा ही करता था भगवान की मूर्ति की पूजा किया करता था आंखें बंद करके अपने रूम में मेडिटेशन करने की कोशिश किया करता था फिर भी उसे मन में की शांति नहीं मिल रही थी.
मैं क्या करूं उसे स्वामी जी से पूछाउन्होंने कहा अपने दरवाजे अपनी आंखें खोलो अपने चारों तरफ देखा उन्होंने उसे अपने आसपास गरीब और कमजोर लोगों को देखने के लिए कहा बोले कि उसे पूरी मेहनत और मन से उन सब लोगों की मदद करनी चाहिए अगर वह भूखे हैं तो उन्हें खाना दो अगर वह बीमार है तो दवाई दो अगर वह पढ़े लिखे नहीं है तो उन्हें पढ़ाओ पूरे मन से उनकी सेवा करो तभी तुम्हें शांति मिलेगी।
अब स्वामी जी अपने योग साधना में लीन रहते, कई बार रात को स्वामी जी के गुरु भाई स्वामी जी को रात में देखने जाते क्या स्वामी जी सो गए है, जैसे कोई भी अपने मुखिया के लिए करता है, स्वामी जी के गुरु भाइयों ने देखा की स्वामी जी अपने बिस्तर पर नहीं है, उनकी जगह केवल एक रोशनी दिखाई दे रही है.
रामकृष्ण जी का कथन सत्य हो गया था, स्वामी जी ने अपना कार्य पूरा कर लिया था, अब उनको ब्रम्ह ज्ञान और सभी चीज़ पुनः प्राप्त हो गई थी, स्वामी जी के गुरु परमहंस जी के अनुसार अब विवेकानंद अधिक समय तक शरीर के साथ नहीं रह सकते थे, अब स्वामी जी भी सब जान चुके थे की अब परलोक जाने का समय आ गया है. उन्होंने अपने जाने का दिन भी जान लिया।
स्वामी जी को अस्थमा हो गया था डॉक्टर ने उन्हें नॉर्थ इंडिया जाने के लिए कहा क्योंकि वहां पर क्लाइमेट अच्छा था नॉर्थ के लोग बहुत समय से स्वामी जी को बुला रहे थे इसलिए स्वामी जी मान गए अपने फ्रेंड को लिखे हुए लेटर में उन्होंने कहा था कि वह बहुत थका हुआ महसूस करे रहे है, स्वामी जी ने नॉर्थ इंडिया के हर एक स्टेट में लेक्चर दी स्वामी जी एकता को बढ़ावा देने के लिए बात भी करते थे उन्होंने यूनिवर्सिटीज में भी कहा था कि स्टूडेंट्स को सिर्फ क्लर्क लो एरिया डिप्लोमेट ना बनाएं बल्कि उन्हें अपने देश की सेवा करने और अपने देश से प्यार करना सिखाये।
अंत में स्वामी जी बेलूर मठ में रहने लगे उनका अस्थमा और खराब हो गया उनका मन अभी भी बहुत साफ था अगर कोई मोंक उन्हें रेस्ट करने के लिए बोलता था तो वह नहीं मानते थे स्वामी जी को एनसाइक्लोपीडिया बहुत पसंद है कि बुक में सारे 25 वॉल्यूम को याद करना बहुत मुश्किल है पर स्वामी जी तब तक 11th वॉल्यूम स्टार्ट कर चुके थे उन्होंने एक मोंक से कहा कि वह 10 वॉल्यूम पढ़ चुके उनमें से वह कुछ भी पूछ सकता है कि स्वामी जी को सारे जवाब आते थे यहां तक की उन्होंने उसे बुक्स की कुछ लाइंस भी बोलकर दिखाएं।
स्वामी जी को महसूस हो गया था कि वह 40 की आगे तक नहीं पहुंच पाएंगे, उन्होंने पंचांग भी देखा यह कैलकुलेट करने के लिए कि उनकी डेथ कब होने वाली है स्वामी जी ने अपने गुरु भाइयों को बता दिया था कि अपना अंतिम संस्कार वह कहां पर चाहते हैं फ्राइडे शाम 7:00 बजे पूजा का समय हो गया था स्वामी जी अपने रूम में पूजा और मेडिटेशन करने चले गए उन्होंने अपने सेवक से कभी वह 1 घंटे रूम में रहेंगे और उन्हें कोई डिस्टर्ब ना करें उसके बाद स्वामी जी ने अपनी सेवा को मदद करने के लिए बुलाया गया ताकि फ्रेश हवा आ सके.
स्वामी जी बेड पर लेट गए उनके सेवक ने सोचा कि वह लंबी सांस ले रहे थे फिर रात 9:00 बजे उन्होंने अपने शरीर को छोड़ दी उन्होंने अपनी आवाज और अपनी सोच को गरीबों के लिए मदद में लगा दिया था वह पूरी कंट्री में घूम और हर जगह उन्हें यही गरीबी दिखाई दी उन्होंने अपने मोंक को लोगों की सेवा करने में लगा दिया उनकी इसी क्लियर गोल ने उन्हें इतना सक्सेसफुल बनाया उनकी इसी पक्के इरादे के कारण उन्हें यूरोप और अमेरिका में इतनी रिस्पेक्ट मिली।
मित्रों स्वामी जी के परलोक गमन के सम्बन्ध में बहुत से बाते प्रचलित है जो की मिथक है, सच्चाई ये है की स्वामी जी सब जान चुके थे की पृथ्वी पर उनका कार्य पूरा हो चूका है, और उन्होंने अपना शरीर योगमार्ग से छोड़ दिया, लेकिन साधारण जनमानस इसको एक सामान्य परलोक गमन ही समझने लगा.
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