वार्णिक छंद की परिभाषा उदाहरण सहित, वार्णिक छंद की विस्तृत परिभाषा और गहराई से समझने के लिए, इसे कविता या छंद रचना की एक प्रणाली के रूप में देख सकते हैं, जहाँ वर्णों (अक्षरों) की गणना प्रमुख होती है। इस प्रकार के छंदों में मात्राओं की बजाय यह देखा जाता है कि एक पंक्ति में कितने वर्ण हैं। वर्ण का मतलब है—स्वर या व्यंजन (अक्षर)।
वार्णिक छंद की परिभाषा उदाहरण सहित
वार्णिक छंद के मुख्य तत्व:
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वर्ण (अक्षर):
वार्णिक छंद में वर्ण (अक्षरों) की संख्या का महत्व है, चाहे वे लघु हों या दीर्घ। उदाहरण के लिए, “स” (लघु) और “सा” (दीर्घ) दोनों को एक ही वर्ण माना जाता है, भले ही उनकी मात्राएँ अलग हों। -
लयबद्धता:
वार्णिक छंद में लय का विशेष ध्यान रखा जाता है। क्योंकि मात्राएँ नियंत्रक नहीं होतीं, इसलिए रचनाकार को इस बात का ध्यान रखना होता है कि छंद में वर्णों की संख्या सही हो और लय भी सजीव रहे। -
वर्ण संख्या का नियंत्रण:
प्रत्येक पंक्ति में वर्णों की संख्या निर्धारित होती है। जैसे कुछ छंदों में 8 वर्ण, कुछ में 11 वर्ण, कुछ में 16 वर्ण आदि निश्चित होते हैं।
वार्णिक छंद के उदाहरण और प्रकार:
1. इंद्रवज्रा छंद
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इसमें प्रत्येक पंक्ति में 11 वर्ण होते हैं।
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छंद की संरचना: पहली, चौथी और सातवीं मात्राएँ दीर्घ होती हैं। बाकी वर्ण लघु या दीर्घ हो सकते हैं।
उदाहरण:
शशि शलाका सम सुंदर धामा
(11 वर्ण: श-शि-श-ला-का-सम-सुं-द-र-धा-मा)
2. उपेंद्रवज्रा छंद
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इसमें भी 11 वर्ण होते हैं, लेकिन इसकी संरचना में थोड़ा भेद है।
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छंद की संरचना: पहली, पाँचवीं, और दसवीं मात्राएँ दीर्घ होती हैं।
उदाहरण:
हरि अनंत हरि कथा अनंता
(11 वर्ण: ह-रि-अ-नं-त-ह-रि-क-था-अ-नं-ता)
3. मालिनी छंद
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इसमें sabhi पंक्ति में 15 वर्ण होते हैं।
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वर्णों की संख्या का अनुशासन बनाए रखते हुए, इसे विशेष लय और भाव से रचा जाता है।
उदाहरण:
मणि मंजुल मणिमाला पहिरि हरि भाल
(15 वर्ण: म-णि-मं-जु-ल-म-णि-म-ला-प-हि-रि-ह-रि-भा-ल)
वार्णिक छंद की विशेषताएँ:
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स्वतंत्रता: मात्राओं पर कोई प्रतिबंध नहीं होता, जिससे कवि को अधिक स्वतंत्रता मिलती है।
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वर्ण गणना: इस प्रकार के छंदों में वर्णों की संख्या पंक्ति दर पंक्ति निश्चित होती है, चाहे वह लघु हो या दीर्घ।
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अनुशासन: वर्णों की संख्या के आधार पर काव्य अनुशासन सख्त होता है, इसलिए कवि को छंद रचना करते समय सावधानी बरतनी होती है।
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लयबद्धता: लय को बनाए रखना वार्णिक छंदों की खूबी है, जो वर्णों की संख्या से नियंत्रित होती है।
निष्कर्ष:
वार्णिक छंद काव्य के उन रूपों में से एक है, जहाँ मात्रा के बजाय वर्णों की गिनती महत्वपूर्ण होती है। यह रचना को सरल और प्रभावी बनाता है क्योंकि इसमें मात्राओं के जटिल नियमों का पालन नहीं करना पड़ता। इसके बावजूद, लय और संरचना में सौंदर्य बनाए रखना चुनौतीपूर्ण होता है।
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