pathgyan.com में आपका स्वागत है, कैंसर के बारे में जानकारी और आयुर्वेदिक उपचार(cancer ayurvedic) जिन असाध्य रोगोंकी चर्चा यहाँ की जा रही है, उनमें कैंसर आज भी साध्य नहीं माना जाता। क्योंकि अभीतक इसमें कोई ठोस परिणाम उपलब्ध नहीं हो सके हैं। किंतु आजके विज्ञानने बहुत-से रोगोंको प्रत्यक्ष-सा कर लिया है। इस तरह निदानक्षेत्रमें इसे बहुत ही सफलता मिली है। कैंसर रोग जब प्रमाणित हो जाय तो निम्न चिकित्सासे सफलता मिली है।
कैंसर के बारे में जानकारी और आयुर्वेदिक उपचार(cancer ayurvedic)
इस निबन्धमें किसी भी रोगका पूरा-पूरा निदान न लिखकर इससे स्वास्थ्य प्राप्त करनेका तरीका ही लिखा जा रहा है; क्योंकि प्रत्यक्ष निदान तो विज्ञानसे ही सम्भव है। फिर भी इस रोगसे बचाव के लिये कुछ जानकारी अपेक्षित है, यथा—
- शरीरमें पड़े तिल मस्से आदिके वर्ण एवं आकारमें परिवर्तन होना, (२) घावका न भरना, (३) स्तन, ओष्ठ आदि किसी अङ्गपर गाँठका बनना, (४) मलकी अतिप्रवृत्ति या क़ब्जका होना, (५) वजन कम होना, (६) अकारण थकावट महसूस होना ।
इन लक्षणोंके होनेपर चिकित्सकोंसे अपना परीक्षण १० दिनतक अलग-अलग स्थानोंपर गेहूँ बोना चाहिये। कराना आवश्यक है। दसवें दिनका पौधा काटकर, धोकर, पीसकर उसका रस लेना चाहिये । काटनेके बाद उसी दिन फिर गेहूँ बो देना चाहिये। इस तरह प्रतिदिन काटना – बोना चाहिये ।
कैंसरमें किसी अङ्गके ऊतककी केशिकाओंमें असीम रूपसे विभाजन होने लगता है, जिससे यह व्याधि निरन्तर बढ़ती रहती है। केशिकाएँ पोषक तत्त्वोंको चूसकर अन्य अङ्गोंको अस्वस्थ कर देती हैं।
अनुभूत औषध – यहाँ अनुभूत औषध दिये जा रहे हैं, जिनसे कैंसर रोगकी रोकथाम तो होती ही है, हो जानेपर उसे निर्मूल भी किया जा सकता है। फेफड़ेके कैंसर भी अच्छे हो गये हैं। लीवर कैंसरपर इसका उपयोग सन्देहास्पद रहा है।
सेमिनोवा कैंसरको तो निश्चित और शीघ्र ही ठीक किया जा सकता है। हाँ, कार्सिनोवा कैंसरमें देर लगती है। किंतु जो दवा लिखी जा रही है, उससे लाभ – ही – लाभ होना है। कोई प्रतिक्रिया नहीं होती ।
(१) सिद्धमकरध्वज – १ ग्राम,
(२) स्वर्णभस्म – ३० मिलीग्राम,
(३) नवरत्नरस-३ ग्राम,
(४) प्रवालपञ्चामृत- ३ ग्राम,
(५) कृमिमुद्गररस-३ ग्राम,
(६) बृहद्योगराजगुग्गुल – ३ ग्राम,
(७) सितोपलादि – ५० ग्राम, (
८) अम्बर – १/४ ग्राम,
(९) पुनर्नवामण्डूर-३ ग्राम,
(१०) तृणकान्तमणिपिष्टि-३ ग्राम।
खून आनेकी स्थितिमें बीच-बीचमें एक कप दूब (दूर्वा) का रस भी ले लेना चाहिये। इसे दवाके साथ ही लेना कोई आवश्यक नहीं है।
सेवन विधि – सभी दवाओंको अच्छी तरह घोंटकर ४१ पुड़िया बनाये। सुबह एक पुड़िया शहदसे चाटकर ताजा गोमूत्र पीये । बछियाका गोमूत्र ज्यादा अच्छा माना जाता है। उसके अभावमें स्वस्थ गाय जो गर्भवती न हो, उसका मूत्र भी लिया जा सकता है। गोमूत्र सारक (दस्तावर) होता है इसलिये सबको एक तरहसे नहीं पचता है। इसे आधी छटाकसे शुरू कर २०० ग्रामतक बढ़ाना चाहिये ।
दूसरी खुराक ९ बजे दिनमें तथा तीसरी तीन बजे शामको गेहूँके पौधेके रससे लेनी चाहिये। गेहूँके पौधेका रस भी आधी छटाकसे शुरू कर २०० – २०० ग्रामतक होना चाहिये। देशी खाद डालकर गेहूँका पौधा लगा देना चाहिये। दूसरे दिन दूसरी जगह लगाना चाहिये। इसी तरह प्रतिदिन
जबतक गेहूँ तैयार न हो और गेहूँके पौधेका रस न मिले तबतक दूसरी और तीसरी पुड़ियाको तीन ग्राम कच्ची हल्दीका रस – लगभग दो चम्मच (कच्ची हल्दी न मिलनेपर सूखी हल्दीका चूर्ण १ चम्मच) और दो चम्मच तुलसीका रस मिलाकर दवा लेनी चाहिये ।
हरिद्राखण्ड (हरिद्राखण्ड नामका चूर्ण प्रत्येक औषधनिर्माता बनाते हैं) को मुँहमें रखकर बार-बार चूसते रहना चाहिये। चूसनेके पहले गरम पानी और नमकसे दाँतोंको सेंकना चाहिये ।
यदि गले या स्तन आदिमें कहीं गाँठ हो गयी हो तो उसको गोमूत्र में हल्दीका चूर्ण मिलाकर गरमकर साफ रूईसे सेंकना चाहिये और इसीकी पट्टी लगानी चाहिये। यदि घाव हो गया हो तो नीमके गरम पानीसे सेंककर मनः शिलादि मलहम लगाना चाहिये ।
सावधानी — यह मलहम जहर होता है, इसलिये मुखवाले (घाव) रोगमें इसे न लगायें अपितु कभी-कभी रूईको गोमूत्रमें भिगाकर उस स्थानपर रख दें या कच्ची हल्दीका रस या सूखी हल्दीके चूर्णके रसको रूईद्वारा इस स्थानपर रख दें। सुबह-शाम दो बार नीमके पानीसे सेंकना आवश्यक है। मलहम लगाकर हाथोंको राखसे खूब साफ करना चाहिये । छः बारतक गरम चाय पीयें और हरिद्राखण्ड चूसते ही रहें।
इस रोगमें हरी पत्तीकी चाय बहुत उपकार करती है। चौबीस घंटेमें हरी पत्तीवाली चायकी मात्रा ५ ग्राम ही होनी चाहिये । इसीको दूध मिलाकर चाय बनाकर बार-बार पीते रहना चाहिये। इससे ताकत बनी रहती है और रोग बढ़ने नहीं पाता।
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