पितृ पूजा के संबंध में जरूरी जानकारी

पितृ पूजा के संबंध में जरूरी जानकारी, मित्रों यहां पर पितृ पूजा के संबंध में जरूरी जानकारी दी जा रही है जो आप लोगों के लिए उपयोगी साबित होगी, पितृ पूजा करना चाहिए या नहीं या पितृ पूजा के समय देवताओं की पूजा करनी चाहिए या नहीं, यहां पर आप प्रैक्टिकल और अनुभव चीजों को जानेंगे.

पितृ पूजा के संबंध में जरूरी जानकारी
पितृ पूजा के संबंध में जरूरी जानकारी

 

 

पितृ पूजा के संबंध में जरूरी जानकारी

पितृ पूजा में पितरों की पूजा करनी चाहिए या नहीं

मित्रों जैसा कि आप सभी जानते है और सभी शास्त्र यही कहते हैं कि पितृ पूजा करनी चाहिए पितरों की पूजा करनी चाहिए और यह जरूरी है, पितृ पूजा में जो भी पित्र देवी देवता है वह कहीं ना कहीं अपने स्थान में रहते हैं.

यहां पर कहने का मतलब यह है मान लो किसी की मृत्यु हो गई अब हर कोई व्यक्ति पुण्य आत्मा जीवन भर भगवान की  भक्ति भजन करने वाला तो होता नहीं ऐसे बहुत ही कम लोग किसी खानदान में जन्म ले पाते हैं, जो आजीवन भक्ति के मार्ग में हो.

अब मरने के बाद जब व्यक्ति माया के बंधन से मुक्त हो जाता है यहां पर कहने का मतलब यह है कि मरने के बाद व्यक्ति लौकिक और पारलौकिक बहुत सारी चीजों को जान जाता है तब उसे पछतावा होता है कि उसने भगवान की भक्ति आदि करके मोक्ष को प्राप्त नहीं किया।

क्योंकि जीते जी सबको केवल पैसा धन दौलत अपने और अपने परिवार में ही व्यस्त रहते हैं सभी जानते हैं एक दिन मृत्यु होगी लेकिन इस बात को सब भूल कर अपना जीवन जीते रहते हैं और मृत्यु के बाद पछताते हैं.

किसी के मरने के बाद जब श्राद्ध कर्म किया जाता है, कोई जरूरी नहीं कि वह व्यक्ति 16 या 13 दिन के श्राद्ध कर्म से मोक्ष को प्राप्त कर ले लेकिन इतने दिन में किया हुआ श्राद्ध कर्म का फल उसे मिलता है, कई बार उन लोगों को पितृ लोक में भी स्थान मिलता है और कई बार आगे की जन्म के लिए प्रक्रिया कर दिया जाता है.

मान लीजिए यदि आप किसी के लिए पितृ पूजा कर रहे हैं और वह व्यक्ति नए जन्म को प्राप्त हो गया है और पितृलोक में नहीं है, जैसे कि हम सभी ऋषि मुनियों के संतान है कोई कश्यप ऋषि मुनि की संतान है कोई ऋषि भार्गव की संतान है, इसी प्रकार ऋषि मुनि परंपरा से होते हुए यह संसार इतनी जनसंख्या तक फैला हुआ है.

अब जो मरकर नया जन्म लिया है पितृ पक्ष में किया गया कर्म उसको बहुत ही कम फलदाई होगा, मान लीजिए आपके दादा या परदादा या 10 पीढ़ी या 100  पीढ़ी पहले के कोई पितृ लोक में है, पितृ पूजा का फल उनको प्राप्त होता है, और यदि वह लोग भी नहीं है पितृलोक में तो वह सीधे भगवान विष्णु को प्राप्त होता है, कहने का मतलब जी पितृ देवी देवता से हमारे पीढ़ी का विस्तार हुआ वह किसी न किसी रूप में पितृ लोक में कोई ना कोई रहता है और यदि वह नहीं रहते तो भगवान विष्णु को वह चीज प्राप्त होती है इसलिए पितृ पूजा का महत्व रखता है.

मान लीजिए कोई अपने किसी कर्म के अनुसार भूत या प्रेत है या अन्य निम्न जन्म प्राप्त करके भटक रहा है पितरों की पूजा के समय वह लोग आते हैं और पूजा को ग्रहण करते हैं, इससे उनको लाभ तो होता है लेकिन उनकी मुक्ति के लिए गया जी में श्राद्ध कर्म करना चाहिए।

यदि आपको लगता है कि आपके पित्र देवी देवता  जन्म को प्राप्त कर चुके हैं और नए जन्म प्राप्त करने के बाद यदि आप उनको मोक्ष कराना  चाहते हैं, इसके लिए ब्राह्मणों को बुलाकर घर में भागवत पाठ तीन बार करवा देना चाहिए या 11 बार रामायण पाठ

यहां पर आप लोग बोलेंगे की तीन बार भागवत या 11 बार रामायण तो बहुत मुश्किल है, यहां पर किसी एक पंडित को बुलाकर घर में केवल तीन बार पाठ करवाना है कोई बहुत बड़ी मंडली को बुलाकर बहुत ज्यादा खर्च नहीं करना है एक ब्राह्मण पाठ का खर्च कम आता है.

इसमें आपको संकल्प करके पाठ करना पड़ेगा कि जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई है उसी के लिए आप पाठ करवा रहे हैं वह किसी भी जन्म में हो मोक्ष को प्राप्त करें या किसी बहुत ही ऊंचे लोग को प्राप्त करें जिससे वह जहां भी रहे वह सुखी रहे.

जैसे मान लीजिए कि किसी का भी कोई भी दिन आता है, जैसे मान लो कोई कर्मचारी किसी कंपनी में काम करता है तो महीने के अंत में उसे सैलरी चाहिए या मालिक को एक महीना काम चाहिए दोनों को एक दूसरे से आशा रहती है, इसी प्रकार शादी के बाद पति-पत्नी एक दूसरे से प्रेम की आशा रखते हैं

जैसे दिन भर काम करके आया हुआ पति शाम को यही आशा रखता है कि उसे उसकी पत्नी भोजन बनाकर देगी, और पत्नी यही आशा रखती है कि मेरा पति काम करके आया है उसी काम से उसके और उसके बच्चों का और पूरे घर के परिवार का भरण पोषण होगा।

इसी प्रकार मित्रों जब पितृपक्ष आता है तब आपके पितृ आपके दादा परदादा या जो भी ऋषि मुनि पहले के लोग हैं यदि वह लोग कोई ना कोई पितृलोक में रहता ही है वह लोग आशा रखते हैं कि आप उनको उचित मान सम्मान दें या पितृ पक्ष का श्राद्ध संबंधी कर्म करके आप उन्हें संतुष्ट करें, जैसे मान लीजिए आप जब भी धरती छोड़कर जाएंगे और आपको पितृ लोग प्राप्त हुआ तो आप भी चाहेंगे कि आपको पितृलोक में उचित मान सम्मान आदि प्राप्त हो, पितृ पक्ष में जो मान सम्मान दिया जाता है वह पितरों के लिए बहुत ही लाभकारी रहता है और वह प्रसन्न होते हैं यदि वह पितृलोक में है तब.

नहीं तो ऋषि मुनि और भगवान विष्णु को यह चीज प्राप्त हो जाती है जो आपको बाद में पुण्य के रूप में मिलती है, इस प्रकार कोई जरूरी नहीं कि आप बहुत ज्यादा नियम कानून करें बहुत ज्यादा पैसा खर्च करें अपने आप को दुखी करके पितरों की पूजा करें जो भी आपको बन पड़े थोड़ा हो सके उसे खुशी से करना चाहिए।

मित्रों पितृ पक्ष में अपने पितरों के लिए भगवान विष्णु का भगवान शिव जी का देवी का या आप जिसे भी अपने आराध्य देवी देवता मानते हैं उनका जाप करके रोज उस जाप  को दान करना चाहिए मान लीजिए आप रोज भगवान राम का तीन माला या 11 माला जाप करते हैं पितृ पक्ष में रोज जाप करके हाथ में जल संकल्प करके पित्र देवी देवताओं को दान कर दीजिए इससे उनको बहुत ही लाभ होगा और वह आपको आशीर्वाद देंगे, यदि 11 माला ना हो तो तीन माला तीन माला ना हो तो कम से कम एक माला जप कर रोज दान कर देना चाहिए, जब तक पितृ पक्ष हो.

आप इस चीज को ध्यान रखें कि आप पितृ पूजा के लिए बंधन में नहीं है बहुत से लोग यह सोचते हैं कि हम बंधन में है हमको यह करना पड़ेगा नहीं ऐसा नहीं है, जैसे देवी देवताओं की पूजा के लिए आप बंधन में नहीं है आप करेंगे तो आपको इसका पुण्य फल प्राप्त होगा उसी प्रकार पितृ पूजा भी है, आप करेंगे तो आपको ही पुण्य होगा, इसका पुण्य आपको ही प्राप्त होगा।

मित्रों कई लोग सोचते हैं कि अब पितृपक्ष आ गया अब उनको जबरदस्ती मरे हुए लोगों की पूजा पाठ करनी पड़ेगी मित्रों ऐसा नहीं है, भगवान ने कर्म करने की स्वतंत्रता दी है और इसी प्रकार पितृ पक्ष के बहाने आपको दान पुण्य करने का अवसर प्राप्त होता है, जो आपके लिए कल्याणकारी होता है.

किसी भी अवसर पर किया हुआ दान पुण्य आप किसी के लिए नहीं आप स्वयं अपने लिए ही करते हैं क्योंकि आपके द्वारा दिया हुआ दान पुण्य आपके ही काम आता है और आपको ही प्राप्त होता है.

इसलिए यदि जो लोग पितृ पूजा से दूर भागते हैं वह लोग उनके नाम से छोटा-मोटा दान कर सकते हैं चीटियों को खिला सकते हैं, पक्षियों को खिला सकते हैं या किसी अनाथ आश्रम में जाकर के अनुदान कर सकते हैं.

मित्रों आज व्यक्ति न जाने, साल भर में कितने रुपए खर्च करता है, मोबाइल रिचार्ज से लेकर के महंगे महंगे खर्च तक, यदि आपकी आमदनी कम है तब,पितृ पूजा में केवल 200, 500 या 1000 रुपए ही खर्च कर दीजिए अन्न  दान आदि जिससे आपके पूर्वज भी खुश हो कि आपने उचित मान सम्मान दिया।

क्या गया जी और तीर्थ आदि में श्राद्ध करने के बाद पितृ पूजा नहीं करनी चाहिए

मित्रों यदि अनुभव के आधार पर देखा जाए, गया जी आदि तीर्थ में श्राद्ध के बाद उस जीवात्मा की वहां से मुक्ति तो हो जाती है, कई बार कुछ कमी रहने के बाद उनको वहां से भी मोक्ष नहीं होता और उन्हें केवल एक पुण्य प्राप्त होता है.

मित्रों गया जी और तीर्थ में श्राद्ध करने के बाद मान लीजिए आपके सात पीढ़ियां तर गई, यदि  श्राद्ध कर्म कई बार जाकर किया गया हो और पूरी विधि विधान से किया गया, लेकिन क्या केवल सात पीढ़ियां तक ही आप अपने पूर्वजों का मान सम्मान रखते हैं.

मित्रों मान लीजिए आपके सात पीढ़ियां तर गई फिर भी उसके बाद जब पितृ पक्ष आता है तो कम से कम एक या दो दिन उनके लिए होम दान और रोज भगवान का एक माला जाप करके दान करना चाहिए जिससे जो हमारे ऋषि मुनि प्रथम पुरुष है उनको या किया हुआ पूजा पाठ से भगवान विष्णु प्रसन्न हो और आपको आशीर्वाद दे यही धर्म है कि कोई भी स्त्री पुरुष हमारे प्राचीन ऋषि मुनि जो हमारे पिता के भी पीता है उनको भी मान सम्मान दे.

अब आप समझ गए होंगे कि गया जी आदि में श्राद्ध करना बहुत ही अच्छा चीज है और किसी भी पुरुष का कर्तव्य है कि वह ऐसा करें लेकिन ऐसा करने के बाद भी पितृ पक्ष में कम से कम एक बार होम हवन दान आदि करना चाहिए इसके द्वारा आप गरीब और दुखियों की भी सहायता करते हैं चाहे ब्राह्मण हो या गरीब कोई व्यक्ति हो दान करके समाज का कल्याण और उसी बहाने आपको भी पुण्य प्राप्त करने का अवसर प्राप्त होता है.

क्या पितृ पूजा में देवी देवता की पूजा नहीं करनी चाहिए

मित्रों यदि आप भक्ति के संबंध में जाएंगे तो भक्ति की महिमा अपार है समुद्र से भी गहरी है, जैसे मां की ममता अपने बच्चों के लिए अपार होती है उसका कोई अंत नहीं होता, इस प्रकार आपके जो आराध्य देवी देवता है आपके लिए मां के समान वह प्रेम रखते हैं.

मित्रों पितृ पूजा में कोई रोज-रोज होम हवन तो करता नहीं केवल दो-तीन दिन या कई लोग एक दिन ही करते हैं, यह बात सच है कि इसमें पित्र देवी देवताओं का महत्व होता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप भगवान को बिल्कुल त्याग दें और छोड़ दें ऐसा संभव नहीं.

यदि आप भक्ति की गहराई में जाएंगे तब आप जान जाएंगे की  जैसे ऑक्सीजन के बिना जीवन संभव नहीं इस प्रकार भक्त भगवान का भजन या भक्ति किए बिना जीवित रह नहीं सकता.

भक्ति की किसी भी अवस्था में आप किसी भी कीमत पर किसी भी समय में आप अपने आराध्य को नहीं त्याग सकते, तब आप पितृपक्ष में अपने आराध्य देवी देवता को कैसे त्याग सकते हो, पितृ पक्ष में अपने आराध्य देवी देवता का जाप करके जाप अपने पितरों को दान करना चाहिए इससे ज्यादा लाभ होगा।

मित्रों जैसे एक राम जी के भक्त को हनुमान जी ने अंतिम संस्कार किया था, जो लोग हनुमान जी को मानते हैं क्या उनको वह लोग पितृ पक्ष में त्याग सकते हैं नहीं कभी नहीं।

जिस प्रकार मान लीजिए कोई हनुमान जी का भक्त अपना जीवन तो दे सकता है लेकिन हनुमान जी को नहीं छोड़ सकता बहुत ज्यादा दुख होने पर वह यही बोलेगा कि हनुमान जी उसे अपने चरणों में सदा के लिए ले जाएं।

इस प्रकार कोई देवी का भक्त हो शिवजी का भक्त हो या भगवान विष्णु का भक्त हो जैसे एक शिशु अपने मां के बिना नहीं रह सकता उसी प्रकार एक भक्त भगवान के बिना नहीं रह सकता ऐसे भक्तों को देखकर पित्र देवी देवता खुश होते हैं.

पित्र देवी देवता तो खुद चाहते हैं कि कोई भक्त उनके खानदान में जन्म ले, भक्तों को देखकर तो स्वर्ग के देवता तक गदगद हो जाते हैं और अप्सरा और गंधर्व गायन और नाच गाना करने लगते हैं.

मित्रों यह सत्य है की भक्त को देखकर देवता भी नाचने लगते हैं खुशी से और धरती माता सनाथ हो जाती है ऐसे भक्तों को पुत्र के रूप में प्राप्त करके।

भक्ति की महिमा अपार है इसको लिखा नहीं जा सकता इसको कहा नहीं जा सकता यह तो एक गूंगे के  स्वाद की तरह है जैसे गूंगे को कोई खट्टा मीठा या कुछ भी खिला दो वह बोल नहीं सकता उसी प्रकार भक्ति की महिमा अपरंपार है इसको कह पाना संभव ही नहीं।

भक्ति की महिमा भगवान शंकर ही जानते हैं भगवान शंकर ने स्वयं हनुमान जी के रूप में जन्म लेकर आजीवन भक्ति की तो भक्ति की महिमा उनसे ज्यादा कौन जाने।

कई हजार वर्षों तक माता पार्वती शिवजी की भक्ति करने के बाद भी, और भक्ति करना चाहती हैं अब आप सोचिए भक्ति की महिमा कितनी अपरंपार है, भक्त और भगवान का प्रेम बहुत ही गहरा है.

इस प्रकार आप समझ गए होंगे कि पितृपक्ष में पित्र देवी देवताओं को जितना मान सम्मान देना है दीजिए लेकिन कोई भी अपने आराध्य को भूलना नहीं चाहिए, पितृ पक्ष में आप कोई भी नया काम गाड़ी घर बनवाना नया काम चालू करना देवताओं के नाम पर यज्ञ हवन न करे, लेकिन आप भक्ति की महिमा को नहीं छोड़ सकते पितृपक्ष में भी भगवान की भक्ति करनी चाहिए।

अब आप कहेंगे कि क्या दीपक जला सकते हैं, मित्रों क्या आप अपने घर में लाइट नहीं जलाते, आधुनिक समय में यही लाइट तो आपके घर का दीपक है, पितृ पक्ष में यज्ञ तो नहीं करना चाहिए लेकिन आप अपने आराध्य के लिए एक दीपक जलाना चाहिए, अब बहुत से लोग इसका विरोध करेंगे, मित्रों यदि यह दीपक यदि आपके पित्र देवी देवताओं को प्राप्त होता है तो और अच्छी बात है.

मित्रों जो लोग धर्म को एक ढोंग की तरह केवल सिर में ढोते रहते हैं, नियम कानून में पड़कर वही लोग धर्म से भ्रष्ट हो जाते हैं, कई बार तो उनका विवेक भी मर जाता है, मित्रों यदि भगवान की सच्ची भक्ति किसी को प्राप्त है तो वह स्वयं ही जान जाता है कि उसे क्या करना है और क्या नहीं करना है भगवान स्वयं उसके हाथ से सभी काम करवाने लगते हैं.

फिर उसे शास्त्र की शास्त्र मर्यादा की कहां क्या करना चाहिए यह स्वयं भगवान संकेत के रूप में उसे बता देते हैं.

आप लोग समझ गए होंगे की देवी देवताओं की भक्ति कभी भी नहीं त्यागी जा सकती.

मान लीजिए कोई कंपनी का मालिक है और वह अपनी कंपनी गया है लेकिन वह केवल कंपनी में मालिक है और कंपनी में मालिक रहते हुए भी वह किसी का बेटा है किसी का बाप है किसी का भाई है, किसी का पति है, किसी का पिता है, कंपनी में उसे मलिक का मान सम्मान तो प्राप्त होगा लेकिन फिर भी वह जिसका रिश्तेदार है वह रहेगा ही.

इसी प्रकार पितृपक्ष में पितरों को उचित मान सम्मान जरूरी है, लेकिन भगवान की महिमा रहेगी ही और भगवान और भक्त के बीच की दूरियां और भगवान की भक्ति पितृ पक्ष में इसकी महिमा कैसे कम हो सकती है और इसकी महिमा कैसे मिट सकती है यह तो संभव ही नहीं, इसीलिए पितृ पक्ष में भी भगवान की भक्ति और भजन करना चाहिए।

 

 

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