श्री राधा चालीसा आरती राधा जी की

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श्री राधा चालीसा आरती राधा जी की
श्री राधा चालीसा आरती राधा जी की

श्री राधा चालीसा(श्री राधा चालीसा आरती राधा जी की)

 

॥ दोहा ॥

श्री राधे वृषभानुजा, भकक्‍तनि प्राणाधार।

वृन्दावनविपिन विहारिणि, प्रणवों बारंबार॥

जैसा तैसौ रावरो, कृष्ण प्रिया सुखधाम।

चरण शरण निज दीजिये, सुन्दर सुखद ललाम॥

 

॥चौपाई ॥

जय वृषभान कुँवरि श्री श्यामा, कीरति नंदिनि शोभा धामा।

नित्य बिहारिनि श्याम अधारा, अमित मोद मंगल दातारा।

रास विलासिनि रस विस्तारिनी, सहचरि सुभग यूथ मन भावनि।

नित्य किशोरी राधा गोरी, श्याम प्राणथधन अति जिय भोरी।

करुणा सागर हिय उमंगिनि, ललितादिक सखियन की संगिनी।

दिन कर कन्या कूल बिहारिनि, कृष्ण प्राण प्रिय हिय हुलसावनि।

नित्य श्याम तुमरौ गुण गावें, राधा राधा कहि हरणषावें।

मुरली में नित नाम उचारे, तुब कारण प्रिया वृषभानु दुलारी।

नवल किशोरी अति छवि धामा, द्युति लघु लगै कोटि रति कामा।

गौरांगी शशि निंदक बढ़ना, सुभग चपल अनियारे नयना।

जावक युग युग पंकज चरना, नूपुर धुनि प्रीतम मन हरना।

संतत संहचरि सेवा करहीं, महा मोद मंगल मन भरहीं।

रसिकन जीवन प्राण अधारा, राधा नाम सकल सुख सारा।

अगम अगोचर नित्य स्वरूपा, ध्यान धरत निशदिन ब्रज भूपा।

उपजेउ जासु अंश गुण खानी, कोटिन उमा रमा ब्रह्मानी।

नित्यधाम गोलोक विहारिनी, जन रक्षक दुख दोष नसावनि।

शिव अज मुनि सनकादिक नारद, पार न पायें शेष अरु शारद।

राधा शुभ गुण रूप उजारी, निरखि प्रसन्‍न होत बनवारी।

ब्रज जीवन धन राधा रानी, महिमा अमित न जाय बखानी।

प्रीतम संग देई गलबाँही, बिहरत नित्य वृन्दाबन माँही।

राधा कृष्ण कृष्ण कहैं राधा, एक रूप दोउ प्रीति अगाधा।

श्री राधा मोहन मन हरनी, जन सुख दायक प्रफुलित बदनी।

कोटिक रूप धेरें नंद नंदा , दर्श करन हित गोकुल चन्दा।

रास केलि करेि तुम्हें रिझावें, मान करौ जब अति दुख पावें।

प्रफुलित होत दर्श जब पावें, विविध भाँति नित विनय सुनावें।

वृन्दारण्य बिहारिनि श्यामा, नाम लेत पूरण सब कामा।

कोटिन यज्ञ तपस्या करहू, विविध नेम व्रत हिय में धरहू।

तऊ न श्याम भकतहिं अपनावें, जब लगि राधा नाम न गावे।

वृन्दाविपिन स्वामिनी राधा, लीला बपु तब अमित अगाधा।

स्वयं कृष्ण पावैं नहिं पारा, और तुम्हें को जानन हारा।

श्री राधा रस प्रीति अभेदा, सारद गान करत नित वेदा।

राधा त्यागि कृष्ण को भेजिह”, ते सपनेहु जग जलधि न तरिहैं।

कीरति कुँवरि लाड़िली राधा, सुमिरत सकल मिट॒हिं भव बाधा।

नाम अमंगल मूल नसावन, त्रिविध ताप हर हरि मन भावन।

राधा नाम लेडइ जो कोई, सहजहि दामोदर बस होई।

राधा नाम परम सुखदाई, भजतहिं कृपा करहिं यदुराई।

यशुमति नन्दन पीछे फिरिंहेँ, जो कोउ राधा नाम सुमिरिहैं।

रास विहारिन श्यामा प्यारी, करहु कृपा बरसाने वारी।

वृन्दावन है शरण तिहारी, जय जय जय वृषभानु दुलारी।

 

॥ दोहा ॥

श्रीराधासर्वेश्वरी, रसिकेश्वर घनश्याम।

करहूँ निरंतर बास मैं, श्रीवृन्दावन धाम॥

 

आरती श्री राधा जी की(श्री राधा चालीसा आरती राधा जी की)

आरती श्री वृषभानुसुता की, मंजुल मूर्ति मोहन ममता की।

त्रिविध तापयुत संसृति नाशिनि, विमल विवेकविराग विकासिनि।

पावन प्रभु पद प्रीति प्रकाशिनि, सुन्दरतम छवि सुन्दरता की।

मुनि मन मोहन मोहन मोहनि, मधुर मनोहर मूरति सोहनि।

अविरलप्रेम अमिय रस दोहनि, प्रिय अति सदा सखी ललिता की।

संतत सेव्य सत मुनि जनकी, आकर अमित दिव्यगुन गनकी।

आकर्षिणी कृष्ण तन मन की, अति अमूल्य सम्पति समता की।

कृष्णात्मिका कृष्ण सहचारिणि, चिन्मयवृन्द्रा विपिन विहारिणि।

जगज्जननि जग दुःखनिवारिणि, आदि अनादि शक्ति विभुता की।

 

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