विभिन्न रोगो के अनुभूत प्रयोग (vibhina rog ka upay)

pathgyan.com में आपका स्वागत है,विभिन्न रोगो के अनुभूत प्रयोग (vibhina rog ka upay) सर्वसाधारणके लिये, वह चाहे ग्रामीण क्षेत्रका हो या शहरी क्षेत्रका, अमीर हो या गरीब सभीके लिये निरापद – रूपसे प्रयोग किये जा सकनेवाले तथा आसानीसे अल्प मूल्यमें घरेलू साधनोंसे तैयार हो जानेवाले कुछ उपयोगी प्रयोग यहाँ प्रस्तुत हैं। ये प्रयोग कई बारके अनुभूत हैं । पाठकगण इन्हें प्रयोग कर लाभ उठा सकते हैं.

विभिन्न रोगो के अनुभूत प्रयोग (vibhina rog ka upay)
विभिन्न रोगो के अनुभूत प्रयोग (vibhina rog ka upay)

 

विभिन्न रोगो के अनुभूत प्रयोग (vibhina rog ka upay)

मुँहके छाले – (अ) चमेलीके पत्ते चबानेसे मुँह के छाले ठीक हो जाते हैं ।

(ब) बकरीके दूधकी सीड़ मुँहमें लगानेसे मुँहके छाले मिट जाते हैं ।

 

शक्ति – वृद्धि – सफेद प्याजका * रस लगभग ६ ग्राममें समान भाग शहद मिलाकर नित्य सबैरै २१ दिनतक चाटने से वीर्यकी वृद्धि होती है। संयमसे रहे । (११) रक्तशुद्धि एवं वीर्यपुष्टि — तुलसीके बीज १ ग्राम पीसकर सादे या कत्था – चूना लगे पानके साथ नित्य सुबह-शाम खाली पेट खानेसे वीर्य पुष्ट एवं रक्त शुद्ध होता है।

 

पेशाबकी रुकावट – पलासके फूल (टेसू) गीले या सूखे पानीके साथ थोड़ा-सा कलमी शोरा मिलाकर, पीसकर नाभिके नीचे पेडूपर लगानेसे ५-१० मिनटमें पेशाब खुलकर आने लगता है।

 

मलेरिया ज्वर – – इसके आनेके एक घंटे पूर्व ही पीपलके पेड़की टहनीसे दातून करे, चाहे तो रस एक-दो बार निगल ले। परमात्माकी कृपासे ज्वर नहीं आयेगा।

 

अकतरा – एक दिन छोड़कर आनेवाला ज्वर- अपामार्ग (चिरचिरा) की ताजा जड़ लाकर सफेद धागेसे एक भुजापर बाँधनेसे ज्वर नहीं आयेगा ।

 

स्तन्य वृद्धि – कभी-कभी प्रसूता स्त्रीके स्तनमें दूधकी कमी हो जाती है या आते-आते रुक जाता है। उसके लिये सफेद जीरा, सौंफ एवं मिस्त्री —- तीनोंको समान भागमें पीसकर रख ले। इसे एक चम्मच की मात्रामें दूधके साथ दिनमें दो या तीन बार लेनेसे स्तनमें दूध खूब बढ़ता है।

 

जले स्थानपर— (क) जले स्थानपर ग्वारपाठे (घृतकुमारी) का गूदा लगानेसे जलन शान्त होती है तथा फफोले (छाले) भी नहीं उठते हैं।

जले स्थानपर आलू काटकर लगानेसे भी आराम होता है।

 

मूत्र-सम्बन्धी विकार पेशाब में जलन हो, बूँद-बूँद पेशाब लगातार आता हो, हाथ-पैरोंके तलवोंमें जलन होती हो या चर्मरोग हो, सभीकी एक दवा है— देशी गीली मेंहदीके साफ पत्ते लाकर पत्थरपर पीसकर रस

निचोड़े। यह रस अवस्थानुसार १०-१२ ग्रामकी मात्रा में ताजा दूधमें मिलाकर प्रातः ३-५ या ७ दिन पीनेसे लाभ हो जाता है। रोगकी अवस्थाके अनुसार १५ दिन बाद फिर दिया जा सकता है।

 

वातरोग ( जोड़ोंका दर्द ) – अरंडीका तेल (केस्टर आयल) में लहसुनकी कली धीमी आँच पर जलाकर तेल तैयार कर ले। ठंडा करके छानकर शीशी में भर ले । आवश्यकता होनेपर जोड़ोंके दर्दमें मालिस करनेसे दर्दमें लाभ होता है ।

 

उपदंश (सुजाक ) — कच्ची फिटकरीको पीस, समान भाग गुड़में बेर-बराबर गोली बनाकर ताजा छाछ साथ प्रातः खाली पेट दिनमें एक बार लगभग २१ दिनतक प्रयोग करनेसे उपदंशमें शर्तिया लाभ होता है। गोलीके साथ ही छाछ दे, फिर दिनभर छाछ न दे। हलका भोजन करे, तेल, मसालेवाली चीजें, मिर्च आदि न ले, गरम पदार्थ ( चाय आदि) न ले ।

 

दद्रु (दाद ) – सत्यानाशीकी जड़ (पीले फूलवाली कंटकारी ) प्रातः पानीके साथ घिसकर लगानेसे दद्रु नष्ट हो जाते हैं।

 

 

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