pathgyan.com में आपका स्वागत है, सूर्यावर्त (Migraine) रोग के बारे में जानकरी उपचार आयुर्वेदमें कुछ रोगोंके विस्तृत विवरण मिल जाते हैं, जिन्हें आजके यन्त्र देख नहीं पाते। विवरण यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है.
सूर्यावर्त (Migraine) रोग के बारे में जानकरी उपचार
आवर्तका अर्थ होता है चारों ओर चक्कर लगाना इस प्रकार सूर्यावर्तका अभिप्राय यह होता है कि सूर्यका उदित होकर पृथ्वीका चक्कर लगाकर फिर उसका पूर्व दिशामें लौट आना । सूर्यके इस आवर्तनसे जो रोग उत्पन्न होता है, उसे भी लक्षणासे सूर्यावर्त ही कहा जाता है। इस तरह सूर्यावर्त शब्दसे रोगका पूरा परिचय मिल जाता है।
पूर्व दिशामें सूर्यका यह उदय भारत से दो- तीन घंटा पहले ही हो जाता है। भारतसे एक घंटा पहले जापानमें सूर्योदय होता है और जापानसे एक घंटा पहले प्रशान्तमहासागरमें। इस तरह सूर्यका दर्शन भारतमें दो घंटे बाद ही होता है। सूर्यके इस आवर्तन (उदय) के साथ ही सूर्यावर्तका रोग भारतवासी रोगियोंको होने लगता है; क्योंकि सूर्य अग्निका पिण्ड है और अग्नि ही शरीरमें पित्तरूपसे प्रतिष्ठित है।
अतः सूर्यसे पित्तका गहरा सम्बन्ध है। प्रशान्तमहासागरमें जब सूर्यका आवर्तन हो जाता है तब औषध – आयुर्वेद कारणका पता लगाकर, उस कारणको प्रभावहीन करनेके लिये प्रशान्तमहासागरमें सूर्योदय होनेसे पहले ही अर्थात् भारतमें सूर्योदय होनेसे लगभग २- ३ घंटे पहले ही औषधका सेवन करा देता है। विधि यह है-
एक छटाक जलेबीको रातको ही दूधमें भिगोकर सुरक्षित रख दें। लगभग तीन बजे गोदन्ती भस्म – १ ग्राम एवं शोधित नरसारचूर्ण – आधा ग्राम फाँककर इस दूध – जलेबीको खाकर भरपेट पानी पी लेना चाहिये । औषधके इस सेवनसे, सूर्यावर्तनसे जो पित्त प्रकुपित होता था, वह नहीं हो पायेगा और कफ पिघलकर तीन-चार दिनोंमें नाकसे निकल जायगा ।
कभी-कभी खून भी निकलता है, उसे देखकर रोगी घबराये नहीं; क्योंकि वह दूषित अवरुद्ध खून है, इसका निकलना ही श्रेयस्कर है। कम- से कम ४१ दिनतक यह औषध चलाना चाहिये । ४१ दिनके बाद कुछ दिनोंतक आधा किलो पानी, चीनी मिलाकर हलका हलका गरम, पीते रहना चाहिये। इस विधिसे यह रोग ४-५ दिनोंके बाद ही प्रभावहीन तो हो जाता है.
किंतु लेयर (परत) की तरह ललाटमें चिपके हुए कफको निकालनेके लिये आवश्यकतानुसार २१ या ४१ दिनोंतक दूध-जलेबीका सेवन करना चाहिये। रोगीको फिर कभी यदि जुकाम हो जाय तो रातको तीन बजे पानीमें चीनी डालकर भरपेट पी लेना चाहिये, ताकि वह पित्त फिर जाग न जाय ।
यदि षड्विन्दु तेलको नाकमें छः-छः बूँद डालें तब इस रोगसे जीवन-भरके लिये छुटकारा मिल जाता है। यह तेल इतना उत्तम है कि नाकमें डालने और सिरमें लगानेसे कंठके ऊपरके सम्पूर्ण रोग समाप्त हो जाते हैं। स्वस्थ व्यक्ति भी इसलिये इस तेलका सेवन कर सकता है। कान, आँख, नाकके एवं सिरके बाल गिरना तथा सफेद होना
आदि उपद्रवोंसे यह बचाकर रखता है। साइनसके रोगियोंको ४ वर्षोंतक नाकमें इसको अवश्य डालते रहना चाहिये। यह साइनसरोग भी आज असाध्य ही है। शल्यकर्मके बाद भी नहीं जाता। बार-बार शल्यकर्म कबतक कोई करायेगा ?
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