वैश्वीकरण विभिन्न क्षेत्रों में गरीबी और असमानता को किस प्रकार प्रभावित करता है, वैश्विकरण, जिसे हम “वैश्वीकरण” के नाम से जानते हैं, एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत देशों, बाजारों, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और व्यापार के संबंधों में वृद्धि होती है। यह प्रक्रिया तकनीकी विकास, व्यापारिक संबंधों में बदलाव और विश्वभर में आपसी निर्भरता के कारण तेज हुई है। लेकिन वैश्वीकरण के सकारात्मक प्रभावों के साथ-साथ यह विभिन्न क्षेत्रों में गरीबी और असमानता को प्रभावित करने का कारण भी बन रहा है।
वैश्वीकरण विभिन्न क्षेत्रों में गरीबी और असमानता को किस प्रकार प्रभावित करता है
वैश्वीकरण का मुख्य उद्देश्य विश्वभर के देशों को आपस में जोड़ना और उनके बीच आर्थिक समृद्धि बढ़ाना है। लेकिन, इसका प्रभाव हर क्षेत्र में समान नहीं होता। कई विकसित देशों ने इसका पूरा लाभ उठाया है, जबकि विकासशील और गरीब देशों को इसके कुछ नकारात्मक परिणामों का सामना करना पड़ा है।
विकसित देशों में, वैश्वीकरण ने तकनीकी नवाचारों को बढ़ावा दिया है, जिससे उत्पादकता में वृद्धि हुई और समृद्धि में भी इज़ाफा हुआ। वहीं, विकासशील देशों में यह असमानता को बढ़ा सकता है। यहां, वैश्वीकरण के कारण महंगे और उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों का आयात होता है, लेकिन स्थानीय उत्पादक और कारीगर इन महंगे उत्पादों से मुकाबला नहीं कर पाते। इसका परिणाम यह होता है कि स्थानीय उद्योग बंद हो जाते हैं और बेरोजगारी बढ़ने लगती है।
इसके अतिरिक्त, वैश्वीकरण के कारण समृद्ध और गरीब देशों के बीच आय की खाई और भी गहरी हो गई है। जबकि कुछ देशों के पास उच्च गुणवत्ता वाली तकनीकी सुविधाएं, उच्च शिक्षा और संसाधन हैं, वहीं अन्य देशों में इन्हीं सुविधाओं की कमी है। इससे संपन्न देशों को आर्थिक लाभ मिलता है, जबकि गरीब देशों में गरीबी और असमानता की स्थिति बढ़ती है।
दूसरी ओर, वैश्वीकरण के प्रभाव से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में भी कुछ लाभ देखने को मिले हैं। इन देशों में सस्ते श्रम के कारण विदेशी निवेशकों के लिए उत्पादन लागत कम हो जाती है, जिससे ये देश वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम होते हैं। हालांकि, यह प्रक्रिया सामाजिक असमानता को भी बढ़ा सकती है क्योंकि महंगे श्रमिकों की जगह सस्ते श्रमिकों को काम पर रखा जाता है, और इसका असर गरीबी में रहने वाले लोगों पर अधिक होता है।
समाज में असमानता की बढ़ती खाई वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप उत्पन्न हो रही एक और समस्या है। उदाहरण के लिए, गरीब और अमीर वर्ग के बीच रोजगार के अवसरों, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में भेदभाव अधिक हो रहा है। उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले लोग वैश्विक कंपनियों में नौकरी प्राप्त करते हैं, जबकि अन्य लोग गरीबी के संकट में फंसे रहते हैं। इससे सामाजिक असमानता और गरीबी में वृद्धि हो रही है।
इसकी एक और प्रमुख वजह है, वैश्वीकरण के कारण संस्कृति और पारंपरिक व्यवसायों का संकट। उदाहरण के लिए, जो पारंपरिक व्यवसाय पहले स्थानीय समुदायों में प्रमुख थे, वे अब बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा प्रतिस्थापित हो रहे हैं। इससे स्थानीय बाजारों में असंतुलन पैदा हो रहा है और छोटे व्यवसायों के अस्तित्व को खतरा हो रहा है।
समाप्ति में, वैश्वीकरण ने जहां कुछ क्षेत्रों में विकास और समृद्धि का मार्ग खोला है, वहीं अन्य क्षेत्रों में यह गरीबी और असमानता को बढ़ाने का कारण बन रहा है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि वैश्वीकरण के लाभ और हानियों को संतुलित करना आवश्यक है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इसके प्रभाव सभी वर्गों तक समान रूप से पहुंचे।
वैश्वीकरण को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में देखा जाना चाहिए, जो वैश्विक एकता और समृद्धि के लिए काम करे, लेकिन इसे इस तरह से लागू किया जाए कि यह गरीब और विकासशील देशों के हितों को भी संरक्षित करे।
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