मैं एक नामर्द हु जानिये मेरी कहानी
मैं सीधी-सादी बुद्धि यह समझ ना सका कि मैं तो पूर्ण पुरुष हूं फिर कई लोग मुझे नामर्द क्यों बोलते हैं.
मेरे सीधे स्वभाव को देखकर लोग यह समझ गए कि इसको आसानी से नामर्द साबित किया जा सकता है.
समाज के लोगों ने मुझे मेरी गरीबी को देखकर नामर्द कहना शुरू कर दिया।
मैंने कभी किसी की बेटी बहन को छुआ तक नहीं यह सब देखकर भी लोग मुझे नामर्द बोलने लगे.
कोई मुझसे झगड़ा करने लगता तो मैं उसे सुलझाने लगता है जिससे झगड़ा आगे ना बढ़े इससे भी लोग मुझे नामर्द बोलने लगे.
मैं पूरे स्कूल का टॉपर था शरीर में जानवरों की तरह बल था, कोई मुझे गंदे गंदे गालियां भी देता तो मैं सुन लेता उसे गाली नहीं देता इससे भी समाज मुझे नामर्द बोलने लगा.
जब मैं क्लास 11th में था तब, हाथों के पंजों में ऐसा बल था जिस किसी भी पुरुष के सीने को पकड़कर खीचू तो उसकी खाल बाहर आ जाए, लेकिन एकांत में रहने के कारण अब लोग नामर्द के साथ बुद्धिहीन भी बोलने लगे.
मेरी गलती यही थी, कि मैं पलट कर किसी का जवाब नहीं देता है इसलिए मैं धीरे-धीरे अब सबके लिए नामर्द बनने लगा.
मेरा सबसे बड़ा दुर्भाग्य यही था कि मेरे घर में घरेलू हिंसा अपने चरम अवस्था पर थी, इसका शिकार मैं ही सबसे ज्यादा हुआ.
बचपन से लेकर युवावस्था तक, बहुत अधिक घरेलू हिंसा ने मेरे मन को खत्म कर दिया, घर में सबसे छोटा होने के कारण मैं किसी का विरोध ना कर सका, क्योंकि मैं भी मानने लगा था कि लोग मुझे ठीक ही बोलते हैं अब वह मुझे नामर्द बोलते हैं.
खानदानी जमीन की विवादों में मैंने अपने चाचा के लड़कों से केस नहीं लड़ा और उन्हें जमीन दे दी, इस पर मुझे मेरे खानदान के लोगों ने ही मुझे चूड़ियां दी लो पहन लो.
अब मेरे गांव के लोग भी जान गए थे चूड़ी देने पर भी इसे गुस्सा नहीं आया यह तो नामर्द का भी बाप निकला, अब शायद मुझे इसकी आदत पड़ चुकी थी.
वर्षों की चलती घरेलू हिंसा ने तेज बुद्धि और मन को कमजोर कर दिया था, फिर शरीर कहां गया पता ही नहीं चला.
शायद मुझे गरीब और कमजोर समझ कर ही मुझे नामर्द बनाया गया होगा।
मैं प्राइवेट जॉब में कभी ऊंचे पोस्ट पर ना जा सका क्योंकि मैं चोरी क्षल कपट मजदूरों को दबाकर काम कराने की आदत मुझ में न थी इसलिए बहुत से कंपनी के मालिकों ने मुझे काम से भी निकाला वह लोग भी समझ जगह थे, ये नामर्द है.
प्राइवेट कंपनी में मुझसे कम पढ़े और कम योग्यता को प्राप्त लोग ऊंचे पोस्ट पर गए और मैं उनके नीचे काम करता रहा क्योंकि वह लोग आज के मर्द थे.
मेरा जिंदगी भर कोई भी अपमान करके चला जाता है और मैं चुप रह जाता क्या इसी को नामर्द बोलते हैं.
ऐसा नहीं कि मैं युद्ध से डरता हूं, लेकिन जीवन के संघर्षों को देखकर अब मन हार चुका है, क्या अब हारा हुआ मन सचमुच में नामर्द बन चुका है.
शायद मेरी शादी की इच्छा नहीं थी, इसके लिए मैंने घर में बहुत मना किया, क्योंकि मैं जानता था आज के समाज में जैसे मर्द की आवश्यकता है वैसा मर्द में नहीं। मेरी शादी में मेरी पत्नी ने मुझे पसंद किया, दिखने में स्मार्ट बाहर से कोई भी पसंद कर लेता।
आज मेरी पत्नी और बच्चे हैं, भगवान ने ठीक-ठाक धन भी दिया है लेकिन फिर भी मेरी पत्नी मेरा अपमान कर देती है, क्योंकि मैं बाकी लोगों की तरह केवल खाने-पीने और ऐश करने में विश्वास नहीं करता, अब मैंने अपना जीवन आध्यात्मिकता में दे दिया है.
मैं जब गांव जाता तो मेरे खानदान के लोग मेरा ही केंद्र बिंदु बनाते, मैं अपने नामर्दी स्वभाव के कारण इसे कभी समझ ही ना सका, मुझे केंद्र बिंदु क्यों बनाया जाता है, मुझे तो बाद में पता चला केवल मेरे टैलेंट का दुरुपयोग करने के लिए.
यदि शराब पीकर अपनों और पड़ोसियों को गाली देने और लड़ने वाले मर्द हैं तो मैं नामर्द ही सही हूं.
यदि अपने ही दोस्तों का रुपया जुए में जीतकर घर ले जाने वाले लोग मर्द हैं, तब अच्छा किया भगवान ने मुझे नामर्द बनाया।
यदि दूसरे का धन संपत्ति बेटी बहन पर बुरी नजर रखने वाले लोग मर्द हैं तब तो मेरा सौभाग्य है कि मैं नामर्द हूं.
चोरी छल कपट बेईमानी का आभूषण पहने हुए लोग यदि मर्द हैं तो मेरे नामर्द होने में क्या बुराई है.
इतने सारे जीवों में मैं भी एक जीव हूं, क्या स्त्री क्या पुरुष क्या मर्द और क्या नामर्द.
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