वृद्धावस्था और मानसिक विकास, मनोवैज्ञानिकों ने जब अध्ययन किया तब पाया कि जानवर के बच्चों का जैसे-जैसे शरीर बढ़ता है वैसे-वैसे बुद्धि भी बढ़ती है परंतु मनुष्य के बच्चे का विकास अलग प्रकार से होता है मनुष्य के छोटे बच्चे का भी मन आराम तकलीफ और अच्छी वस्तु या जो वस्तु प्राप्त नहीं करनी है उसको अच्छा और बुरा पहचान की योग्यता रखता है परंतु मनुष्य के छोटे बच्चों में इतनी समर्थ नहीं होती कि वह अपने से उस चीज को उठा सके कहने का मतलब बचपन में मानव शिशु का मन उसके शरीर की अपेक्षा ज्यादा विकसित रहता है.
वृद्धावस्था और मानसिक विकास
उम्र के साथ-साथ मन और शरीर दोनों की क्षमता में वृद्धि होती है पर दोनों की विकास की गति में बड़ा अंतर रहता है यहां तक की युवावस्था में जब शरीर अपने पूर्ण विकास को प्राप्त कर लेता है मानसिक दृष्टि से व्यक्ति पूर्ण रूप से विकसित नहीं रहता।
इसके बाद शरीर की शक्तियां कुछ समय अपनी सब तरह से अच्छी हालत में स्थिर रहकर अपनी युवावस्था बीतने पर धीरे-धीरे ढलने लगते हैं परंतु क्या इस समय मन की शक्तियों का उच्च होना आवश्यक है कदापि नहीं अभी तो मन के विकास का सही समय युवावस्था के बीच जाने के वर्षों बाद मनुष्य के मन की उन्नति होती रहती है बल्कि देखने में आता है कि जब मनुष्य शरीर बुढ़ापे के कारण बिल्कुल जवाब दे चुका होता है उस समय भी उसका मन के जोरों से काम करने की योग्यता बनाए रखता है.
मनुष्य के शरीर का विकास आरंभ में उसके मन के विकास की अपेक्षा पीछे रहता है युवावस्था की आते-आते विकास मानसिक विकास के बहुत आगे पहुंचकर रुक जाता है पर मानसिक विकास को उस समय वृद्धावस्था तक जारी रखा जा सकता है परंतु ऐसा तभी हो सकता है जब इसके लिए आप संकल्पित हो.
जिनकी उम्र 40 से 50 साल से ज्यादा हो चुकी है वह लोग कहेंगे भाई रहने दो अभी हम बुढ़ापा आ रहा है बुढ़ापा सामने है ऐसी अवस्था में मानसिक कार्य क्षमता के लिए उद्योग का नया उसमें सफलता पाने की आशा करना बिल्कुल गलत है यह युक्ति और संदेश सभ्यता भ्रम की स्थिति को जन्म देने वाला है जब कॉलेज और विश्वविद्यालय के पढ़ाई समाप्त होती है तभी जीवन की वास्तविक शिक्षा आरंभ होती है.
मनुष्य के जन्म लेने का उद्देश्य ही ये है कि वह अपनी शारीरिक मानसिक नैतिक और आध्यात्मिक हर प्रकार की उन्नति करें जैसे बताया जा चुका है मानसिक कार्य क्षमता के लिए विकास करते रहना जीवन भर आवश्यक है जिस व्यक्ति को सुख सम्मान और शांति प्राप्त हो सके हम लोग कह सकते हैं कि मानसिक कार्य क्षमता बढ़ा के आप अपने जीवन को सुगम बना सकते हैं.
यहां पर यह समझना पड़ेगा की मानसिक कार्यक्षमता का क्या अर्थ है किसी भी कार्य को करने के लिए कम से कम तीन आवश्यक अंग होते हैं शुद्धता के साथ काम किया जाए बिना लापरवाही से भूल चूक ना हो दूसरा काम करने का रफ्तार दिया हुआ कम कम समय में पूरा होना चाहिए तीसरा परिश्रम की यह उद्योग करने में काम से कम परिश्रम लगना चाहिए जिससे कार्य क्षमता को बढ़ाया जा सके.
इससे आप अपने काम को आनंद देने वाला बना सकते हैं उच्च कोटि की मानसिक क्षमता के लिए यह जरूरी है कि काम नए विचार नए ढंग और नई-नई सोच के साथ करते रहना वैज्ञानिक तरीके से. किसी भी काम को मानसिक क्षमता के साथ करने पर थकावट भी नहीं होगी।
इसी प्रकार जो किसी भी प्रकार का पाठ कर पाने में समर्थ है वह किसी भी चीज को बहुत तेजी से पढ़ लेगा और याद भी कर लेगा
इसी प्रकार लेखक कवि और वैज्ञानिक अपनी जी मानसिक योग्यता को लगाकर काम करते हैं जिससे वह कम समय में अधिक काम कर पाते हैं और उन्हें मानसिक थकावट भी कम होती है मानसिक क्षमता को प्राप्त करके किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त की जा सकती है.
कोई बूढ़ा हो युवा हो या बच्चा हो हम सभी को अपनी मानसिक दक्षता को धीरे-धीरे बढ़ाते रहने का प्रयत्न करना चाहिए जिससे हमारा जीवन अच्छा और सुखी और सफलता को प्राप्त हो सके.
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