welcom pathgyan.com श्री लक्ष्मी चालीसा श्री महालक्ष्मी चालीसा आरती श्री लक्ष्मी जी की
श्री लक्ष्मी चालीसा
॥ दोहा॥
मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्ध करि, पुरवहु मेरी आस॥
॥ सोरठा॥
यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करूँ।
सबविधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥
॥ चौपाई ॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरों तोही, ज्ञान बुद्धि विद्या दे मोही।
तुम समान नहीं कोई उपकारी, सब विधि पुरवहु आस हमारी।
जय जय जय जननी जगदम्बा, सबकी तुम ही हो अवलम्बा।
तुम हो सब घट घट के वासी, विनती यही हमारी खासी।
जग जननी जय सिन्धुकुमारी, दीनन की तुम हो हितकारी।
बिनवों नित्य तुमहिं महारानी, कृपा करो जग जननि भवानी।
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी, सुधि लीजै अपराध बिसारी।
कृपा दृष्टि चितवों मम ओरी, जग जननी विनती सुन मोरी।
ज्ञान बुद्धि सब सुख का दाता, संकट हरो हमारी माता।
क्षीर सिन्धु जब विष्णु मथायो, चौदह रत्न सिन्धु में पायो।
चौदह रत्न में तुम सुखरासी, सेवा कियो प्रभु बन दासी।
जो जो जन्म प्रभु जहां लीना, रूप बदल तहँँ सेवा कीन्हा।
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा, लीन्हेहउ अवधपुरी अवतारा।
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं, सेवा कियो हृदय पुलकाहों।
अपनायो तोहि अंतरर्यामी, विश्व विदित त्रिभुवन के स्वामी।
तुम सम प्रबल शक्ति नहिं आनि, कहूँ लौं महिमा कहौं बखानी।
मन क्रम वचन करे सेवकाई, मन इच्छित वांछित फल पाई।
तजि छल कपट और चतुराई, पूजहिं विविध भाँति मनलाई।
और हाल मैं कहों बुझाई, जो यह पाठ करै मन लाई।
ताको कोई कष्ट न होई, मन इच्छित पावै फल सोई।
त्राहि त्राहि जय दुख निवारिणी, ताप भव बंधन हारिणी।
जो यह पढ़े और पढ़ावे, ध्यान लगाकर सुने सुनावे।
ताको कोई न रोग सतावे, पुत्र आदि धन सम्पति पावै।
पुत्रहीन अरू संपतिहीना, अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना।
विप्र बोलाय के पाठ करावै, शंका दिल में कभी न लावै।
पाठ करावै दिन चालीसा, तापर कृपा करें गौरीसा।
सुख सम्पति बहुत सो पावै, कमी नहीं काहु की आवेै।
बारह मास करे सो पूजा, तेहि सम धन्य और नहिं दूजा।
प्रतिदिन पाठ करै मनमाहीं, उन सम कोई जग में कहूँ नाहीं।
बहु विधि क्या मैं करों बड़ाई, लेय परीक्षा ध्यान लगाई।
करि विश्वास करे व्रत नेमा, होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा।
जय जय जय लक्ष्मी भवानी, सब में व्यापित हो गुणखानी।
तुम्हारो तेज प्रबल जग माहीं, तुम समकोउ दयालु कहूँ नाहिं।
मोहि अनाथ की सुध अब लीजै, संकट काटि भक्ति मोहि दीजै।
भूल चूक करि क्षमा हमारी, दर्शन दीजै दशा निहारी।
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई, ज्ञान बुद्धि मोहि नहिं अधिकाई।
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी, तुमहि अछत दुख सहते भारी।
नहिं मोहि ज्ञान बुद्धि है मन में, सब जानत हो अपने मन में।
रूप चतुर्भुन करके धारण, कष्ट मोर अब करहु निवारण।
॥ दोहा ॥
त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो बेगि सब त्रास।
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो दुश्मन का नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।
मातु लक्ष्मी दास पै, करहु दया की कोर॥
श्री महालक्ष्मी चालीसा
॥ दोहा ॥
जय जय श्री महालक्ष्मी करूँ मात तब ध्यान।
सिद्ध काज मम॒ कीजिए निज शिशु सेवक जान॥
॥ चौपाई ॥
नमो महा लक्ष्मी जय माता, तेरों नाम जगत विख्याता।
आदि शक्ति हो मात भवानी, पूजत सब नर मुनि ज्ञानी।
जगत पालिनी सब सुख करनी, निज जनहित भण्डारन भरनी।
श्वेत कमल दल पर तब आसन, मात सुशोभित है पद्मासन।
इवेताम्बर अरू एवेता भूषन, एवेतहि श्वेत सुसज्जित पुष्पन।
शीश छत्र अति रूप विशाला, गल सौहे मुक्तन की माला।
सुन्दर सोहे कुंचित केशा, विमल नयन अरू अनुपम भेषा।
कमलनाल समभुज तवचारी, सुरनर मुनिजनहित सुखकारी।
अद्भुत छटा मात तवबानी, सकलविश्व कीन्हो सुखखानी।
शांतिस्वभाव मृदुलतब भवानी, सकल विश्वकी हो सुखखानी।
महालक्ष्मी धन्य हो माई, पंच तत्व में सृष्टि रचाई।
जीव चराचर तुम उपजाए, पशु पक्षी नर नारि बनाए।
क्षितितलत अगणित वृक्ष जमाए, अमितरंग फल फूल सुहाए।
छवि बिलोक सुरमुनि नरनारी, करे सदा तव जय-जय कारी।
सुरपति औ नरपत सब ध्यावें, तेरे सम्मुख शीश नवावीं।
चारहु वेदन तव यश गाया, महिमा अगम पार नहिं पाया।
जापर करहु मातु तुम दाया, सोई जग में धन्य कहाया।
पल में राजाहि रंक बनाओ, रंक राव कर बिलम न लाओ।
जिन घर करहु माततुम बासा, उनका यश हो विश्व प्रकाशा।
जो ध्यावै सो बहु सुख पावै, विमुख रहै हो दुख उठावै।
महालक्ष्मी जन सुख दाई, ध्याऊं तुमको शीश नवाई।
निजजन जानिमोहिं अपनाओ, सुखसम्पति दे दुख नसाओ।
ॐ श्री-श्री जयसुखकी खानी, रिद्धिसिद्ध देउ मात जनजानी।
ॐ“हीं-ॐहीं सब ब्याधिहतओ, जनउन बिमल दृष्टिदर्शाओ।
ॐक्लीं-ॐ“क्लीं शत्रुन क्षयकीजै, जनहित मात अभय वरदीजै।
ॐ जयजयति जयजननी, सकल काज भक्तन के सरनी।
ॐ नमो-नमो भवनिधि तारनी, तरणि भंवर से पार उतारनी।
सुनहु मात यह विनय हमारी, पुरवहु आशन करहु अबारी।
ऋणी दुखी जो तुमको ध्यावै, सो प्राणी सुख सम्पत्ति पावै।
रोग ग्रसित जो ध्यावै कोई, ताकी निर्मल काया होई।
विष्णु प्रिया जय-जय महारानी, महिमा अमित न जाय बखानी।
पुत्रहीन जो ध्यान लगाव, पाये सुत अतिहि हुलसावै।
त्राहि त्राहि शरणागत तेरी, करहु मात अब नेक न देरी।
आवहु मात विलम्ब न कीजै, हृदय निवास भक्त बर दीजै।
जानूँ जप तप का नहिं भेवा, पार करो भवनिध बन खेवा।
बिनवों बार-बार कर जोरी, पूरण आशा करहु अब मेरी।
जानि दास मम संकट टारौ, सकल व्याधि से मोहिं उबारौ।
जो तब सुरति रहे लव लाई, सो जग पावै सुयश बड़ाई।
छायो यश तेरा संसारा, पावत शेष शम्भु नहिं पारा।
गोविंद निशदिन शरण तिहारी, करहु पूरण अभिलाष हमारी।
॥ दोहा ॥
महालक्ष्मी चालीसा. पढ़े सुनै चित लाय।
ताहि पदारथ मिलै अब कहे वेद अस गाया
आरती श्री लक्ष्मी (महालक्ष्मी) जी की
ॐ जय लक्ष्मी माता, जय लक्ष्मी माता।
तुमको निश दिन सेवत, हर विष्णु विधाता॥ ॐ”
उमा रमा ब्रद्माणी तू ही है जग माता।
सूर्य चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥ ॐ”
दुर्गा रूप निरंजन, सुख सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धधि सिद्धि धन पाता ॥ ॐ”
तू पाताल निवासनी , तू ही है शुभ दाता।
कर्म प्रभाव प्रकाशक, जग निधि में त्राता॥ ॐ”
जिस घर में तुम रहती सब सद्गुण आता ।।
सब संभव हो जाता , मन नहीं घबराता। ॐ”
तुम बिन यज्ञ न होवे, वस्त्र न कोई पाता ।
खान पान को वैभव, सब तुम से आता ॥ जय”
शुभ गुण सुन्दर मुक्ति, क्षीर निधि जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन , कोई नहीं पाता॥ जय”
यह आरती लक्ष्मी जी की, जो कोई नर गाता।
उर आनन्द समाता पाप, पाप उतर जाता॥ जय”
श्री तुलसी चालीसा आरती तुलसी माता की
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