विचार शक्ति जादू है जानिए कैसे

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विचार शक्ति जादू है
विचार शक्ति जादू है

 

विचार शक्ति जादू है जानिए कैसे

संसार में सबसे बड़ी शक्ति जहां तक मनुष्य का संबंध है विचार शक्ति है। विचार के कारण ही मनुष्य श्रेष्ठ बन जाता है और इसी के कारण वह नीच और प्रथम हो जाता है । मनुष्य ऐसा ख्याल करते हैं कि उनकी उन्नति और अपने साथियों से आदर व सरकार किसी शक्ति- वान व्यक्ति की कृपा से या परस्थितियों के द्वारा प्राप्त होती है परंतु ऐसा नहीं है

 जो ऐसा ख्याल करत हैं यह उनकी बड़ी भारी भूल है। जैसे मनुष्य अपने विचार प्रगट करता है उसी के अनुसार उसकी उन्नति या अवनति देखी जाती है और उसी के अनुसार उसमें आत्मवल पाया जाता है।

मानव अपने विचारो का फल है  इस बात को महर्षियो  ने कई युग हुए, कह दिया था; परंतु बड़ा ही अचरज है कि इतना भारी समय बीत गया; परंतु इस विचित्र सत्यता का पता बहुधा मनुष्यों को नहीं लगा । हम ने विचित्र इसको इस लिए कहा है कि इसका सम्पूर्ण अर्थ विचित्र है मनुष्य अपनी  स्थिति, वंशावली, बाहयक्षेत्र और कुछ बाहर शक्ति का जिस पर वह अपने जीवन, चरित्र, सौभाग्य और दुर्भाग्य का भार सौंपते हैं, विचार सैकड़ों वर्षों से करता चला आता है ।

विचार शक्ति जादू है जानिए कैसे
विचार शक्ति जादू है जानिए कैसे

 

 अपने जीवन में पूर्णता प्राप्त करने के लिए मनुष्य कभी इस वस्तु को दोष देते हैं और कभी उसको और सदा अपने बाहर उसके कारणों को ढूढा करता है, किंतु बात यही है कि अपने भाग्य के बनाने वाले स्वयं आप हैं । प्रत्येक समय मनुष्य अपने आप को बनाते रहते हैं । मूर्ख विश्वास व्यक्ति भी अपने ही विचारों का उत्पादन है।

मनुष्य केवल अपने ही नीच, घृणित और बुरे विचारों के कारण नीच, घृणित और बुरा बन जाता है कमज़ोर और अस्थिर विचारों के कारण मनुष्य निर्बल और चल-प्रकृति बन जाता है। यदि तुम किसी दिन कहीं पर भी मनुष्यों के हृदयस्थ विचारों का पता लगाना चाहते हो तो उनके चेहरे को देखकर फौरन पता लगा सकते हो कि यह मनुष्य अच्छे विचार वाला है या बुरे ।

उदास चेहरे को देखे। जिसके पीछे दिमाग़ है जिसमें एक के पीछे एक मूर्खता के विचार उठते हैं और ग्रीष्मऋतु के बादलों की भाँति भागते हुए चले जाते हैं। कोई भी विचार क्षण भर के लिए नहीं ठहरता किंतु एक प्रकार से आता है और दूसरी ओर चला जाता है ।

यदि तुम किसी उदास और तेजहीन चेहरे की ओर देखे। जो कि भोग विलास और बुरी आदतों के कारण बिगड़ गया है तो तुम फौरन उसमें रहने वाले विचारों का ठीक ठीक पता लगा सकते हो ।

लेकिन किसी किसी का यह भी कहना है, कि मुख देख मनुष्य के अन्तर्गत विचारों का पता लगाने मे कभी कभी भूल होना सम्भव है; परंतु मेरे ख्याल से कभी भी भूल नहीं हो सकती पवित्र और उत्तम विचार से कभी बदमाश कैसा चेहरा नहीं हो सकता और न श्रात्मा त्याग और संयम से शराबी कैसा चेहरा हो सकता है। प्रकृति में कभी भूल नहीं देखी जाती । हमको उसका कौड़ी कौड़ी बदला चुकाना पड़ता है ।

क्या अच्छा हो यदि एक एक पुरुष को पकड़े और उनसे करें, देखो भाई, तुम्हारे पास पारस पथरी है और इस अमूल्य शक्ति की सहायता से जो कि तुम्हारे पास है, तुम अपने जीवन की कुल नीच धातों को स्वर्ण में परिवर्तित कर सकते हो।

हां तभी तो अगर कोई यह कर सके। यदि किसी ने कभी ऐसा किया हो तो पागलपन समझा जाएगा, परंतु यह सत्य है कि मनुष्यत्व में यह द्योतक और परिवर्तन करने वाली शक्ति है। शोक है वे नहीं जानते ।

जिस बात को नेता और शिक्षक लोग नहीं जानते, भला उसको अन्य पुरुष कैसे जान सकते हैं। प्रत्येक सभा सभा में यह बात अवश्य सुनने में आती है कि यह करो, वह करो, परंतु उस अमूल्य रत्न के बाबत कुछ भी नहीं देता जोकि हमारे हृदय में छिपा हुआ है और पहचानने की आवश्यकता है.

मुझे प्राय: इस पर बड़ा अचम्भा होता है कि क्या फल होगा यदि कुछ साहसी धर्म गुरु अपना साधारण उपदेश देने के बजाय जिसका लोगों पर बहुत ही कम प्रभाव पड़ता है यदि जोर के साथ यह कहे की घर जाओ और विचार करो यह कितनी बड़ी शिक्षा होगी ।

मनुष्यों को विचार करने का ढंग बतलाना चाहिए इसकी बड़ी आवश्यकता है । यह विचार तो सीधा है परंतु जब जनता के लिए इस नियम का उपयोग किया जाता है तो यी सबसे बड़ी आपत्ति उपस्थित होती है । मनुष्य कब देखेंगे और जानेंगे कि उनकी सफलता कार्य में नहीं है बल्कि कार्य को विधि में और विचार ही विधि है ।

मनुष्य वैसा ही होगा जैसा उसका विचार होगा किसी ! बात के ऊपर गम्भीर और पूर्ण विचार करो । यदि तुम ऐसा करोगे तो तुम्हारे मस्तक में विशेष प्रकार के विचार के लिए स्थान बन जाए। यदि तुम्हारे विचार गन्दे और तुच्छ देंगे तो उस समय उस स्थान को दूर करके बुरे विचार से छुटकारा पाना कठिन जान पड़ेगा । जो विचार बार बार मस्तक में उठा करता है वह लोहे की कड़ी के समान है जो तुम्हें दृढ़ता से उस वस्तु के साथ जकड़ता है जिसका तुमने विचार किया है।

 यदि तुम्हारे विचार गन्दे और घृणित हैं। वो जितने बुरे और घृणित वे हैं उतने ही नीच और घृणित तुम हो जाओगे। इससे तुम बच नहीं सकते । यदि तुम्हारे विचार पवित्र शुभ और अच्छे हैं, तुम सभ्य बन जाओगे, फिर तुम बिगड़ नहीं सकते। जैसा मनुष्य विचारता है उसी के अनुसार वह बन जाता है।

 

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