कुछ रोगों के घरेलु उपाय (kuch rogo ke gharelu upay)

pathgyan.com में आपका स्वागत है, कुछ रोगों के घरेलु उपाय (kuch rogo ke gharelu upay) यहाँ जनकल्याणकी भावनासे कुछ घरेलू उपचार हेतु परीक्षित नुस्खे प्रस्तुत किये जा रहे हैं। इनसे यथासम्भव लाभ उठाया जा सकता है- नुस्खे एवं उनकी विधि निम्न प्रकार प्रस्तुत है.

कुछ रोगों के घरेलु उपाय (kuch rogo ke gharelu upay)
कुछ रोगों के घरेलु उपाय (kuch rogo ke gharelu upay)

 

कुछ रोगों के घरेलु उपाय (kuch rogo ke gharelu upay)

(१) दाद, खाज, खुजलीका उपचार –

मूलीके बीज पानीमें महीन पीसकर, आगपर खूब गरम करके दाद, खाज, खुजलीके स्थानपर लगाने चाहिये। प्रथम दिवस तो मूलीके बीज लगानेसे खूब जलन होगी और कष्ट भी होगा, परंतु ध्यान रहे कि दवा जितनी जोरोंसे लगेगी उतना अधिक लाभ होगा। द्वितीय दिवस भी यही प्रयोग करे। प्रथम दिवसकी अपेक्षा द्वितीय दिवस दवा लगानेसे कम कष्ट होगा। इसी प्रकार यह उपचार 3-4 दिन करे, इससे दाद, खाज, खुजली दूर हो जाती है

 

(२) नहरुआ का उपचार —

नहरुआ रोगको स्नायुक, नारु, गिनीवर्गवाला, स्नायुरोग आदि नामोंसे भी जाना जाता है। नहरुआ एक प्रकारका कृमि (कीड़ा) है। इसके बारीक बारीक अण्डे दूषित जलमें रहते हैं। इस जलको पीनेसे शरीरमें दोषकी उत्पत्ति हो जाती है। शरीरके जिस भागमें यह कीट त्वचाको भेदकर निकलनेका प्रयास करता है, उस स्थानपर सूजन उत्पन्न होकर एक श्वेत तन्तु बाहर निकल आता है। उसी समय यह ज्ञात होता है कि यह नहरूआ है।

यह कीड़ा धीरे-धीरे चमड़ीके बाहर निकलता है। इसे धीरे-धीरे निकालनेका ही प्रयास करना चाहिये। इस तन्तुके बीचमें टूट जानेसे यह बहुत पीडादायी हो जाता है, अर्थात् शरीरके अंदरका तन्तुभाग फिर दूसरे स्थानपर फोड़ा उत्पन्न करके निकलनेका प्रयास करता है। इससे महान् कष्ट होता है। यह बगैर टूटे पूरा बाहर निकल आता है तो सूजन शान्त होकर रोग भी ठीक हो जाता है। इसके

उपचार हेतु निम्न दो प्रयोग प्रस्तुत हैं-

(अ) नहरुआके फूट निकलनेपर एक धतूरेके पत्तेपर थोड़ा गुड़, अफीम और रीठा – पानीमें पीसकर लुगदी बनाकर रखे तथा उक्त पत्ता नहरुआ निकलनेके स्थानपर बाँध दे। तीन दिनतक बँधा रहने दे। अन्दर- -ही- अन्दर नहरुआ नष्ट हो जायगा ।

 (ब) सफेद कलईके चूने (जो पानमें खाया जाता है) के बड़े-बड़े साफ टुकड़े और शुद्ध तिलका तेल जितने तेलमें जितने टुकड़े पीसे जा सकें) दोनोंको खरलमें डालकर महीन पीस ले, जिससे वह मलहम – जैसा बन जाय। दवा जितनी अत्यधिक घोंटी जायगी, उतनी ही लाभदायक होगी ।

दवा लगानेकी विधि – अकरुआ (आँकड़ा) का एक पीला पत्ता लेकर उसपर उक्त थोड़ी-सी मलहम लगाकर, जहाँ नहरू आका मुँह हो, वहाँ भी दवा लगाकर उस पत्तेको रखकर ऊपरसे आकके १०-१२ हरे पत्ते रखकर मजबूती से पट्टी बाँध दे। तीन दिन बाद पट्टी खोल ले। यदि पूर्ण आराम न हो तो पुनः इसी प्रकार मलहम लगाकर पट्टी बाँधे और तीसरे दिन खोले । नहरूआपर पानी नहीं लगने दे। ईश्वरकी कृपासे लाभ हो जायगा ।

 

(३) खूनी बवासीर (रक्तार्श) का उपचार –

रसौत एक तोला और कलमी सोरा एक तोला दोनोंको पानीमें महीन पीसकर आठ-आठ आनेभरकी गोलियाँ बना ले। एक गोली सुबह तथा एक गोली शामके समय ठंडे जलके साथ खिला दे । यह दो दिवसकी दवा है। इससे खून बंद हो जायगा । यदि आराम न हो तो इसी प्रकार दो दिन और दवा ले। तेल, खटाई, गुड़, लाल मिर्चका सेवन न करे।

 

 

(४) हैजा का उपचार –

खस ( सींक या ताजी जड़) तीन माशा, तुलसी पत्ते ( ताजे पत्ते) १० नग, काली मिर्च ७ नग (यह एक खुराक है) – ये तीनों चीजें लेकर ताजे पानी में पीसकर कपड़छान करके रोगीको पानी पिला दे । स्वादहेतु थोड़ी शक्कर व नमक भी मिलायी जा सकती है।

 

 

(५) दमा (श्वासरोग ) – का उपचार –

खानेका नमक डेढ़ तोला लेकर सुनारकी सोना गलानेकी कुठालीमें पकवा लिया जाय। पकनेपर उसका स्वरूप भस्म – जैसा हो जायगा। उस नमकको बारीक पीस ले। रात्रिमें भोजनके उपरान्त दो मुनक्का (दाख) लेकर उसके बीज निकालकर डेढ़-डेढ़ रत्ती नमक उसमें भर ले और गोली – जैसा बना ले। फिर धीरे-धीरे चूसकर दोनों गोलियाँ खा ले। इसके बाद ४ घंटेतक पानी नहीं पिये। इसी तरह एक सप्ताहतक उपचार करते रहनेसे अवश्य लाभ होगा।

 

(६) आँव (आमातिसार) का उपचार –

(अ) एक तोला सौंफ लेकर उसमेंसे आधा तोला सौंफ तवेपर सेंक ले। कुछ लाल पड़नेपर उतार ले। उसमें शेष बची कच्ची सौंफ मिलाकर महीन पीसकर चार पुड़िया बराबर मात्रामें बना ले। चारों पुड़िया दिनमें चार बार खाना है। एक पुड़िया सौंफ मुँह में रखकर चूसते रहे। जब रस पूर्ण चूस लिया जाय तो बाकी हिस्सा भी गटक ले और ऊपरसे पानी पी ले। इस चूर्णमें एक तोला शक्कर अवश्य मिला ले। इसी प्रकार २-३ दिवस उपचार करे। कैसे भी आँवके दस्त हों या साधारण दस्त हों, आराम होगा। यह उपचार गर्मी से होनेवाले दस्तोंमें कारगर सिद्ध होता है।

(ब) अगर आँव (पेचिश) के दस्तके साथ खून भी आता हो तो सूखे आँवलेके चूर्ण में शहद मिलाकर चाटे । ऊपरसे बकरीका दूध, शक्कर मिलाकर पीये । यह उपचार दिनमें तीन बार करे। प्रतिदिवस एक सप्ताहतक करते रहे। आराम अवश्य होगा । परीक्षित प्रयोग है।

 

(८) शीघ्र प्रसूति ( सुप्रसव) का उपाय –

आजके वैज्ञानिक युगमें बच्चों का जन्म अधिकांशरूपमें माताके पेटमें चीरा लगाकर कराया जाना देखा, सुना जा रहा है। यह माताके आहार-विहारका ही परिणाम है। आजकी माताएँ न तो चक्की पीसना ही पसंद करती हैं और न टहलनेका शौक रखती हैं। उन्हें तो आराम करना, मनचाहा खाना-पीना आदि कार्य ही रुचिकर लगते हैं। फलस्वरूप परिणाम प्रसवके समय सामने आ ही जाता है। अच्छी एवं सुलभ प्रसूतिके लिये विद्वान् मनीषियोंने अनेक सुझाव सुझाये हैं । उनमेंसे कुछ उपाय जो सहज एवं सरल हैं, माताओंके कल्याण – भावनार्थ प्रस्तुत हैं—

यदि प्रसव होनेमें ज्यादा विलम्ब हो तो, केलेकी जड़ माताके गलेमें बाँध दे। यदि बच्चा गर्भमें ही मर गया हो तो आधा या पौन तोला गायका गोबर गर्म पानीमें घोलकर पिला देनेसे मरा हुआ बच्चा बाहर निकल आता है।

हाथमें चुम्बकपत्थर रखनेपर गर्भिणीको प्रसवपीड़ा नहीं होती। सवा तोले अमलतासके छिलकोंको पानी में आँटाकर और शक्कर मिलाकर पिलानेसे भी प्रसवपीड़ा कम हो जाती है।

मनुष्यके बाल जलाकर उसमें गुलाब जल मिलाकर गर्भिणी तलवोंमें मलनेसे बड़ा लाभ होता है।

तिल और सरसोंके तेलको गरम कर गर्भिणीके पार्श्व, पीठ, पसली आदि अङ्गोंपर धीरे-धीरे मलने से भी प्रसव शीघ्र होता है। फूल न आये हों, ऐसी इमलीके छोटे वृक्षकी जड़को प्रसूतिके सिरके सामनेके बालोंमें बाँध देनी चाहिये। ऐसा करनेसे बिना तकलीफके सहज प्रसव हो जाता है। परंतु प्रसव होनेके तुरंत बाद उन बालोंको कैंची से काट देना चाहिये। यह प्रयोग परीक्षित है।

 

 

(९) नवजात शिशुका आहार –

नवजात शिशुका प्रारम्भिक आहार माताका दूध है। प्रकृतिने बच्चोंके लिये दूधका विधान किया है। सभी जानवर शेर, चीता, भेड़िया आदि हिंसक पशु अपने बच्चोंको अपना ही दूध पिलाते हैं। लेकिन मनुष्यजातिमें इस प्राकृतिक विधानका उल्लंघन होते देखा जा रहा है। सामान्यतः माताएँ अपने बच्चोंको अपना दूध पिलाकर, वे अपना बोझ धायपर छोड़कर निश्चिन्त हो जाती हैं। यह कृत्य अप्राकृतिक होकर हानिप्रद है।

अपना दूध न पिलानेसे प्रसूता स्त्रीका स्वास्थ्य खराब हो जाता है, यह सही नहीं है। हाँ, यह बात निस्संकोच स्वीकार की जा सकती है कि यदि वह माता कमजोर हो, अस्वस्थ हो या उसका दूध बच्चेके पालनके लिये पर्याप्त न हो तो ऐसे बच्चोंको कोई अन्य दूध (जो पच जाता हो, जैसे गाय-बकरीका) पिलाना चाहिये । गायका दूध पानी मिलाकर, उबालकर थोड़ा गरम ( कुनकुना) पिलाना चाहिये।

जो माताएँ स्वयंका दूध न पिलाना चाहती हों तो उन माताओंसे प्रार्थना है कि प्रसवके एक सप्ताहतक वे अपना दूध बच्चेको अवश्य पिलावें। जिस समय बच्चा पैदा होता है, उसकी आँतोंमें काला – काला मल एकत्रित रहता है। उस मलको निकालना आवश्यक होता है। तुरंत प्रसूता माताका दूध बच्चेको रेचक ( जुलाबके माफिक ) होता है। उस दूधके पीनेसे नवजात शिशुका मल साफ हो जाता है। जो माताएँ इसपर भी दूध नहीं पिलाती हैं और बच्चेका मल साफ करनेके लिये रेंड़ी (अरंडी ) – का तेल पिलाती हैं। ऐसी अवस्थामें बच्चेको विरेचन (जुलाब) देना कितना नुकसानदेह है—यह उनके लिये विचारणीय है। अतः ऐसी माताओंको कम-से-कम एक सप्ताहतक तो बच्चेको अपना दूध अवश्य ही पिलाना चाहिये।

जो माताएँ अपने बच्चोंको पर्याप्त समयतक दूध पिलाती हैं, उनके अद्भुत गुण निम्नवत् हैं-

१. माताका दूध बच्चेके लिये अमृततुल्य है। २. जो माता अपने बच्चेको दूध न पिलाकर अपने सौन्दर्यको स्थिर रखना चाहती है, उसे संसारमें माताके पदका अधिकारी नहीं समझना चाहिये ।

३. क्रोध करके बच्चेको दूध पिलानेसे बच्चेपर जहरीला प्रभाव पड़ता है। अतः क्रोधकी दशामें बच्चेको दूध नहीं पिलाना चाहिये। क्रोध शान्त होनेपर दूध पिलावे दूध हमेशा प्रसन्नचित्त होकर पिलाना चाहिये, जिससे बच्चा हृष्ट-पुष्ट रहता है।

४. यदि माताका दूध बच्चेके लिये पर्याप्त नहीं है तो दूध बढ़ानेका उपाय करना चाहिये ।

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५. जिस माताको दूध कम होता है, उसे शाली- चावल, साठी – चावल, गेहूँ, लौकी, नारियल, सिंघाड़ा, शतावरी, विदारीकन्द, लहसुन आदि पदार्थ प्रसन्नचित्त होकर सेवन करना चाहिये। कलम चावल, जिसे काश्मीरमें महातंदुल कहते हैं, इसका सेवन दूध बढ़ानेके लिये उत्तम होता है। कलम चावल दूधमें पीसकर सेवन करना चाहिये । जहाँ कलम चावल उपलब्ध न हो वहाँ शतावरी या विदारीकंदको दूधमें पीसकर पीना चाहिये । इससे दूध बढ़ जाता है। माताके आहारमें छिलकेवाली दालकी मात्रा बढ़ा देनेसे भी दूध प्रायः बढ़ जाया करता है।

आधुनिक माताओंसे विनम्र प्रार्थना है कि अपने दिखावटी सौन्दर्यके लिये अपने हृदयके टुकड़े ( मासूम बच्चे ) को अपने अमृतरूपी दूधसे वञ्चित नहीं करें। सौन्दर्य तो समय आनेपर नष्ट ही हो जाता है, फिर उसपर गर्व कैसा ?

अतः अपने मातृत्वके अधिकारसे वञ्चित न रहें और दूध न पिलानेकी स्थितिमें स्तनोंमें होनेवाले कैंसर आदि भयंकर रोगोंसे बचें।

 

 

(१०) आँवलाद्वारा स्वास्थ्य रक्षा –

आँवला प्रमेह, ज्वर, वमन, प्यास (तृषा), रक्तविकार, पित्तविकार, अरुचि और अजीर्ण आदिपर प्रयोग किया जाता है।

आँवलेके गुण संक्षेपमें प्रस्तुत हैं-

१. रसायन चूर्ण – आँवला, गिलोयसत्व और गोखरू – इन्हें समान मात्रामें लेकर चूर्ण बना ले। इस चूर्णको तीन माशेकी मात्रामें शक्करके साथ खानेसे पित्त और दाह (जलन) जाती रहती है।

२. आँवला (ताना ) – का रस आँखमें टपकानेसे जाला दूर हो जाता है।

३. मेंहदी और सूखा आँवला बारीक पीसकर पानी में गूँथकर सिरपर लगानेसे बाल काले हो जाते हैं।

४. धनिया- बीज और आँवला रातको पानीमें भिगोकर, प्रातः काल छानकर वह पानी पीनेसे पेशाबकी जलन दूर हो जाती है।

 

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