वातगुल्म (पेट में गांठ) रोग के बारे में जानकरी और उपचार (pet me gath)

pathgyan.com आपका स्वागत है, वातगुल्म (पेट में गांठ) रोग के बारे में जानकरी और उपचार (pet me gath) आयुर्वेदमें कुछ रोगोंके विस्तृत विवरण मिल जाते हैं, जिन्हें आजके यन्त्र देख नहीं पाते। विवरण यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है.

वातगुल्म (पेट में गांठ) रोग के बारे में जानकरी और उपचार (pet me gath)
वातगुल्म (पेट में गांठ) रोग के बारे में जानकरी और उपचार (pet me gath)

 

वातगुल्म (पेट में गांठ) रोग के बारे में जानकरी और उपचार (pet me gath)

प्रकृति हमारी माता है। हमारे स्वास्थ्यके विरोधी कोई तत्त्व अगर हमारे शरीरमें पनपने लगते हैं तो प्रकृति माता उनको दूर करनेके लिये भरसक प्रयत्न करती है। आँव भी एक ऐसा रोग है, जो शरीरमें सेन्द्रिय विष तैयार करता है। इसलिये प्रकृति माता उस विषको निकालनेके लिये बार-बार शौचकी संख्या बढ़ा देती है। किसी भी चिकित्सकका प्रकृतिके इस कार्यमें सहयोग करना ही कर्तव्य है, उसके विरुद्ध जाना नहीं जब आँवके दस्त लगते हैं तब रोगीको एक तो बार-बार शौच जाना पड़ता है और उसको मरोड़ भी बहुत होता है।

वह चाहता है कि इन दोनों कष्टोंसे बचे और चिकित्सकके पास दौड़ता है। इस स्थितिमें आयुर्वेद रोगीके कष्टकी निवृत्तिके लिये बेलके मुरब्बे आदिका सेवन कराता है और परहेज कराता है। औषधकी योजना ऐसी बताता है कि प्रकृतिके कार्यमें कोई बाधा न पड़े और रोगीका कष्ट दूर हो जाय। किंतु आजकल कुछ ऐसी औषधियाँ निकल गयी हैं, जिनके खिला देनेके बाद रोगीको तत्काल कष्टसे छुटकारा हो जाता है और वह समझता है कि हम शीघ्र ही अच्छे हो गये

शायद चिकित्सक भी समझता होगा कि हमनेरोगीको ठीक कर दिया। किंतु होता है उलटा । प्रकृति जिस विषको आँवके माध्यमसे निकालना चाहती थी, वह आँव पेटमें ही रह गया। तब वह दो रूपोंमें परिणत हो जाता है। एक तो वह आँव आँतोंकी दीवारमें चिपककर परतकी तरह बन जाता है। दूसरे उसी आँवके ऊपर कुछ मांस भी चारों तरफसे बढ़ने लगती है, जो कई किलो भारतक हो जाता है। किंतु इसे किसी यन्त्रसे नहीं देखा जा सकता ।

इसीका नाम वातगुल्म है। आयुर्वेदके अनुसार गुल्म दो प्रकारके होते हैं- (१) वातगुल्म और (२) रक्तगुल्म । रक्तगुल्म तो गर्भाशयका रोग है और वातगुल्म पेटका रोग है । इसे देखनेके दो उपाय हैं-

(१) रोगीको चित लिटाकर उसके दोनों पैरोंको मोड़कर उसकी नाभिके चारों और अँगुलियोंसे टटोला जाय और उसकी सीमा देख ली जाय। हाथका स्पर्श बता देता है कि पेटमें एक गाँठ है और वह कितनी बड़ी है।

(२) दूसरा उपाय यह है कि पेट खोलकर देखे तो आँखें साफ देख लेती हैं कि पेटमें बहुत बड़ी गाँठ है। एक रोगीका पेट खोला गया, उसके पेटमें गुल्मकी पाँच गाँठें थीं। सबका ऑपरेशन एक साथ सम्भव न था, इसलिये वह सी दिया गया। प्रायः एक ही ऑपरेशनमें मृत्यु हो जाती है, बहुत सावधानी बरतने पर कई ऑपरेशन सम्भव हैं।

औषध – [१] महाशंखवटी-२ ग्राम, कृमिमुद्गररस-३ ग्राम प्रवालपञ्चामृत-३ ग्राम, कामदुघारस ४ ग्राम, साधारण सूतशेखररस-३ ग्राम, अम्बर – १ / ६ ग्राम, सिद्धमकरध्वज – १ ग्राम सितोपलादि – २५ ग्राम – इन औषधोंकी २१ पुड़िया बनायें। सुबह-शाम एक-एक पुड़िया खाली पेट शहदके साथ लें।

[२] कुबेराक्षादिवटी-दो गोली, लहसुनादिवटी – दो गोली – चारों गोलियाँ निगलकर मीठा कुमार्यासव चार ढक्कन पानी मिलाकर पी लें। इसे भोजनके आधे घंटे बाद दोनों समय लें।

यदि लहसुनका परहेज हो तो लहसुनादिवटीके स्थानपर कपीलुहिंग्वादिवटी १ या २ गोली लें।

[३] रातको सोते समय १० ग्राम ईसबगोलकी

भूसीके साथ त्रिफला चूर्ण पानी या दूधसे लें। दूधमें चीनी मिलायी जा सकती है। पेटको साफ रखना आवश्यक है। ईसबगोलकी भूसी परतकी तरह आँतों में चिपके आँवको फुलाता है और त्रिफला उसे निकालता है। इसलिये औषधसेवन करनेपर यदि शौचमें चिकनाहट मालूम पड़े तो रोगी घबराये नहीं, वह समझे कि आँव निकल रहा है।

इस रोगमें प्रायः अम्लपित्त भी हो जाता है, ऐसी स्थितिमें अविपत्तिकरचूर्ण ५-५ ग्राम भोजनसे १० मिनट पहले पानीसे ले लें। एक महीनेके लिये हर खट्टे फलका सेवन निषिद्ध है। इस अवसरपर मलायी निकाले हुए पावभर दूधको फ्रिजमें रख दें। यदि फ्रिज न हो तो मिट्टीके बरतनमें पानी डाल दें, उसीमें दूधके बरतनको रख दें ताकि वह ठंडा बना रहे। प्रत्येक दो घंटेपर पचास ग्राम दूध घरके चनेके सत्तूके साथ लेते रहें ।

इस रोगमें परहेज बहुत जरूरी है।

(४) गर्भाशयके ट्यूबोंका जाम होना गर्भाशयमें दो ट्यूब होते हैं। संतानके लिये इन ट्यूबोंका अत्यधिक महत्त्व है। यदि दोनों ट्यूब जाम हो जायँ तो संतान हो नहीं सकती ।

ऐसी स्थिति में निम्नलिखित औषधका सेवन लाभप्रद प्रमाणित हुआ है। पहले ट्यूबोंकी जाँच करा लें। फिर छः महीने बाद सफलता मिल जाती है।

औषध – [१] रसराजरस २ ग्राम, गुल्मकुठाररस-२ ग्राम,

टंकणभस्म – २ ग्राम,

काले तिलका चूर्ण- ३० ग्राम,

पुनर्नवामण्डूर- ३ ग्राम- इन औषधियोंकी २१ पुड़िया बना लें।

सुबह-शाम एक-एक पुड़िया शहदसे लें या पचास ग्राम चीनी मिले दूधसे लें ।

[२] ४०० मिलीग्राम मीठे कुमार्यासवमें १४ मिलीग्राम शंखद्राव मिला लें। भोजनके आधे घंटेके बाद बोतलको अच्छी तरह हिलाकर ४ ढक्कन दवा ६ ढक्कन पानी मिलाकर पी लें। पेट साफ करनेके लिये हर्रे आदि लें।

 

वातगुल्म (पेट में गांठ) रोग के बारे में जानकरी और उपचार share this***

 

 

Read more***

कैंसर के बारे में जानकारी और आयुर्वेदिक उपचार

17 thoughts on “वातगुल्म (पेट में गांठ) रोग के बारे में जानकरी और उपचार (pet me gath)”

Leave a Comment